65 साल के नेता भी बन सकेंगे भाजपा जिलाध्यक्ष, मंडल अध्यक्ष के लिए 45 साल फिक्स, 15 दिसंबर तक मंडलों में और 30 दिसंबर तक जिलाध्यक्ष का होना है चुनाव

कटनी, यशभारत। मंडल और जिलाध्यक्ष बनने वालों के लिए खुशखबरी है। भारतीय जनता पार्टी ने उम्र का टेंशन खत्म कर दिया है। दिल्ली में हुई बैठक के बाद इस गाइडलाइन को प्रदेश और जिलों तक पहुंचा दिया गया है कि मंडल अध्यक्ष के पद को 45 साल तक का कोई भी युवा नेता हासिल कर सकता है, जबकि जिलाध्यक्ष के लिए उम्र की कोई सीमा नहीं। अब वरिष्ठों के लिए दौड़ में शामिल होने का रास्ता खुल गया है। सूत्र बताते है कि पार्टी ने मंडल अध्यक्ष के चुनाव के लिए 15 दिसंबर तथा जिलाध्यक्ष को चुनने 30 दिसंबर तक की अवधि तय कर दी है। इसके बाद जनवरी में प्रदेश अध्यक्ष तय कर लिया जाएगा। कटनी का मामला जिला और प्रदेश दोनों के लिहाज से महत्वपूर्ण है, क्योंकि प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा स्वयं इसी इलाके से सांसद है और कटनी की सियासत में उनकी गहरी रुचि है। इस वजह से यह माना जा रहा है कि प्रदेश अध्यक्ष बदलने का प्रभाव भी कटनी जिले की राजनीति पर होगा।
सूत्र बताते हैं कि भाजपा को पांच साल पहले लिए गए अपने उम्र के बंधन के फैसले को वापस लेना पड़ा। दिल्ली में हुई बैठक में भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने अगले महीने होने वाले मंडल और जिलाध्यक्ष के चुनावों में दोनों की अधिकतम उम्र बढ़ाने का फैसला कर लिया है। अब मंडल अध्यक्षों की उम्र का दायरा 45 साल हो जाएगा तो जिलाध्यक्ष में फिर से वरिष्ठ नेताओं और कार्यकर्ताओं को तवज्जो दी जाएगी। पांच साल पहले जब भाजपा ने मंडल अध्यक्षों के चुनाव कराए थे, तब मध्यप्रदेश में एक नया प्रयोग करते हुए मंडल अध्यक्षों के पद पर केवल 35 साल की उम्र तक के ही युवाओं को लिए जाने का फरमान जारी कर दिया था। इसी के बाद कटनी जिले के मंडलों में युवा अध्यक्ष बना दिए गए। जिले के 23 मंडल अध्यक्षों में से सबसे कम उम्र का मंडल अध्यक्ष रीठी मंडल में भरत पटेल को बनाया था। सूत्र बताते हैं कि मंडलों से लेकर जिले तक पूरी टीम युवा और नए चेहरों की होने के कारण पार्टी को कुछ मामलों में परेशानी भी आई। जिले की टीम में तो सीधे अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से आए लोगों को प्रमुख पदों पर आसीन करा दिया गया, सिर्फ इस वजह से कि वे वीडी शर्मा की गुडबुक में थे। पूरे कार्यकाल जिलाध्यक्ष इन्हीं नेताओं को हर मौके पर आगे करते रहे और हर कार्यक्रम की जिम्मेदारी इन्हें ही सौंपते रहे। अनेक वरिष्ठ नेताओं को हाशिए पर धकेल दिया गया। जिला कार्यकारिणी से एक साथ तीन महिलाओं का डिमोशन करते हुए पदों से हटाकर उन्हें केवल कार्यकारिणी सदस्य के ओहदे तक सीमित करने का नतीजा यह निकला कि