
एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित माना गया है। वहीं अजा एकादशी का व्रत भाद्रपद मास में पड़ता है। मान्यता है कि इस व्रत को रखने और विष्णु जी के पूजन से अश्वमेध यज्ञ के बराबर पुण्य फल प्राप्त होता है।
हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार हर साल 24 एकादशी व्रत पड़ते हैं। ये व्रत भगवान विष्णु को समर्पित हैं। इनमें से एक अजा एकादशी का व्रत भाद्रपद (भादो) मास में कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि को आता है।
अजा एकादशी व्रत की पूजा विधि
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अजा एकादशी के दिन सुबह जल्दी उठें और नित्य कर्मों से निपटकर स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र पहनें। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार एकादशी व्रत में बाल धोकर नहीं नहाना चाहिए। वहीं इस दिन साबुन और शैंपू के इस्तेमाल की भी मनाही है।
इसके बाद घर के पूजा स्थल की सफाई करके पूर्व दिशा की तरफ एक लकड़ी की चौकी रखें। इस पर एक पीला कपड़ा बिछाएं। इसके पश्चात चौकी पर भगवान विष्णु की या तस्वीर स्थापित करें। विष्णु जी को चंदन का तिलक लगाकर अक्षत, फूल, माला, फल और नैवेद्य आदि अर्पित करें। ध्यान रहे कि विष्णु जी की पूजा में तुलसी दल जरूर चढ़ाएं। पूजन के बाद अजा एकादशी व्रत की कथा पढ़ें और सुनें। माना जाता है कि इस दिन विष्णु चालीसा और विष्णु स्तुति का पाठ करने से जीवन में सुख-समृद्धि का आती है। फिर आखिर में भगवान विष्णु की आरती उतारें।
अजा एकादशी का मुहूर्त
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भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि आरंभ: 29 अगस्त, बृहस्पतिवार, देर रात 1 : 19 मिनट से
भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि समाप्त: 30 अगस्त, शुक्रवार को देर रात 1 :37 मिनट पर समाप्त हो रही है
सूर्य के उदय और व्रत की तिथि के योग यानी उदयातिथि के आधार पर अजा एकादशी 29 अगस्त 2024 को मनाए जाएगी।
अजा एकादशी पर बन रहे हैं ये शुभ योग
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अजा एकादशी के दिन आर्द्रा नक्षत्र में सर्वार्थ सिद्धि योग बन रहा है। साथ ही इस दिन इन सभी योगों का संयोग सिद्धि योग के साथ हो रहा है। इस बार अजा एकादशी गुरुवार के दिन ही पड़ रही है। ऐसे में इसका महत्व और भी बढ़ जाता है।
अजा एकादशी पारण का समय
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हिन्दू पंचांग के अनुसार, अजा एकादशी के पारण का समय: शुक्रवार 30 अगस्त को प्रातः 7: 49 मिनट से 8 : 31 मिनट तक है।
पारण तिथि के दिन हरि वासर समाप्त होने का समय: पारण प्रातः 7: 49 मिनट है।
बता दें कि पारण करने की कुल अवधि 42 मिनट की है।
अजा एकादशी व्रत का महत्व
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पौराणिक कथा के अनुसार भगवान श्रीराम ने अपने समय में अश्वमेध यज्ञ किया था और इसी यज्ञ के फलस्वरूप उन्हें लव कुश से मिलने का अवसर प्राप्त हुआ था। धार्मिक मान्यता है कि अजा एकादशी के व्रत को करने से मनुष्य के पिछले जन्म के सभी पापों का नाश होता है और उसे अश्वमेध यज्ञ को करने के बराबर पुण्य फल की प्राप्ति होती है।
अजा एकादशी व्रत कथा
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ऐसा कहा जाता है कि राजा हरिश्चन्द्र अपनी सत्यनिष्ठा और ईमानदारी के लिए जाने जाते थे। एक बार देवताओं ने इनकी परीक्षा लेने की योजना बनाई। राजा ने स्वप्न में देखा कि ऋषि विश्वामित्र को उन्होंने अपना राजपाट दान कर दिया है। जब अगले दिन राजा हरिश्चन्द्र विश्वामित्र को अपना समस्त राज-पाठ को सौंप कर जाने लगे तो विश्वामित्र ने राजा हरिश्चन्द्र से दक्षिणा स्वरुप 500 स्वर्ण मुद्राएं दान में मांगी। राजा ने उनसे कहा कि पांच सौ क्या, आप जितनी चाहे स्वर्ण मुद्राएं ले लीजिए। इस पर विश्वामित्र हँसने लगे और राजा को याद दिलाया कि राजपाट के साथ राज्य का कोष भी वे दान कर चुके हैं और दान की हुई वस्तु को दोबारा दान नहीं की जाती। तब राजा ने अपनी पत्नी और पुत्र को बेचकर स्वर्ण मुद्राएं हासिल की, लेकिन वो भी पांच सौ नहीं हो पाईं। राजा हरिश्चंद्र ने खुद को भी बेच डाला और सोने की सभी मुद्राएं विश्वामित्र को दान में दे दीं। राजा हरिश्चंद्र ने खुद को जहां बेचा था वह श्मशान का चांडाल था। चांडाल ने राजा हरिश्चन्द्र को श्मशान भूमि में दाह संस्कार के लिए कर वसूली का काम दे दिया।
एक दिन राजा हरिश्चंद्र ने एकादशी का व्रत रखा हुआ था। आधी रात का समय था और राजा श्मशान के द्वार पर पहरा दे रहे थे। बेहद अंधेरा था, इतने में ही वहां एक लाचार और निर्धन स्त्री बिलखते हुए पहुंची जिसके हाथ में अपने पुत्र का शव था। राजा हरिश्चन्द्र ने अपने धर्म का पालन करते हुए पत्नी से भी पुत्र के दाह संस्कार हेतु कर मांगा। पत्नी के पास कर चुकाने के लिए धन नहीं था इसलिए उसने अपनी साड़ी का आधा हिस्सा फाड़कर राजा का दे दिया। उसी समय भगवान प्रकट हुए और उन्होंने राजा से कहा, “हे हरिश्चंद्र, इस संसार में तुमने सत्य को जीवन में धारण करने का उच्चतम आदर्श स्थापित किया है। तुम्हारी कर्त्तव्यनिष्ठा महान है, तुम इतिहास में अमर रहोगे।” इतने में ही राजा का बेटा रोहिताश जीवित हो उठा। ईश्वर की अनुमति से विश्वामित्र ने भी हरिश्चंद्र का राजपाट उन्हें वापस लौटा दिया।