आमने-सामने आए BSF और दिल्ली पुलिस, गोली चलाने के लिए तैयार थे जवान, तभी.. 36 घंटे तक मचा रहा ‘गदर’
अनुशासनहीनता की वजह से कुछ पुलिसकर्मियों की बर्खास्तगी की खबर से दिल्ली पुलिस में हड़कंप मच गया. इस कार्रवाई से बौखलाए हजारों पुलिसकर्मियों ने विद्रोह का झंडा बुलंद करते हुए हड़ताल पर जाने का ऐलान कर दिया. इस दौरान हालात कुछ ऐसे बनें कि जिन पुलिसकर्मियों पर राजधानी की सुरक्षा का जिम्मा था, अब वही पुलिसकर्मी दिल्ली की कानून-व्यवस्था के लिए खतरा बन गए थे. मामले की नजाकत समझते ही दिल्ली पुलिस के तत्कालीन महानिरीक्षक भागे-भागे तत्कालीन गृह सचिव के पास पहुंचे और पूरी स्थिति से उन्हें अवगत कराया गया.
करीब 57 साल पहले 13 अप्रैल 1967 को हुए इस वाकये के दौरान राजधानी में कानून-व्यवस्था बहाल रहे, लिहाजा बीएसएफ को मोर्चे पर उतने के आदेश दिए गए. आदेश मिलते ही बीएसएफ के पहले महानिदेशक केएफ रुस्तमजी ने अपने ऑफिसर्स को किसी भी परिस्थिति से निपटने के लिए तैयार रहने का आदेश दिया और खुद दिल्ली पुलिस के कंट्रोल रूम के लिए रवाना हो गए. कंट्रोल रूम पहुंचने के बाद बीएसएफ के अफसरों ने सबसे पहले उन जगहों का पता लगाने शुरू किया, जहां पर दिल्ली पुलिस के हड़ताली जवान प्रदर्शन करने वाले थे.
हड़ताली पुलिस कर्मियों पर गोली बीएसएफ जवानों ने तानी बंदूकें
इसी बीच आई एक खबर ने बीएसएफ ऑफिसर्स के माथे पर चिंता की लकीरे बढ़ा दी. दरअसल, बीएसएफ को सूचना मिली कि 5000 से अधिक पुलिसकर्मी तत्कालीन गृहमंत्री आवास की तरफ बढ़ रहे हैं और नार्थ एवेन्यू की सुरक्षा में तैनात सीआरपी के जवान भी पुलिसकर्मियों के प्रदर्शन में शामिल हो गए हैं. जिसके बाद, बीएसएफ के जवानों ने दिल्ली पुलिस के हड़ताली जवानों का रास्ता रोकने की कवायद शुरू कर दी. शाम के करीब चार बजे रहे होंगे, दिल्ली पुलिस के हड़ताली जवान गृहमंत्री आवास के पिछले गेट तक पहुंचने में कामयाब हो गए.
इस गेट पर बीएसएफ के जवानों ने पहले ही अपनी मोर्चाबंदी कर रखी थी. मौके पर मौजूद बीएसएफ अधिकारियों ने हड़ताली पुलिसकर्मियों को समझाने की कोशिश की, लेकिन वे बात समझने की जगह गृहमंत्री आवास का पिछला गेट तोड़ने की कोशिश करने लगे. अब बीएसएफ जवानों के पास कोई विकल्प नहीं बचा था, लिहाजा उन्होंने अपनी राइफलें हड़ताली पुलिसकर्मियों पर तान दी. वहीं, बीएसएफ के जवानों का यह रुख देख हड़ताली पुलिस कर्मी सहम गए और वह अपने कदम पीछे लेने लगे. लेकिन, गृहमंत्री आवास के बाहर नारेबाजी का दौर जारी रहा.
पुलिसकर्मियों के खिलाफ बीएसएफ ने शुरू किया ऑपरेशन
मौके पर हालात समय के साथ गंभीर होते जा रहे थे, लिहाजा बीएसएफ ने अतिरिक्त बल मंगाने का फैसला कर लिया. आदेश मिलते ही बीएसएफ वेस्टर्न फ्रंटियर के आईजी अश्विनी कुमार चार बटालियन के साथ मौके पर पहुंचे गए. चूंकि, इस प्रदर्शन की वजह से गृहमंत्री बीते 36 घंटों से कहीं आ-जा नहीं सके, लिहाजा प्रदर्शनकारियों को वहां से हटाने का फैसला लिया गया. अब हड़ताली पुलिसकर्मियों से निटपने का आखिरी समय आ गया था. कार्रवाई से पहले गृह सचिव कार्यालय में एक हाईलेबल बैठक हुई. इस बैठक में तत्कालीन कैबिनेट सचिव और गृह सचिव के साथ बीएसएफ महानिदेशक केएफ रुस्तमजी और आईजी अश्विनी कुमार भी मौजूद थे.
इस बैठक में हड़ताली पुलिसकर्मियों को गिरफ्तार करने का आखिरी फैसला हुआ. यह ऑपरेशन देर रात शुरू किया जाना था, लेकिन अतिरिक्त बलों के पहुंचने में देरी की वजह से यह ऑपरेशन करीब साढ़े तीन बजे शुरू हो सका. आईजी अश्चिनी कुमार के नेतृत्व में बीएसएफ के जवानों ने हड़ताली पुलिसकर्मियों को अशोका होटल और दिल्ली जिमखाना की तरह से घेराबंदी शुरू कर दी. घेराबंदी पूरी होने के बाद अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट ने घोषणा की दिल्ली पुलिस के हड़ताली पुलिसकर्मियों का यह जमावड़ा गैरकानूनी है, लिहाज उन्हें गिरफ्तार किया जाता है.
दिल्ली पुलिस के हड़ताली जवानों पर कार्रवाई का मिला ईनाम
वहीं, बीएसएफ के तीखे तेवर देख पुलिस कर्मियों ने आत्मसमर्पण करने में ही अपनी भलाई समझी. करीब 21 मिनट के अंदर बीएसएफ ने अपना ऑपरेशन पूरा कर लिया. सभी हड़ताली पुलिसकर्मियों को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया. इस दौरान, किसी को भी यह उम्मीद नहीं थी कि यह ऑपरेशन इतनी आसानी से पूरा हो जाएगा. इस ऑपरेशन के सफलतापूर्वक खत्म होने के बाद तत्कालीन गृहमंत्री वाईबी चव्हाण ने बीएसएफ को संबोधित किया और घायल होने वो तीन बीएसएफ कर्मियों को 500-500 रुपए इनाम और प्रत्येक कंपनी को एक ट्रांजिस्टर ईनाम के तौर पर दिया.