

नई दिल्ली: पर्यावरण संरक्षण की दिशा में दिल्ली के नेशनल जूलॉजिकल पार्क (दिल्ली चिड़ियाघर) ने एक और महत्वपूर्ण कदम उठाया है। टिकट काउंटर को पूरी तरह से बंद कर ऑनलाइन टिकटिंग प्रणाली लागू करने के बाद, अब चिड़ियाघर प्रशासन ने अपने आंतरिक कामकाज को भी डिजिटल प्लेटफॉर्म पर स्थानांतरित करना शुरू कर दिया है। इसके तहत, कर्मचारियों को पेपर की जगह मोबाइल टैबलेट दिए गए हैं, जिससे कागज का उपयोग काफी हद तक कम हो जाएगा।
चिड़ियाघर के डायरेक्टर डॉ. संजीत कुमार (आईएफएस) ने इस पहल की जानकारी देते हुए बताया कि चिड़ियाघर के सभी 20 बीट पर तैनात कर्मचारियों को टैबलेट उपलब्ध कराए गए हैं। इन टैबलेट्स के माध्यम से बीट के कर्मचारी जानवरों और पक्षियों से जुड़ी सभी गतिविधियों और महत्वपूर्ण जानकारियों को डिजिटल रूप से दर्ज करेंगे। यह डेटा सीधे चिड़ियाघर के आंतरिक सॉफ्टवेयर सिस्टम में रियल टाइम पर अपडेट हो जाएगा, जिसे अधिकारी कहीं से भी देख सकेंगे। इस नई प्रणाली से न केवल रिकॉर्ड रखना आसान होगा, बल्कि निर्णय लेने की प्रक्रिया भी पहले की तुलना में अधिक तेज और प्रभावी बनेगी।
पेपरलेस कार्य प्रणाली से पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा:
डॉ. संजीत कुमार ने बताया कि इस डिजिटल बदलाव से कार्यप्रणाली में पारदर्शिता भी आएगी, क्योंकि डेटा एंट्री की लोकेशन और पूरी जानकारी सिस्टम में दर्ज होगी। इससे यह सुनिश्चित किया जा सकेगा कि कर्मचारी अपने बीट से ही डेटा अपडेट कर रहे हैं। उनका मानना है कि पेपरलेस कार्य प्रणाली अपनाने से न केवल कागज की बचत होगी, बल्कि यह पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण योगदान है। कर्मचारियों के लिए भी यह प्रणाली अधिक व्यवस्थित और प्रभावी साबित होगी।
चिड़ियाघर में पर्यावरण संरक्षण के लिए कई योजनाएं:

दिल्ली चिड़ियाघर पर्यावरण संरक्षण के लिए पहले से ही कई महत्वपूर्ण योजनाएं चला रहा है, जिसमें ‘प्लास्टिक मुक्त दिल्ली चिड़ियाघर’ प्रमुख है। अब ऑफिस स्तर पर भी डिजिटल माध्यम को प्राथमिकता दी जा रही है। अधिकांश पत्राचार, रिपोर्टिंग और फाइलिंग ऑनलाइन की जा रही है, जिससे कागज का उपयोग न्यूनतम स्तर पर आ गया है। दिल्ली चिड़ियाघर की यह पहल निश्चित रूप से भविष्य के ‘ग्रीन ऑफिस’ की ओर एक मजबूत कदम है।
ऑनलाइन टिकट से कागज की बचत और सुविधा:
पहले दिल्ली चिड़ियाघर में आगंतुकों को काउंटर से टिकट खरीदना पड़ता था और गेट पर टिकट चेक होने के बाद उसे फाड़कर फेंक दिया जाता था। इससे न केवल कागज की बर्बादी होती थी, बल्कि कचरा भी फैलता था। साथ ही, आगंतुकों की संख्या जानने के लिए टिकट बिक्री के आंकड़ों को जोड़ना पड़ता था। अब ऑनलाइन टिकटिंग प्रणाली लागू होने से यह समस्या पूरी तरह से समाप्त हो गई है। ऑनलाइन टिकट बुक करने पर प्रवेश द्वार पर केवल क्यूआर कोड को स्कैन किया जाता है, जिससे न तो गंदगी होती है और न ही कागज बर्बाद होता है। इसके अलावा, एक क्लिक पर यह पता चल जाता है कि कितने लोगों ने चिड़ियाघर घूमने के लिए टिकट बुक किया है।
एक दिन में 18 हजार लोगों की क्षमता:
दिल्ली चिड़ियाघर 176 एकड़ के हरे-भरे क्षेत्र में फैला हुआ है और यहां विभिन्न प्रजातियों के 1200 से अधिक पशु-पक्षी संरक्षित हैं। प्रतिदिन बड़ी संख्या में लोग यहां घूमने आते हैं। चिड़ियाघर की एक दिन में 18,000 लोगों को प्रवेश देने की क्षमता है। पांच साल तक के बच्चों के लिए टिकट मुफ्त है, जिसके कारण कई बार पर्यटकों की संख्या 18 से 24 हजार तक भी पहुंच जाती है।
पेपर उत्पादन से पर्यावरण को नुकसान:
गौरतलब है कि पेपर के उत्पादन के लिए भारी मात्रा में पेड़ों की कटाई होती है, जिसका वन्य जीवन और पारिस्थितिक तंत्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। ऐसे में दिल्ली चिड़ियाघर जैसे संस्थानों में पेपरलेस व्यवस्था अपनाना न केवल एक सराहनीय उदाहरण है, बल्कि यह देशभर के अन्य संस्थानों को भी इस दिशा में प्रेरित करेगा।