जीवन ज्योतिष : कुंडली में विशेष योग से बनते है धर्माचार्य, बागेश्वर धाम, करौली सरकार और पंडोखर सरकार के पास है सिद्दियां

सामाजिक सरोकार में जो जीवन हम व्यतीत करते हैं उसमें धर्म का स्थान प्रथम होता है जिसमें हम अटूट विश्वास करते हैं वर्तमान में जो हमारे कथावाचक अथवा महात्मा जो सन्यासी या धर्मगुरु बनते है। उसमें प्रथम नक्षत्रों का क्या योगदान है। इस विषय पर यशभारत के लोकप्रिय कार्यक्रम जीवन ज्योतिष में आज यशभारत के संस्थापक आशीष शुक्ला ने अरुणोदय पंचाग के रचियता ज्योतिषाचार्य पं. लोकेश व्यास से विस्तृत चर्चा की । इस दौरान धर्माचार्यों की जन्मकुंडली पर विचार किया गया।
ज्योतिषाचार्य पं. लोकेश व्यास के अनुसार जो भी धर्माचार्य धर्म के लिये काम कर रहे हैं उसमें बहुत सारी श्रेणियां होती हैं जैसे कथा करने वाले अलग होते हैं,भाग्य बताने वाले अलग होते हैं और जो धर्म के नाम पर आडंबर और पांखड करते हैं वो भी अलग तरह के ग्रह योग होते हैं । जीवन ज्योतिष में एक सन्याशी योग, जो आदि शंकराचार्य जी की परंपरा है। उसके नीचे पूरा भारत खड़ा है। हिन्दुस्तान में कथा वाचकों के माध्यम से हिन्दुधर्म का प्रचार प्रसार लगातार किया गया जा रहा है। जो विशेष योगों से निर्मित है।
यह होता है सन्यास योग
ज्योतिषाचार्य पं. लोकेश व्यास ने चर्चा के दौरान सन्यास योग की चर्चा की। श्री व्यास ने कहा कि जैसे अगर कोई चक्रवर्ती सम्राट है या जिसके पास बहुत अधिक धन वैभव है, यह कुण्डली के नवम् भाव में निर्मित होता है। यहां अगर शनि बैठ जाये और किसी ग्रह की उस पर दृष्टि ना हो तो अच्छा भला आदमी जो धन वैभव से परिपूर्ण है। उसमें विरक्ति आ जायेगी , वो सन्यास की ओर बढ़ जायेगा। या कुण्डली के नवम भाव में चन्द्रमा किसी ग्रह से ग्रस्त ना हो तो व्यक्ति सब कुछ छोड़कर सन्यास की ओर जायेगा और उच्च कोटि का सन्यासी बन जायेगा। ये पहली बात है।
आचार्य रजनीश और गौतम बुद्ध हुए ख्यातिलब्ध
दूसरी बात ये है कि प्रावज्य एक योग होता है प्रावज्य अर्थात घर से दूर चले जाना एकांत में, हम बात करें उदाहरण के लिये जबलपुर की शख्सियत आचार्य रजनीश जिन्हें ओशो के नाम से जाना जाता है इनके अष्टम भाव में पांच ग्रहों का योग था जो प्रावज्य योग बना । जिन्होंने धर्म, कर्म, उपदेशक बने। जिन्होंने विश्वविख्यात ख्याति अर्जन किया। हम गौतम बुद्ध की बात करें तो उनके दशम भाव में प्रावज्य योग और दशमेश स्वयं उस भाव में शामिल हुआ जिस कारण उनको ख्याति मिली। इसके साथ साथ कुछ योग ऐसे भी होते हैं जहां पर नवम्-पंचम योग और लग्न से योग बन जाये। शुभ ग्रहों की दृष्टि पड़ जाये तो प्रावज्य योग बनता है साथ साथ अन्य योग बनते हैं जिससे साधु सन्यासी या धर्म उपदेशक व्यक्ति बन जाता है।
यह हैं कुंडली की महत्वपूर्ण स्थितियां
ज्योतिषाचार्य पं. लोकेश व्यास ने कार्यक्रम के दौरान बताया कि ग्रहों की भी बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होती है अगर प्रावज्य योग में सूर्य ग्रह से कोई अस्त नहीं है ग्रह तो यह फ लीभूत होता है अगर सूर्य बहुत अधिक बलवान है तो व्यक्ति जो है वह नदी किनारे रहता है । पर्वतों पर रहता है । सूर्य और शक्ति की उपासना करके धर्म का विशेष उपदेशक बन जाता है । अगर चंद्र ग्रह अधिक बलवान है तो व्यक्ति शैव परंपरा में होते हुये गुरू शिष्य परंपरा का पालन करते हुये अपने गुरू का नाम रोशन करता है । अगर मंगल ग्रह अधिक बलवान है तो व्यक्ति लाल वस्त्रों को धारण करता हुआ एकांत में और कभी कभी चिड़चिड़े स्वभाव का भी हो