महिला बाल विकास विभाग के रिश्वतखोर बाबू को कोर्ट ने सुनाई 7 साल की सजा : ऑगनबाड़ी दीदी की नौकरी दिलाने के एवज में मांग रहा था रिश्वत
सागर यश भारत (संभागीय ब्यूरो)/ ऑगन बाड़ी में दीदी का पद दिलाने की ऐवज में रिश्वत लेने वाले आरोपी विजय कुमार चौधरी को सागर न्यायालय ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा- 7 के तहत 03 वर्ष का सश्रम कारावास एवं पॉच हजार रूपये अर्थदण्ड तथा धारा-13(1)(बी) सपठित धारा 13(2) के अंतर्गत 04 वर्ष का सश्रम कारावास एवं पॉच हजार रूपये अर्थदण्ड की सजा से दंडित किया गया है। मामले की पैरवी प्रभारी उप-संचालक (अभियोजन) श्री धर्मेन्द्र सिंह तारन के मार्गदर्शन में श्री लक्ष्मी प्रसाद कुर्मी सहा. जिला अभियोजन अधिकारी ने की। अभियुक्त विजय दिग्विजय सिंह की कांग्रेस सरकार में मंत्री तथा प्रदेश कांग्रेस में कार्यकारी अध्यक्ष रहे रहे सुरेंद्र चौधरी का सगा भाई बताया जा रहा है।
घटना संक्षिप्त में इस प्रकार है कि दिनांक 06.10.2017 को आवेदक विवेक तिवारी ने पुलिस अधीक्षक, लोकायुक्त कार्यालय सागर को सम्बोधित करते हुये एक लिखित शिकायत/आवेदन इस आशय का दिया कि उसकी पत्नी ने नयाखेड़ा आंगनबाड़ी में दीदी के पद के लिए 20 दिन पहले परियोजना 02 एकीकृत बाल विकास सेवा कार्यालय सागर में आवेदन किया था, जहां आवेदक ने कार्यरत अधिकारी विजय बाबू से संपर्क किया तो उसकी पत्नी को दीदी का पद दिलाने हेतु 2,000/-रू. (दो हजार रुपये) रिश्वत की मांग की, वह अभियुक्त को रिश्वत नहीं देना चाहता, बल्कि रंगे हाथों पकड़वाना चाहता है। आवेदन-पत्र के साथ आवेदक की पत्नी का सहमति पत्र भी संलग्न किया गया। तत्कालीन पुलिस अधीक्षक, वि.पु.स्था लोकायुक्त कार्यालय, सागर ने उक्त आवेदन पर अग्रिम कार्यवाही हेतु निरीक्षक उपमा सिंह को अधिकृत किया।
आवेदन में वर्णित तथ्यों के सत्यापन हेतु एक डिजीटल वॉयस रिकॉर्डर दिया गया इसके संचालन का तरीका बताया गया, अभियुक्त से रिश्वत मांग वार्ता रिकॉर्ड करने हेतु निर्देशित किया तत्पश्चात् आवेदक द्वारा मॉगवार्ता रिकार्ड की गई एवं अन्य तकनीकि कार्यवाहियॉ की गई एवं ट्रेप की कार्यवाही आयोजित की गई । नियत दिनॉक को आवेदक द्वारा अभियुक्त को राशि दी गई व थोड़ी देर बाद आवेदक का इशारा मिलने पर ट्रेपदल के सभी सदस्य कार्यालय में दाखिल हुए तथा आवेदक द्वारा हाथ के इशारे से बताये जाने पर प्रथम कक्ष/कम्प्यूटर कक्ष में कुर्सी पर बैठे व्यक्ति अर्थात् अभियुक्त विजय चौधरी को अपने घेरे में लिया।
निरीक्षक उपमा सिंह ने अपना व ट्रेपदल का परिचय देकर अभियुक्त का परिचय प्राप्त करने के बाद अभियुक्त से रिश्वत राशि के बारे में पूछे जाने पर उसने रिश्वत राशि आवेदक से लेकर कार्यालय के कम्प्यूटर कक्ष में रखे रजिस्टर में रख देना बताया। तत्पश्चात् अग्रिम कार्यवाही प्रारम्भ की गई।विवेचना के दौरान साक्षियों के कथन लेख किये गये, घटनास्थल का नक्शा मौका तैयार किया गया। अन्य महत्वपूर्ण साक्ष्य एकत्रित कर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988 की धारा-7 एवं धारा-13(1)(डी) सपठित धारा 13(2) एवं 420 भादवि का अपराध आरोपी के विरूद्ध दर्ज करते हुये विवेचना उपरांत चालान न्यायालय में पेश किया गया था।
विचारण के दौरान अभियोजन द्वारा अभियोजन साक्षियों एवं संबंधित दस्तावेजों को प्रमाणित किया गया। अभियोजन ने अपना मामला संदेह से परे प्रमाणित किया, जहॉ विचारण उपरांत न्यायालय-विषेष न्यायाधीष भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, सागर श्री आलोक मिश्रा की न्यायालय ने आरोपी को दोषी करार देते हुये उपरोक्त सजा से दंडित किया।