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इनसाइड स्टोरी – सिया विवाद: रस्साकशी के बीच नियमों में अफसरों ने मारी बाजी

 

भाोपाल,यशभारत। सिया में अफसरों और अध्यक्ष के बीच जारी विवाद में नियमों के मामले में अफसर बाजी मार ले गए गए हैं। इस मामले में जारी विवाद से इस प्राधिकरण को लेकर तरह-तरह की चर्चाएं प्रशासनिक और राजनीतिक गलियारों में हो रही हैं। दरअसल, अध्यक्ष पद पर राजनैतिक नियुक्ति होने से प्रमुखसचिव ,सदस्य और अध्यक्ष के बीच शुरु से ही पटरी नही बैठ पा रही है। इसकी वजह से प्राधिकरण का कामकाज बुरी तरह से प्रभावित होता आ रहा है। इसके पीछे की उनकी अपनी वजहें हैं। दरअसल, सिया अध्यक्ष चाहते हैं कि प्राधिकरण में उनकी मर्जी के बगैर कोई काम नही हो , जबकि अफसरों का इस मामले में अपना तर्क है। उधर, जनवरी में अध्यक्ष पद पर नियुक्ति होने के बाद जितनी भी बैठकें हुई हैं, सभी में किसी न किसी मुद्दे को लेकर विवाद की स्थिति बनती रही है। प्रदेश में संचालित अधिकांश कामों में पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकनप्राधिकरण की मंजूरी जरुरी होती है। उसके बगैर काम शुरु नहीं हो पता है। इसकी वजह से प्राधिकरण की बैठकों सतत रूप से होना जरुरी है। भारत सरकार के ई आई ए अधिसूचना 2006 के नियम 8(3एवं 4) के अनुसार विशेषज्ञता समिति के दुबारा प्रकरणों में की गई सिफारिशों को अंतिम सिफारिश 45 दिन से अधिक होने पर आवेदक आगे की कार्यवाही करने के लिए स्वतंत्र है एसे मामलो को डीम्ड प्रवीजन के तहत प्राधिकरण के अध्यक्ष की अनुमति का कोई प्रावधान नहीं है, इस प्रावधान के तहत अफसर उसे सूचना देकर आवेदक अपने स्तर पर आगे अपना काम करने की जानकारी दे सकते हैं। जिसमे कि सेक समिति की अनुसंसा एवं शर्तों के अनुपालन किए जाने की मात्र सूचना 236 मामले में दी गई है, इस प्रावधान का ही अफसरों ने उपयोग करते हुए 236मामलों का निपटारा कर दिया। इसकी सूचना भारत सरकार के अलावा अन्य राज्य शासन के वरिष्ठ अधिकारियों को भी दी गई है । इसकी भनक लगते ही अफसरों और अध्यक्ष के बीच जारी शीतयुद्ध बाहर आ गया है। उल्लेखनीय है कि पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन प्राधिकरण एक सरकारी एजेंसी है जो पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन प्रक्रिया का संचालन करती है। यह सुनिश्चित करता है कि किसी भी परियोजना या विकास से पर्यावरण पर कोई नकारात्मक प्रभाव न पड़़े। पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन एक ऐसी प्रक्रिया है, जिसका उपयोग किसी प्रस्तावित परियोजना या विकास के संभावित पर्यावरणीय प्रभावों का आकंलन करने के लिए किया जाता है। इसमें परियोजना के डिजाइन चरण में पर्यावरण प्रभावों पर विचार, परामर्श और एक रिपोर्ट की तैयारी शामिल होती है। यह है विवाद की वजह सिया के प्रभारी सदस्य सचिव श्रीमन शुक्ला ने पर्यावरण विभाग के प्रमुख सचिव नवनीत मोहन कोठारी का अनुमोदन लेकर 23 व 30मई को करीब 236 प्रकरणों में एक साथ डीम्ड पर्यावरणीय मंजूरी जारी कर दी थी। इसका आधार केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय के एनवायरोमेंट इम्पैक्ट असेसमेंट (ईआईए) नोटिफिकेशन -2006 के पैरा-8 की कंडिका-3 को बनाया गया है।

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इसमें कहा गया है कि यदि सिया अपने फैसले से आवेदक को 45 दिन के भीतर कोई सूचना नहीं देती है तो आवेदक इस प्रकार आगे बढ़ सकता है जैसे कि मांगी गई पर्यावरण मंजूरी संबंधित विशेषज्ञ मूल्यांकन समिति की सिफारिशों के अनुसार सिया द्वारा मंजूर या नामंजूर की गई है। इस प्रकार इन दो सौ छत्तीस मामलो में विभिन्न उधोगो शासकीय परियोजनाओं के लंबित मामलों को देश में पहली बार पहल कर अधिसूचना के इस प्रावधान का उपयोग किया। जिससे कि शासन को करोड़ो रुपये के राजस्व की प्राप्ति के लाखो लोग रोजगार से लगेंगे। देखना यह है कि इस पूरे मामले में ऊंट किस करवट बैठता है। अभी भी शीत युद्ध की तलवारें बाहर निकली हुई हैं।

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