सकता है । बुध का अगर विशेष प्रभाव पड़ गया तो बुध वाणी का नियंत्रण कर्ता ग्रह होता है तो व्यक्ति मांत्रिक के साथ साथ तांत्रिक भी हो जाता है और लग्न पर पाप ग्रहों की दृष्टि पड़ जाये । यह ग्रहों की दृष्टि है। अगर हम शनि ग्रह की बात करें तो हिन्दुस्तान के जो नागा साधु है जो असली ताकत हिन्दुस्तान की कहनी चाहिये उनमें लगभग अगर कुण्डलियों का विश्लेषण किया जायेगा तो शनि ग्रह बेहद पॉवरफुल होगा, जिसने 12 साल की तपस्या के बाद जो नागा साधु की परंपरा है उसमें आकर नागा साधु बने और विश्व के लिये गौरव पूर्ण कार्य कर रहे हैं ।
पंडोखर धाम, बागेश्वर धाम, करौली सरकार नई पंरपरा नहीं
ज्योतिषाचार्य पं. लोकेश व्यास ने कहा कि पंडोखर धाम, बागेश्वर धाम, करौली सरकार नई पंरपरा नहीं है। यह अत्यंत पुरानी परंपरा है। नंदी नाडी ज्योतिष साउथ में विख्यात है। साथ ही उत्तर में भी ज्योतिष की गहन परंपरा है। जिसमें भविष्य का आंकलन किया जा सकता है। श्री व्यास ने कहा कि सिद्दियां होती है, ज्योतिष वेदों का नेत्र है और संत, मंत्र से इंकार नहीं किया जा सकता।तीनों जगह सिद्धियां है। यह सच है। सोशल मीडिया के माध्यम से देखा गया है। स्वामी विवेकानंद जी के गुरु रामकृष्ण परमहंस की कुंडली में विशेष योग थे। जिसके चलते वह मूर्ति में प्राण फूंकने वाले पहले व्यक्ति थे। जिसमें माता महाकाली को वह साक्षात भोग लगाते थे। सनातन धर्म अबूझ पहेली है।
पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री की कुंडली
ज्योतिष दर्पण के अति विशेष विश्लेषण में ज्योतिषाचार्य पंडित लोकेश व्यास ने बताया कि किसी भी व्यक्ति की जन्म कुंडली के लिए उसकी जन्म तारीख जन्म समय और जन्म स्थान की जानकारी होना अनिवार्य है । पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री की कुंडली के विषय में उन्होंने बताया कि जैसे किसी भी व्यक्ति की कुंडली से उसके व्यक्तित्व और जीवन का अनुमान लगाया जा सकता है उसी तरह किसी के व्यक्तित्व से भी उसके ग्रहों का अनुमान लगाया जा सकता है। अरुणोदय पंचाग के रचियता लोकेश व्यास ने यशभारत के संस्थापक आशीष शुक्ला को बताया कि बागेश्वर धाम के धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री की कुंडली में निश्चित ही ग्रहों की युति स्पष्ट रूप से होगी। साथ-साथ नवमांश में चंद्र और दरेस कण में भी नवम पंचम योग जरूर हो सकता है और पंडित धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री की लग्न या चंद्र कुंडली पर किसी ना किसी तेज ग्रह की दृष्टि से भी होना चाहिए । कुंडली में बुद्ध और गुरु का ताक़तवर होना । धीरेन्द्र कृष्ण शास्त्री की कुंडली में स्पष्ट रूप से उनका व्यक्तित्व उनकी बोली के कारण दिखाई दे रहा है ।
आसाराम बापू, राम रहीम गए जेल में
ज्योतिषाचार्य पं. लोकेश व्यास ने कहा कि प्रावज्य योग के कारण ये विश्वविख्यात हुए। लेकिन ग्रह दशाओं के कारण स्थितियां बदल जाती हैं। आसाराम बापू की कुंडली में नवम में नीच का शनि पड़ा था और वह जेल गए और बाहर नहीं आ पाए है। यह पक्की बात है।
हिन्दुस्तान में वाक सिद्धी का प्रभाव
ज्योतिषाचार्य पं. लोकेश व्यास ने कहा कि हिन्दुस्तान में वाक सिद्धि का प्रभाव है और गुरु ग्रह की कृपा है।
हस्तरेखा में विशेष चिन्ह
तर्जनी उंगली अनामिका ऊंगली से ऊंची हो जाए और गुरु पर्वत पर स्वास्तिक का निशान हो । तो व्यक्ति सन्यासी हो जाता है। कुछ विद्यार्थी होते है जिनमें यह लक्षण होते है तो वह घर से भाग जाते है। बाद में ग्रहदशा बदलने पर वह घर आ जाते है।