नवरात्र और दुर्गा पूजा में आमतौर पर सभी मंदिरों के दरवाजे भक्तों के लिए खोल दिए जाते हैं लेकिन बिहार के नवगछिया में एक ऐसा भी मंदिर है जहां पूरे साल महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी रहती है. ऐतिहासिक और धार्मिक रूप से नवगछिया के इस पुनामा प्रतापनगर मंदिर की काफी मान्यता है.
यहां पर नवरात्र में भी मां दुर्गा की प्रतिमा नहीं बनाई जाती है. यहां ज्योत और कलश की पूजा होती है. इस दुर्गा मंदिर में महिलाओं का प्रवेश पूरे साल वर्जित रहता है. इस मंदिर को लेकर दावा किया जाता है कि राजा चंदेल के वंशज प्रताप राव ने 1526 में पुनामा प्रताप नगर में दुर्गा मंदिर की स्थापना की थी.
महिलाओं के प्रवेश पर क्यों है पाबंदी
इनके वंशज प्रवीण सिंह, विजेंद्र सिंह बताते हैं कि इस दुर्गा मंदिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित है. आखिर महिलाओं के प्रवेश पर प्रतिबंध क्यों है इस सवाल पर उन्होंने कहा कि अपने स्थापना काल से ही मंदिर में तांत्रिक और गुप्त विधि से पूजा की जाती है. इसलिए यहां महिलाओं का प्रवेश वर्जित माना गया है. यह ज्योत पहली पूजा से दशमी तक जलती रहती है. विसर्जन के समय लोगों की भीड़ के बीच जलती हुई ज्योत का विसर्जन किया जाता है.
मंदिर समिति के सदस्य बताते हैं कि कोसी नदी के कटाव में तीन बार कटने के बाद 2004 में राजेंद्र कॉलोनी के पुनामा प्रताप नगर में मंदिर की स्थापना कर पूजा शुरू की गई. यहां कामरूप कामाख्या की तरह ही तांत्रिक विधि विधान से पूजा होती है.
अष्टमी और नवमी को इस मंदिर में पशुओं की बलि दी जाती है. नवमी को भैंसे की भी बलि दी जाती है. साथ ही पहली, तीसरी, पांचवीं और सातवीं पूजा को भी एक-एक पशु की बलि दी जाती है.
यहां होती है चौंसठ योगिनी पूजा
मंदिर के व्यवस्थापक बताते हैं कि पुनामा प्रताप नगर की दुर्गा मंदिर में सच्चे मन से जो भी भक्त वर मांगते हैं, मैय्या उनकी मुराद अवश्य पूरी करती हैं. यहां सप्तमी को होने वाली निशा पूजा भव्य होती है, जिसे देखने के लिए दूर-दूर से भक्त मंदिर आते हैं. सप्तमी की रात्रि में निशा पूजा के दौरान माता के चौसठ योगिनी की पूजा होती है.
भक्त मन्नत पूरा होने पर करते हैं दंड प्रणाम
भक्त मंदिर में आकर मैया के सामने अपनी मुरादें पूरी करने की मन्नत मांगते हैं. इसके बाद मन्नत पूरा होने पर सुबह आकर मंदिर की चारों तरफ भक्त दंड प्रणाम करते हैं.
मंदिर के प्रबंधक ने कहा कि इस मंदिर में महिलाओं का प्रवेश वर्जित है. यह परंपरा आज से नहीं बल्कि 1526 से चली आ रही है. महिलाएं इसका कारण जानती है इसलिए कोई महिला अंदर नहीं आती हैं. बाहर से ही पूजा-दर्शन कर चली जाती हैं. इस मंदिर के अंदर आज तक कोई महिला नहीं गई है.