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सत्ता विरोधी लहर के मुकाबले भाजपा का ध्रुवीकरण अस्त्र:- वोटों के बिखराव और छोटे दलों की सक्रियता से निपटने कांग्रेस आलाकमान गम्भीर नहीं

*बड़ा सवाल- क्या भाजपा सरकार के प्रति व्याप्त असंतोष का फायदा ले पाएगी कांग्रेस
-आशीष सोनी-

भोपाल, यशभारत। विधानसभा चुनाव में सत्ता विरोधी लहर के बावजूद अपनी सरकार बचाये रखने के लिए भाजपा ने स्ट्रेटजी बदलकर काम करना शुरू कर दिया है। सूत्र बताते हैं कि भाजपा के रणनीतिकारों ने एन्टीइनकम्बेंसी का मुकाबला वोटों के ध्रुवीकरण से करने का फुलप्रूफ प्लान तैयार किया है। पूरे प्रदेश में भाजपा सरकार के खिलाफ असंतोष के नैरेटिव को सैट करने में जुटी एमपी कांग्रेस कहीं भाजपा की इस नई चाल में उलझकर तो नही रह जायेगी, यह बड़ा सवाल है। इस बार के चुनाव में परिस्थितियां बिल्कुल अलग तरह की हैं। भाजपा को कांग्रेस के साथ सीधे मुकाबले में नुकसान नजर आ रहा है, इसी वजह से भाजपा का पूरा जोर अब वोटों के बटवारे के गणित पर आ टिका है। जिस तेजी के साथ एमपी के इलेक्शन में राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों की एंट्री हो रही है वह भाजपा से कहीं अधिक कांग्रेस के लिए खतरे की घण्टी है। सत्ताविरोधी जिन मतों का एकमुश्त लाभ कांग्रेस के खाते में जाना चाहिए, वह अगर अन्य छोटे दलों में बट गया तो सत्ता में वापसी का कांग्रेस का सपना टूट जाएगा।

सत्ता विरोधी लहर के मुकाबले भाजपा का ध्रुवीकरण अस्त्र:- वोटों के बिखराव और छोटे दलों की सक्रियता से निपटने कांग्रेस आलाकमान गम्भीर नहीं
सत्ता विरोधी लहर के मुकाबले भाजपा का ध्रुवीकरण अस्त्र:- वोटों के बिखराव और छोटे दलों की सक्रियता से निपटने कांग्रेस आलाकमान गम्भीर नहीं

सूत्र बताते हैं कि इस बार सालभर पहले से मध्यप्रदेश में कांग्रेस की वापसी के आसार बनने लगे थे। तमाम सर्वे रिपोर्ट्स के आधार पर राहुल गांधी समेत पार्टी के अन्य बड़े नेता एमपी में 150 से ज्यादा सीटें लाने दावे कर चुके हैं, पर क्या ये दावे हकीकत में बदल पाएंगे। भाजपा सरकार के खिलाफ आम जनता में नाराजगी को भांपकर कांग्रेस अपनी सरकार बनाने को लेकर उत्साहित तो बहुत है पर बड़ा सवाल यह है कि क्या इस नाराजगी का लाभ कांग्रेस उठा पाएगी। जानकारों का कहना है कि केवल एन्टीनकमबेंसी के भरोसे सत्ता हथियाने की कोशिशें कांग्रेस को महंगी पड़ सकती है। भाजपा के रणनीतिकारों ने डैमेज कंट्रोल पर बहुत तेज काम शुरू कर दिया है। सरकार और संगठन स्तर पर हर वो फैसले किये जा रहे हैं जिससे आम जनता में व्याप्त असंतोष को रोका जा सके। इसका असर यह हुआ कि कुछ माह पहले तक कांग्रेस और भाजपा के बीच सरकार में आने की संभावनाओं का प्रतिशत जहां 80-20 था, वह कुछ ही माहों में सीधे 50-50 पर आ गया। हालात यही रहे तो चुनाव आते-आते भाजपा ऊंची छलांग लगाते हुए कांग्रेस के सामने बड़ी चुनौती पेश कर देगी।

