मां लक्ष्मी की अनोखी प्रतिमा:-सुबह सफेद, दोपहर में पीली और शाम को नीली नजर आती

जबलपुर यशभारत संस्कारधानी में एक ऐसा लक्ष्मी मंदिर भी है, जहां माता लक्ष्मी स्वयं सिद्ध कहलाती हैं। अधारताल स्थित इस मंदिर को पचमठा मंदिर के नाम से जाना जाता है। विशेष बात यह है कि यहां माता लक्ष्मी का रूप चमत्कारिक रूप से दिन में तीन बार बदलता है। माता का स्वरूप यहां सुबह बाल्यावस्था, दिन में किशोरावस्था और संध्या को वयस्क अवस्था में दिखाई देता है।
पचमठा मंदिर में इस समय दिवाली के विशेष पूजन की तैयारी चल रही है। दीवाली पर मंदिर के पट पूरी रात खुले रहते हैं। दूर-दराज से लोग यहां दीपक रखने के लिए आते हैं। मध्यरात्रि तक पूरा मंदिर दीपकों की आभा से दमक उठता है। इसका आभास ही अद्भुत है। मान्यता है यहां पूजन करने से मनोकामना की पूर्ति होती है।
साधना का था केंद्र
गोंडवाना शासन में रानी दुर्गावती के विशेष सेवापति रहे दीवान अधार सिंह के नाम से बनाए गए अधारताल तालाब में कार्तिक की अमावस्या दिवाली की रात को अब भी भक्तों का तांता लगता है। यह एक जमाने में यह पूरे देश के लिए साधना का विशेष केन्द्र था। मंदिर के चारों तरफ श्रीयंत्र की विशेष रचना है।
शुक्रवार को विशेष पूजा
बताया जा रहा है कि हर दिन प्रतिमा का रंग अपने आप तीन बार बदलता है। प्रात, काल में प्रतिमा सफेद, दोपहर में पीली और शाम को नीली नजर आती है। मंदिर में हर शुक्रवार विशेष पूजन के लिए भीड़ रहती है। दिवाली को तो मां के दर्शन के लिए तांता लगा रहता है।
सूर्य की पहली किरण चरणों पर
स्थानीय लोग यह भी बताते हैं कि मां लक्ष्मी की प्रतिमा दिन में तीन बार रंग बदलती है। कुछ लोग केवल इसका अनुभव करने के लिए पचमठा मंदिर पहुंचते हैं। मंदिर के पुजारियों ने बताया कि मंदिर का निर्माण करीब 11 सौ साल पूर्व कराया गया था। इसके अंदरूनी भाग में भी श्रीयंत्र की अनूठी संरचना है। खास बात यह है कि आज भी सूर्य की पहली किरण मां लक्ष्मी की प्रतिमा के चरणों पर पड़ती है।