जबलपुरमध्य प्रदेश

शहर में सैकड़ों साल से बना रहे नक्काशीदार ताजिये

कई पीढ़ियों से चली आ रही हुनरमंदी की शहर के साथ प्रदेश में हो रही तारीफ

जबलपुर,यशभारत। मातमी पर्व मुहर्रम पर रखे जाने वाले ताजिए निर्माण की परंपरा शहर में बरसों पुरानी है। पिछली पांच पीढ़ियों से ताजियों का निर्माण करने वाले चौबे ताजिया वाले शमीम और बाबा मोहम्मद कलीम शाह बड़ी मंडी मदार टेकरी इसका जीता जागता प्रमाण हैं। कड़ी मेहनत के बाद तैयार किए गए यहां के शानदार ताजिये की प्रसिद्धि न केवल जबलपुर बल्कि प्रदेश के बाहर भी है। नतीजा ये है कि पीढ़ियों से चली आ रही इस हुनरमंदी की सभी तारीफ कर रहे हैं। और तैयार होने के बाद यहां के ताजिये को देखने लोगों की भीड़ हर साल उमड़ पड़ती है।

जानकारी के अनुसार बाबा मोहम्मद कलीम शाह ब़डी मंडी मदार टेकरी के परिवार के द्वारा पिछले 600 सालों से और चांदनी चौक हनुमानताल में चौबे ताजिया वाले शमीम के परिवार के द्वारा पिछले 250 सालों से ताजिया निर्माण का कार्य किया जा रहा है जो कि अपने आप में एक रिकॉर्ड बना चुका है। दोनों जगहों में कई पीढ़ियोंं से ताजिया निर्माण करना एक परंपरा बन चुकी है। कलाकारों द्वारा बेहद कड़ी मेहनत के बाद ताजिए के झाड़, मेहराब, कंठा, खमियां, बेल, अंगूरी और जाली को तैयार कर आपस में जोड़ा जाता है और फिर इसे सजावट के लिए तैयार माना जाता है।

कार्डबोर्ड, तांबा, स्टील पर की जा रही नक्काशी
बदलते जमाने के साथ ताजिया की कंप्यूटर के माध्यम से नक्काशी की डिजाइन तय की जाती है और उसके बाद कार्डबोर्ड, तांबा, पीतल,निकल और स्टील की पतली प्लेट पर नक्काशी का काम शुरू किया जाता है.. ताजिए के एक हिस्से में ही नक्काशी करने में सबसे ज्यादा वक्त लगता है इसके बाद अलग-अलग रंगों के कागज और प्लास्टिक की झालर से झांकियों का निर्माण किया जाता है. खास बात यह है कि नक्काशी, जरदारी और फ्रेमिंग का पूरा काम हाथ से ही किया जाता है।

मुहर्रम के 7 माह पहले जुटते हैं तैयारियों में
बाबा मोहम्मद कलीम शाह, मंडी मदार टेकरी ने बताया कि
इमाम अली का उर्स है। हम सभी शहीदाने कर्बला का उर्स मनाते आ रहे हैं। ताजिया बनाने का काम हमारी पीढ़ियों से चला आ रहा है। करीब 600 सालों से ये काम हम कर रहे हैं। हम लोग पहले घर के ताजिया बनाते हैं और फिर बाहर के। मुहर्रम के करीब 7 माह पहले ताजिया बनाने में मेरे पूरे परिवार के सदस्य जुट जाते हैं। ताजिया निर्माण में करीब 70 हजार रुपए की लागत लग जाती है। इनके द्वारा बनाए जाने वाले ताजिया को लेने कटनी, सिहोरा, दमोह से भी लोग आते हैं। शहर का मुख्य ताजिया मंडी मदार टेकरी में हम लोग बनाते हैं जिसे हजरत बहादुर अली शाह मस्जिद सुलेमानी में रखा जाता है। बाबा मोहम्मद कलीम शाह के अनुसार मुहर्रम की 9 तारीख को अधिकतर ताजिए बैठाए जाते हैं और फिर दसवीं तारीख को कोतवाली होते हुए ताजिया जुलूस निकलता है।

शहर का सबसे लंबा ताजिया बनता है यहां…
हनुमानताल चांदनी चौक में रखा जाने वाले ताजिए का भी मुहर्रम पर विशेष महत्व है। ऊंचाई के मामले में यहां सबसे बड़ा ताजिया का निर्माण चौबे ताजिया वाले मोहम्मद शमीम और उसके परिवार के सदस्यों द्वारा पिछले 250 सालों से होता चला आ रहा है। मोह. शमीम के अनुसार उनके घर के करीब 15 और मोहल्ले में 15 लोग ताजिया निर्माण कार्य में जुटते हैं तब कहीं जाकर ताजिया समय पर बन पाते हैं। घर के ताजिया मुहर्रम के एक माह पहले बनाने शुरू किए जाते हैं और आर्डर वाले बाहर के और शहर के ताजिया बनाने का काम मुहर्रम के 6 माह पहले शुरू कर दिया जाता है। इस बार भोपाल, नरसिंहपुर, विक्रमपुर और स्लीमनाबाद में एक-एक ताजिया बनाकर मो. शमीम के घर से भेजा जा चुका है।

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