इन नेत्रियों ने पार्टी की बैठकों में आना ही छोड़ दिया। महत्व न मिलने से कुछ अन्य सक्रिय नेत्रियों भी घर बैठ गई। युवाओं तथा वरिष्ठों के बीच उम्र के अंतर को लेकर भी कई जगह सामंजस्य जम नहीं पाया लेकिन यह खिलाफत खुले रूप में सामने नहीं आई, क्योंकि यहां का संगठन अपरोक्ष रूप से खुद वीडी शर्मा देख रहे हैं। मंडल अध्यक्षों की उम्र 10 साल बढ़ाकर अधिकतम 45 साल और जिलाध्यक्ष के लिए 65 वर्ष के नेताओं को मौका दे देने के निर्णय से कई नेता दोबारा सक्रिय हो गए हैं। इन्हें लग रहा है अभी उनका दौर गुजरा नहीं है।
गुटों की ओर से तैयार हैं दावेदार, टांग खींचने की तैयारियां पूरी
इधर मौसम में भले ही सर्दी का जोर बढ़ रहा हो लेकिन जिलाध्यक्ष के चुनाव को लेकर गर्माहट का आलम है। विधानसभा और लोकसभा चुनाव तक एक ही गुट में सवार चेहरे अब जिले के संगठन की सबसे बड़ी कुर्सी में बैठने के लिए हर सीमा लांघने को तैयार हैं। महाराष्ट्र.झारखंड विधानसभा चुनाव के नतीजे आ चुके हैं और अब जिला अध्यक्षों के चुनाव का आगाज होगा। भाजपा में वैसे तो कई गुट हैं, जो आमतौर पर हर पार्टी में हैं, लेकिन जिले के अध्यक्ष को लेकर जनप्रतिनिधियों और संगठन के पदाधिकारियों में रस्साकशी का दौर है। नेतागण अपना मोहरा फिट करना चाह रहे हैं तो संगठन चाहता है कि उसका ही कोई पदाधिकारी प्रमोट हो जाए। सब अपने मोहरों पर दांव खेलना चाह रहे हैं। हालाकि भाजपा में अभी तक ये मर्यादा शेष है कि असहमतियां सडक़ पर उतर कर नहीं व्यक्त की जातीं, जो होता है बंद कमरे में होता है और वही सबको स्वीकार भी करना पड़ता है। जाहिर है इस बार भी ऐसा ही होगा, लेकिन इस स्टेज तक पहुंचने के लिए फिलहाल सभी संघर्ष कर रहे हैं।
सदस्यता अभियान की भूमिका
भाजपा के सदस्यता अभियान की शुरुआत में ही पार्टी ने कहा था कि जो सदस्य ज्यादा संख्या में नए सदस्य जोड़ेगा वो संगठन चुनाव में दावेदार होगा और इन्हीं में से किसी को जिलाध्यक्ष तक के पद से नवाज दिया जाएगा। जैसे-जैसे चुनाव की घडय़िां करीब आ रही हैं तो मर-मरकर ज्यादा सदस्य बनाने वाले अपना रिकॉर्ड लेकर तैयार बैठे हैं ताकि अपनी दावेदारी पेश कर सकें लेकिन जानकारों का कहना है कि सदस्यता अभियान वाला नियम कभी भी शिथिल और निष्क्रिय किया जा सकता है, क्योंकि विगत में भी ऐसा हो चुका है। कई ऐसे हैं, जिन्होंने सदस्यता अभियान में कुछ खास करने का कभी प्रयास नहीं किया, वे संगठन चुनाव में आगे-आगे हो रहे हैं।
अंतत संगठन ही तय करेगा
भाजपा के संगठन चुनाव को लेकर अंतत: संगठन की राय की सर्वोपरि होती रही है और इस बार भी यही होगा लेकिन संगठन की अंतिम राय के सामने आने से पहले तक भाजपाई एक-दूसरे की टांग खींचने में किसी तरह की कसर छोडऩे वाले नहीं है और भोपाल से लेकर दिल्ली तक लॉबिंग करने का भी पूरा मन बना लिया गया है।
