खुशियों का दीपोत्सव : शाम 4 बजकर 46 मिनिट के बाद स्थिर लग्न गौधूलि प्रदोष व्यापिनी अमावस्या का शुभ मुहूर्त…देखें पूरा वीडियो….
- यश भारत जीवन ज्योतिष में पं. लोकेश व्यास

जबलपुर, यशभारत। दीपोत्सव महापर्व की अनंत महिमा है। पांच दिवसीय त्योहार में आम जन मानस को सपनों के पंख लगते है। तो वहीं माँ आद्यशक्ति महालक्ष्मी का घर में शुभागमन के साथ ही साथ धनतेरस, परमा, रुप चौदस का अत्यंत महत्व है। इस बार दीपावली का शुभ मुहूर्त शाम 4 बजकर 46 मिनिट के बाद स्थिर लग्र में है। इस मुहूर्त में पूजन करना शास्त्र सम्मत और विशेष फलदाई है। जिससे सभी की मनोकामनाएं पूर्ण होंगी। अरुणोदय पंचांग के रचयिता और प्रख्यात ज्योतिषाचार्य पं. लोकेश व्यास ने यशभारत जीवन ज्योतिष में चर्चा के दौरान यशभारत के संस्थापक आशीष शुक्ला से महत्वपूर्ण जानकारी सांझा की और दीपोत्सव पर्व पर विस्तार से चर्चा की।
यशभारत के संस्थापक आशीष शुक्ला से चर्चा करते हुए पं. लोकेश व्यास ने बताया कि पांच दिवसीय महापर्व का विशेष महत्व है। विशेष संयोग में पर्व की शुरुआत धनतेरस से होती है।
1-धनतेरस- दीपावली के महापर्व की शुरूआत कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन से हो जाती है। इस दिन धनतेरस का पर्व मनाया जाता है। धनतेरस पर आरोग्य और चिकित्सा विज्ञान के देवता भगवान धनवंतरि के पूजन का विधान है।
यदि संधि विच्छेद करें तो धन का 13 गुना बढऩा ही धनत्रयोदशी है। सभी लोग जानते है कि इस दिन बर्तन खरीदने की परंपरा है। जिसका सबसे बड़ा कारण है कि भगवान विष्णु के अंशावतार श्री धनवंतरि अमृत कलश लेकर, समुद्र मंथन के दौरान प्रकट हुए थे। अमृत कलश को देखकर ही आम जन मानस में बर्तन खरीदने की परंपरा शुरु हुई । कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी के दिन भगवान धनवंतरि आए। शुरुआती दौर में चांदी के बर्तन खरीदने का महत्व है। जो चांदी के बतज़्न खरीदते है उन्हें पूरे साल चंद्रमा से शीतलता मिलती है। इसके साथ सामान्य बर्तन भी खरीदे जाते है।
2-नरक चौदस- नरक चौदस को छोटी दीपावली के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने नरकासुर नामक राक्षस का वध किया था, उसी के नाम से इस दिन को नरक चौदस कहा जाता है। इसे अनेक नामों से जानते है। जैसे पश्चिम बंगाल उड़ीसा में काली चौदस आदि। इस विशेष दिन यदि कोई श्रद्धा के साथ व्रत करता है तो उसे यमराज का भय नहीं रहता। जिससे जुड़ी कथा है कि रंति नामक के बहुत प्रतापी राजा हुए और जब उनको यमराज लेने आया तो उन्होंने अनुनय विनय किया और पूछा आखिर उन्होंने क्या पाप किया, जिसके कारण उन्हें नर्क में जाना पड़ेगा। यमराज ने प्रसन्न होकर एक वर्ष का समय दिया। जिसके बाद राजन ने ऋ षियों से विमर्श किया। जिसके बाद उन्हें ज्ञात हुआ कि उनके द्वार से एक ब्राम्हण भूखा लौट गया था, जिस कारण उन्हें यह पाप लगा। जिसके बाद उन्होंने नरक चौदस का व्रत किया और भयमुक्त हुए।
– यमराज को करते है दीपक दान
इस विशेष दिवस यदि घर का मुखिया यमराज को दीपक दान करे तो यमराज उनके घर में प्रवेश नहीं करता। जिसमें विधि स्वरुप, घर का मुखिया पूरे घर में
दीपक घुमाकर एकांत में दीपक जलावे और उस दीपक को घर का कोई सदस्य ना देखे, तो विशेष फ लदाई है।
3-दीपावली- दीपावली के पांच दिन के महोत्सव का सबसे महत्वपूर्ण पर्व कार्तिक मास की अमावस्या तिथि को मनाया जाता है। दीपावली पर गणेश-लक्ष्मी के पूजन का विधान है। इसके साथ ही इस दिन भगवान श्री राम के लंका विजय के बाद अयोध्या वापस लौटने के त्योहार के रूप में भी मनाया जाता है। जिसमें कथा है कि
समुद्र मंथन के दौरान माता लक्ष्मी भी आठवें रत्न के रूप में शरद पूर्णिमा के दिन प्रगट हुई और भगवान विष्णु का वरण किया और दीपावली के दिन बैकुंठ में प्रवेश किया। जिस कारण दीपोत्सव पर्व में माता महालक्ष्मी के पूजन का विशेष विधान है।
4-गोवर्धन पूजा या अन्नकूट- दीपावली के अगले दिन प्रतिपदा पर गोवर्धन पूजा या अन्नकूट का त्योहार मनाने का विधान है। ये पर्व भगवान कृष्ण के द्वारा गोवर्धन पर्वत उठा कर मथुरावसियों की रक्षा करने के उपलक्ष्य में मनाया जाता है।
परमा का विशेष महत्व है। साथ ही परंपराओं के अनुसार इस दिन लोग अपने कुलदेवता की भी विशेष आराधना करते है। इस वर्ष सूर्य ग्रहण के कारण अन्नकूट अगले दिन मनाया जाएगा।
5- भाई दूज- भैय्या दूज या यम द्वितिया का पर्व कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है। इस दिन यमुना स्नान का विशेष महत्व होता है। जिसमें कथा है बहनों द्वारा भाइयों को तिलक करके उनकी लंबी आयु की कामना की जाती है।
यह है विशेष शुभ मुहूर्त
प्रदोष व्यापिनी अमावस्या में महालक्ष्मी पूजन शास्त्र सम्मत है। यह मुहूर्त सोमवार 24 अक्टूबर को शाम 4 बजकर 46 मिनिट के बाद रात्रि अंत तक लक्ष्मी कुबेर पूजन के लिए शुभ मुहूर्त है। विशेष शुभ मुहूर्त शाम 4 बजकर 46 मिनिट से रात्रि 8 बजकर 55 मिनिट तक गोधूली प्रदोषकाल और स्थिर लग्र का शुभ मुहूर्त रहेगा। वहीं, सामान्य शुभ मुहूर्त रात्रि 8 बजकर 55 मिनिट से रात्रि 1 बजकर 24 मिनिट तक रहेगा। 1 बजकर 24 मिनिट से रात्रि 3 बजकर 36 मिनिट तक स्थिर लग्र का विशेष शुभ मुहूर्त है।