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दरअसल एन चुनाव से पहले वोटों का ध्रुवीकरण कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी समस्या बन चुका है। आम आदमी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने प्रदेश की सभी सीटों पर चुनाव लडऩे का एलान कर दिया है। आप के 10 उम्मीदवार तो घोषित भी हो चुके हैं। राष्ट्रीय स्तर पर भले ही विपक्ष के गठबंधन में सपा साथ हो लेकिन एमपी की 6 सीटों पर उसने भी अपने चेहरे उतार दिए हैं। आदिवासी समाज के बीच गहरी पकड़ रखने वाले युवा संगठन जयस ने भी प्रदेश की आदिवासी बाहुल्य 80 सीटों पर उम्मीदवार खड़े करने की घोषणा करके अपने इरादे जाहिर कर दिए हैं। महाकोशल समेत इससे लगी सीटों पर गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के प्रभाव से इंकार नही किया जा सकता। इन दलों के अलावा ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम भी ताल ठोंक चुकी हैं। जाहिर है जिन मुस्लिम वोटों का मुनाफा कांग्रेस को दिख रहा है, उसमें सेंध लगाने का काम ओवैसी की पार्टी करने की कोशिश करेगी।

चुनाव आते -आते इन दलों का मैदानी शिकंजा और कसता जाएगा। पिछले चुनाव नतीजों पर गौर करें तो दो दर्जन से अधिक सीटें ऐसी थी जिनमें कांग्रेस 5 हजार के कम अंतर से चुनाव हार गई थी। ये सीटें हाथ से फिसलने की मुख्य वजह वोटों का ध्रुवीकरण ही था। जानकारों का कहना है कि भाजपा से नाराज मतदाताओं के सामने कांग्रेस के अलावा छोटे दलों के रूप में और भी विकल्प रहे तो वोटों का बंटवारा तय है। भाजपा की रणनीति भी यही है कि उससे नाराज एकमुश्त वोट कांग्रेस के पाले में न जाने पाएं। कांग्रेस छोटे दलों के चक्रव्यूह में उलझकर रह जाये।

 

इन हालातों में भाजपा से कहीं अधिक कांग्रेस को सतर्क रहने की जरूरत होगी। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि चुनाव नजदीक आने के बावजूद कांग्रेस आलाकमान इस अहम मुद्दे पर गम्भीर नही है। इस स्थिति से निपटने की योजना पर अब तक काम शुरू नही हो पाया है। इसके उलट पार्टी में समन्वय की कमी साफ तौर पर देखी जा रही है। आने वाले समय में नेताओं के बीच तालमेल यदि गड़बड़ाया तो टिकट के बंटवारे के बाद उपजने वाले असंतोष को थामना भी कठिन हो जाएगा। सारी स्थितियां चुनाव के वक्त नियंत्रण से बाहर चली गईं तो पार्टी का पूरा चुनाव अभियान ही प्रभावित हो जाएगा। पीसीसी चीफ कमलनाथ टिकट वितरण के लिये योग्य उम्मीदवार के चयन की कमान खुद संभाले हुए हैं। नेताओं को जिम्मेदारियां सौंपी तो जा रही हैं लेकिन सबकुछ कमलनाथ की टीम ही तय कर रही है। कुलमिलाकर कांग्रेस का चुनाव अभियान एक नेता पर केंद्रित है। यह स्थिति भी कम चिंताजनक नही। जानकारों का कहना है कि पार्टी को संगठन स्तर पर कमजोर कडिय़ों को समय रहते ठीक करना होगा वरना अतीत भी इस बात का गवाह है कि कांग्रेस ही कांग्रेस की राह में सबसे बड़ा रोड़ा बनकर खड़ी हो जाती है।

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