यश भारत खास : तीन हजार हेक्टेयर पर सिमट गया गन्ने का रकबा : गन्ने की फसल के प्रति किसानों का रूझान कम, कई वर्षो से गन्ने की फसल हुई सीमित, दूसरी फसल के प्रति बढ़ा रूझान

मंडला lगन्ने की फसल की जगह किसान अब अन्य फसलों की तरफ अपना रूझान करने लगे है। विगत छह वर्षो में गन्ने की फसल का रकबा नहीं बढ़ा है। विगत वर्ष 2021-22 में गन्ने का रकबा 2.70 हजार हेक्टेयर, वर्ष 2022-23 में 2.80 हजार हेक्टेयर, 2023-24 में 03.0 हजार हेक्टेयर था। इस वर्ष 2024-25 में भी तीन हजार हेक्टेयर रकबे का लक्ष्य रखा गया है। इस वर्ष गन्ने के रकबे में विगत वर्ष की अपेक्षा रकबे में कोई ज्यादा बढ़ नहीं हुई है।
विगत छह वर्षो में गन्ने का रकबा 3 हजार हेक्टेयर के आसपास ही है। इसके पहले तीन हजार हेक्टेयर से कम का रकबा वर्ष 2021-22 में 2.70 हजार हेक्टेयर था। जिसके कारण किसानों का गन्ने की फसल की तरफ कोई खास दिलचस्पी नहीं रह गई है। अन्य फसलों की तरफ बढ़ते रूझान के कारण गन्ने का रकबा अन्य फसलों की अपेक्षा कम ही है। जानकारी अनुसार जिले के गुड़ की प्रदेश में अपनी अलग पहचान है। जिले के गुड़ की मांग भी अधिक है। यहां बिना मिलावट और किसानों के प्रयास से गुड़ की गुणवत्ता काफी अच्छी है लेकिन अब किसानों का रूझान गन्ना के प्रति कम होने लगा है।
क्योंकि पहले किसान कुछ गन्नों को गुड़ बना लेते थे तो शेष गन्ने को सुगर मिल में बेच देते थे लेकिन जब से शुगर मिल बंद होने से किसानों ने गन्ना का उत्पादन कम कर दिया है। बताया गया कि शासन की ओर से जिले के गन्ना किसानों के लिये कोई योजना नहीं बनाई जा रही है। पिछले कुछ सालों से गन्ने का उत्पादन घटता जा रहा है। इस बार भी समर्थन मूल्य में गन्ना विक्रय के लिये कोई व्यवस्था नहीं है। गुड़ के दाम भी खास नहीं होने के कारण अधिकांश किसान अब गन्ने की फसल से दूरी बनाते जा रहे है। जिन किसानों ने इस वर्ष गन्ने की फसल लगाई थी, वे अब अन्य फसल लगाने की तैयारी कर रहे है। कुछ किसान गन्ने के स्थान पर गेहूं की बोवनी की तैयारी कर रहे है। किसानों का कहना है कि गन्ने की बोवनी एक बार करने के बाद यह फसल तीन साल तक देती है।
लेकिन इस बीच खेत खाली होने से किसान उसमें दूसरी फसलें नहीं ले पाता है। एक तरह से किसान के खेत गन्ने के लिये रिजर्व हो जाता है। उसमें भी यदि किसान को सही कीमत न मिले तो किसानों का मायूस होना स्वाभाविक है। दूसरे जिले में गन्ना का समर्थन मूल्य करीब 250 रूपये प्रति क्विंटल के आसपास है। वहीं जिले में करीब 180 रूपये प्रति क्विंटल के हिसाब से किसान गन्ना बेंचने को मजबूर है। अधिकांश किसानों का कहना है कि जिस तरह वर्तमान समय में गन्ने के जो भाव चल रहे है, उससे लागत निकालना भी मुश्किल होता है। मेहनत तो दूर की बात है।
जिसके कारण पिछले वर्ष तक लोग तीन साल तक खेतों में गन्ने की फसल रखते थे लेकिन इस बार किसान दो ही वर्ष में गन्ने की फसल मिटाकर गेहूं की फसल या अन्य फसलें लगा रहे है। जब किसानों से बात की गई तो उन्होंने बताया कि इस समय गन्ने की फसल लगाने में भी अधिक लागत आ रही है। वहीं इसके रखरखाव के चलते भी ज्यादा मेहनत गन्ने में लगती है। यही कारण है कि अधिकांश किसान दो वर्ष के बाद गन्ने को मिटाकर गेहूं की फसल और अन्य फसलों की तरफ अपना रूझान बढ़ा रहे है।