प्लेटफार्म में ट्रेन की चपेट में आने से मासूम की मौत : पति-पत्नी घायल
यूथ कांग्रेस जिलाध्यक्ष गुड्डू चौहान ने दिया ज्ञापन
(कोतमा) अनूपपुरl जिले के कोतमा रेलवे स्टेशन में सोमवार और मंगलवार की मध्य रात्रि अंबिकापुर की ओर जाने वाली ट्रेन में सफर करने के लिए इंतजार कर रहा परिवार ट्रेन दुर्घटना का शिकार हो गया जिसमें 3 वर्षीय मासूम की मौत और मासूम की मां ने अपना हाथ गवा दिए।
वही पिता ,मासूम और अपनी पत्नी को बचाने के चक्कर में घायल हो गया। कोतमा स्टेशन में लगभग रात्रि के 1:00 बजे अंबिकापुर से दुर्ग जाने वाली ट्रेन में चढ़ने के दौरान यह हादसा हुआ। कोतमा स्टेशन में में फैली अवस्था के कारण आए दिन कोतमा स्टेशन सुर्खियों में रहता है। कोतमा स्टेशन में ना तो प्राथमिक स्वास्थ्य चिकित्सा के कोई साधन है और ना ही कोई डॉक्टर स्टेशन में मौजूद रहता है इसके साथ ही स्टेचर की भी व्यवस्था स्टेशन में नहीं है। सोशल मीडिया में भी उक्त घटना को लेकर रेलवे प्रशासन और सांसद को जमकर कोसा जा रहा है। स्टेशन की बज बजती नालियां, गंदे पड़े प्लेटफार्म, ना पीने का पानी और ना ही कोई व्यवस्था
रेलवे स्टेशन में दौड़ रही अवस्था की गाड़ी
कहने को तो रेलवे भारत सबसे ज्यादा कमाई करने वाला सेक्टर है, जहां अधिकारियों की व्यवस्थाओं के लिए रेलवे हर सुविधा उपलब्ध कराती है लेकिन ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्र के यात्रियों को रेलवे प्रशासन या तो मुर्दा या फिर जानवर मानकर कार्य करती है। आए दिन आदिवासी क्षेत्र में ट्रेनों का परिचालन बंद रहता है। आदिवासी क्षेत्र से कोयला उत्खनन कर बड़ी तादात में परिवहन तो जरूर किया जाता है लेकिन रेलवे द्वारा यात्रियों को सुविधा के नाम पर ठेंगा ही दिखाया जाता है। शहडोल संभाग के अधिकतम रेलवे स्टेशन बादहाली के आंसू रो रहे हैं। करोना काल को रेलवे का स्वर्णिम समय कहां जाने लगा है। लगातार गुड्स ट्रेनों का परिचालन और यात्री ट्रेनों में या तो देरी या फिर ट्रेनों को बंद कर यात्रियों को मजबूरन उसे व्यवस्था से बेदखल कर दिया गया जो अंग्रेजों के समय से चली आ रही थी। स्टेशन पर सफाई कर्मी के नाम पर एक कर्मचारी रखकर कोतमा का जिम्मा एक कंधे में दे दिया गया है। नालियों की बजबजाहट, नल से निकलती हुई हवा, पीने के पानी को तरसते यात्री इतनी ही कहानी कोतमा रेलवे स्टेशन के यात्रियों के जुबान में सुनने को मिलती है। कुल मिलाकर कहा जाए तो कोतमा रेलवे स्टेशन पर सुविधा नहीं अव्यवस्थाओं की गाड़ियां दौड़ रही है।
ना सफाई कर्मी ना नालों से पानी
कोतमा रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म नंबर एक कार्पोरेट फॉर्म नंबर दो-तीन में पीने के लिए मात्र एक नल ही चालू है। गर्मी के समय यात्रियों को ठंडा पानी पीने को भी नसीब नहीं हो पता है। प्लेटफार्म में बने जगह-जगह नल शोपीस बनकर रह गए हैं। एक सफाई कर्मी होने के कारण लगातार प्लेटफार्म में गंदगी का आलम बना रहता है। नालियों की सफाई हफ्तों तक नहीं होती है जिसके कारण प्लेटफार्म में बदबू का आलम सदैव रहता है। स्टेशनों में अव्यवस्था इस कदर फैली हुई है कि यात्रियों को व्यवस्था सुधारने के लिए सासद से गुहार लगानी पड़ती है। फिलहाल सोशल मीडिया में दुर्घटना के बाद रेलवे प्रशासन और सांसद पर जमकर टिप्पणी की जा रही है।
घायल को घंटे तक नहीं मिला स्ट्रेचर
रेलवे के नियम अनुसार प्लेटफार्म में प्राथमिक चिकित्सा सुविधा और स्टेचर की व्यवस्थाएं होनी चाहिए लेकिन कोतमा रेलवे स्टेशन में ना तो प्राथमिक चिकित्सा सुविधा है और ना ही कोई स्टेचर की व्यवस्था है। देर रात हुई दुर्घटना के बाद जब घायलों को ले जाने के लिए स्ट्रेचर की मांग की गई तो स्टेशन में स्टेशन ना होना बताया गया। स्ट्रेचर ना होने के कारण घायल को ले जाने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ा जिससे घायल का काफी खून भी बह गया। रेलवे प्रशासन द्वारा यात्रियों से बाकायदा आवागमन के लिए राशि तो वसूली जाती है लेकिन सुविधा शून्य नहीं दी जा रही है। स्टेचर ना होने से घायल को होने वाली असुविधा का आखिर जिम्मेदार कौन है और रेलवे के द्वारा स्टेशनों में मिलने वाली सुविधा की उपलब्धि ना होने पर किस पर कार्यवाई की जानी चाहिए यह तो रेलवे प्रशासन द्वारा तय नहीं हुआ है, वही स्टेशन मास्टर उक्त मामले से अपने आप को बचाते नजर आ रहे हैं।
इनका कहना है…
ट्रेन चलते समय चढ़ने के दौरान यह हादसा हुआ है तीन लोग घायल हैं। तीनों के पास टिकट उपलब्ध थी।
स्टेशन मास्टर कोतमा