रज़ा उत्सव के दूसरे दिन दिखे कला के कई रंग : उमंग और उत्साह से सजी महफिल ; पढ़ें पूरी खबर…..


मंडला , यश भारत l रज़ा उत्सव के दूसरे दिन स्थानीय रज़ा कला वीथिका में कला के विभिन्न रंग देखने को मिले। यहाँ हर उम्र के लोग पेंटिंग करते नज़र आए। कोई ड्राइंग शीत पर अपनी कल्पना को आकार दे रहे थे, तो कोई गमले पर हाथ आजमा रहा था। गमले में पेंटिंग को लेकर महिलाओं में खासा रुझान देखने को मिला। महिलाये अपने – अपने तरीके से गमले पेंट करती नजर आई।
विभिन्न स्कूल के विद्यार्थी बड़ी संख्य में रजा उत्सव में शामिल हुए। लोगों में मिट्टी की चीज़े बनाने को लेकर भी ख़ासा उत्साह देखने को मिला। बच्चों के साथ – साथ बड़े भी मिट्टी के चाक पर मिट्टी की चीज़े बनाते नज़र आए। जिला अधिवक्ता संघ के अध्यक्ष रामेश्वर झारिया, पूर्व अध्यक्ष राकेश तिवारी, शेख शहज़ाद, रजनीश रंजन उसराठे अन्य अधिवक्ता साथियों के साथ रज़ा उत्सव को देखने पहुंचे। उन्होंने छायाकारों की प्रदर्शनी का भी अवलोकन किया। इस दौरान उन्होंने रज़ा उत्सव में पहली बार शामिल ग्राफिक्स प्रिंटिंग की बारीकियों को भी समझा और रज़ा फाउंडेशन के इन प्रयासों की सराहना की।
इसके पूर्व गुरुवार को कलेक्टर डॉ. सलोनी सिडाना के स्थानीय छायाकारों की छायाचित्रों की प्रदर्शनी के शुभारम्भ के बाद सुप्रसिद्ध नाट्य संगीत कलाकार पूनम तिवारी ने अपनी अनोखी शैली से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। उन्होंने विश्वप्रसिद्ध रंग कर्मी हबीब तनवीर के विभिन्न नाट्यों के गीत और छतीससगढ़ी गीतो के जरिए अपना जादू बिखेर दिया। उन्होंने सत्या नाम सत्यानाम (चरण दास चोर), अइसन सुंदर नारी के बात (बहादुर क्लारीन), बबेला सांस की रे बेला (मिटटी की गाड़ी), एक चोर ने रंग जमाया (चरणदास चीर), देख रहे है नैन (देख रहे है नैन-नाटक), बताओ गुमनामी है (ठेल्हा राम नाटक), खुन कोर खुन है (लहीर नाटक), आदमी नामक (आगरा बाजार), लाली गोदली (गांव के नाम ससुराल), बधनीला दिला ( गांव के नाम ससुराल), सास गारी देवें (गांव के नाम ससुराल) और चोला माटी के है राम (बहादुर क्लारीन) गीतों की शानदार प्रस्तुति दी। पूनम तिवारी (रंगछत्तीसा) गायक के साथ उनकी बेटी बेला (दिव्या) तिवारी, संगत पर बिमेश शुक्ला (हारमोनियम), तामेश मनिकपुरी (तबला), मिथलेश यादव (ढोलक), नवोत्तम दास मनिकपुरी (कोरस) और राम यादव (बेंजो) साथ दे रहे थे।