नगर निगम में दो शक्ति केंद्रों से भाजपा के सामने विकट स्थितियां, मेयर की घेराबंदी में जुटे भाजपा पार्षदों को मिल रही विपक्ष की ऑक्सीजन
मेयर और आयुक्त की गैरमौजूदगी में सिफर रहा परिषद की बैठक का नतीजा, 15 दिन बाद फिर सदन बुलाने की मांग
कटनी। शहर विकास के मुद्दों के बहाने नगर निगम में शह और मात का खेल शुरू हो चुका है। नगर निगम परिषद की कल हुई बैठक से साफ संदेश बाहर आ रहा है कि भाजपा के पार्षद ही अपनी पार्टी की महिला महापौर की घेराबंदी का ताना बाना बुन चुके हैं। विपक्ष तो अपना काम कर ही रहा है, किंतु सत्तापक्ष में भी हालत बिगड़े हुए हैं। हैरत की बात तो यह है कि भाजपा संगठन के पदाधिकारियों से लेकर पार्टी के बड़े नेता सब जानते बूझते हुए भी खामोश है। नगर निगम को बाहर से चलाने के आरोप नगर निगम परिषद की बैठक में जड़े गए, पर सवाल यही है कि आखिर ऐसा कौन सा पावर सेंटर है जो नगर निगम को बाहर से नियंत्रित करने की कोशिश कर रहा है। यह सवाल कितना अहम है यह तो पार्षद ही बेहतर जानते होंगे लेकिन फिलहाल तो मेयर प्रीति सूरी को अपनी पार्टी के लोगों से चुनौती मिलती दिख रही है। आमतौर पर नगर निगम की सत्ता मेयर के अनुकूल ही रहती आई है, किंतु इस बार की परिषद में दो शक्ति केंद्र स्थापित करने की कोशिशों से सीधे तौर पर टकराव की स्थितियां निर्मित होने लगी हैं। इसका असर शहर के विकास कार्यों पर पड़ रहा है। समय रहते भाजपा संगठन ने इन हालातों को नियंत्रित नहीं किया तो पूरा कार्यकाल आरोप प्रत्यारोप की भेंट चढ़ जाएगा और जनता को कुछ भी हासिल नहीं हो पाएगा। वैसे भी ढाई साल का वक्त बीत चुका है।
आउटसोर्स कर्मचारियों को लेकर इतने बेचैन क्यों हैं पार्षद ?
सूत्र बताते हैं कि जिन आउटसोर्स कर्मचारियों का मुद्दा परिषद की बैठक में छाया रहा, दरअसल वह सीधे तौर पर पार्षदों के निजी मुनाफे से जुड़ा हुआ है। कर्मचारियों के सत्यापन में यह बात जाहिर हो चुकी है कि जितने कर्मचारियों का पैसा वेतन के रूप में आहरित किया जा रहा था, वास्तविक रूप से फील्ड पर उतने कर्मचारी थे ही नहीं। चर्चा तो यह है कि फर्जी कर्मचारियों के नाम का पैसा सीधे पार्षदों की जेब में जा रहा था, जो सत्यापन के बाद से पार्षदों को मिलना बंद हो गया। इसी नुकसान को लेकर पार्षद परेशान है और आउटसोर्स कर्मचारियों की भर्ती मेयर इन काउंसिल के बजाय परिषद के माध्यम से कराए जाने का दबाव बना रहे हैं, ताकि अपनी सुविधानुसार नियुक्तियां कराई जा सके और मेयर तथा आयुक्त का इन नियुक्तियों में सीधा हस्तक्षेप समाप्त हो सके। सूत्र बताते हैं कि 856 आउटसोर्स कर्मचारी जबलपुर की जिस कंपनी के माध्यम से रखे गए थे उसका अनुबंध सितम्बर में समाप्त हो चुका है, लेकिन इसके पहले मार्च में ही कर्मचारियों को रखे जाने को लेकर टेंडर की प्रक्रिया पूर्ण कर ली गई थी। लोकसभा चुनाव की आचार संहिता की वजह से यह टेंडर जारी नहीं हो सका किंतु बताया जाता है कि आचार संहिता के दौरान ही इस टेंडर की शर्तों को किसी के दबाव में तत्कालीन नगर निगम आयुक्त के माध्यम से बदलवा दिया गया। बाद में टेंडर का पूरा मसौदा ही ठंडे बस्ते में चला गया। फिलहाल सेडमैप के जरिए कर्मचारी उपलब्ध कराए जा रहे हैं और आने वाले समय में एमआईसी नई कंपनी को अनुबंधित कर सकती है, जिसे रोकने के लिए परिषद में हो हल्ला मचाया गया। सूत्रों का कहना है कि 10 करोड़ तक के मामलों में निर्णय लेने का अधिकार मेयर इन काउंसिल को है, इस हिसाब से आउटसोर्स कर्मचारियों के बारे में फैसला एमआईसी में किया जा सकता है।
विधायक का तीखा – विधायक निधि के कार्यों में लगाया जा रहा अड़ंगा
परिषद के सम्मेलन में सबसे तीखा हमला तो क्षेत्रीय विधायक संदीप जायसवाल का था। उनका साफ कहना था कि विधायक निधि के कार्यों में निगम प्रशासन की ओर से अड़ंगा डाला जाता है। उन्होंने सदन में एक पार्षद द्वारा कही गई बात को दोहराया कि नगर निगम में अब अति हो रही है, दरवाजा तोड़ना ही पड़ेगा। विधायक ने कहा कि चौपाटी के लिए विधायक निधि से 3 करोड़ रुपए दिए गए, लेकिन डिमांड भेजने में देरी की वजह से राशि लेप्स हो गई। इसी तरह दुबे कालोनी से शनि मंदिर तक के कार्य के लिए आए ढाई करोड़ का उपयोग भी नहीं हो पाया। इस मामले में इंजीनियरों की भूमिका पर उन्होंने नाराजगी जाहिर की। उन्होंने शहर में महिलाओं तथा पुरुषों के लिए अलग अलग प्रसाधन की व्यवस्था करने की बात कहते हुए यह भी कहा कि समीक्षा बैठक करने का अधिकार उनका है, इस अधिकार का प्रयोग वे समय समय पर करते रहेंगे।
बैठक का नतीजा सिफर, कोई सार नहीं निकला
विपक्ष के पार्षदों ने परिषद की बैठक में महापौर प्रीति सूरी और आयुक्त नीलेश दुबे की गैरमौजूदगी को लेकर सवाल किए तो निगम सचिव ने जवाब दिया कि आयुक्त अवकाश पर हैं। मेयर भी शहर से बाहर है। इसकी जानकारी दोनों लोगों ने पत्र के जरिए दे दी थी। परिषद की बैठक 15 दिन बाद फिर से आयोजित करने की बात अनेक पार्षदों ने कही ताकि उस बैठक में महापौर और आयुक्त मौजूद रह सकें और जो निर्णय परिषद की बैठक में होंगे, उन पर अमल हो सके। सवाल यही उठता है कि कल की बैठक का नतीजा सिफर ही रहा तो फिर बैठक आयोजित की ही क्यों गई। क्या इसके पीछे की राजनीतिक एजेंडा था, या बैठक के एजेंडे के 3 बिंदुओं पर चर्चा होना थी। जिन 3 बिंदुओं पर एजेंडा तैयार किया गया, उन पर तो कोई नीतिगत फैसला हो नहीं पाया, बल्कि पूरे समय आरोप प्रत्यारोप का सिलसिला चलता रहा। कतिपय पार्षदों ने नगर निगम में उपेक्षा के आरोप भी जड़े। कहा कि पार्षदों की कोई सुनवाई नहीं हो रही।
सदन में उठी ये खास बातें
बैठक में पार्षद मिथलेश जैन ने कहा कि 98 लाख रुपए व्यय कर रोड स्वैपिंग मशीन क्रय की गई लेकिन वह चल नहीं सकी। पार्षद शिब्बू साहू ने सफाई व्यवस्था की हालत खराब होने का जिक्र किया, जिस पर आसंदी से निर्देशित किया गया कि 7 दिन के भीतर स्वास्थ्य समिति की बैठक कर व्यवस्था को दुरुस्त किया जाए। पार्षद सुखदेव चौधरी ने भी वार्डों में गंदगी और विकास कार्य प्रभावित होने का मुद्दा उठाया। एमआईसी सदस्य अवकाश जायसवाल ने कहा कि वार्डों में होने वाले विकास कार्यों की जानकारी उस क्षेत्र के पार्षद को ही नहीं मिल पाती। पार्षद विनोद यादव ने आरोप लगाया कि नगर निगम में मनमानी हावी है। मेयर के कक्ष में बाहरी लोग और ठेकेदार ज्यादातर बैठे नजर आते हैं। पार्षद श्याम पंजवानी, प्रभा गुप्ता, ईश्वर बहरानी ने वार्डों में कर्मचारियों की कमी की ओर ध्यान आकृष्ट कराया। मिथलेश जैन ने कहा कि टेंडर के बावजूद काम नहीं हो रहे। उन्होंने 15 पत्र नगर निगम को लिखे, जिसके जवाब भी नहीं दिए गए।