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आस्था की डुबकी : भगवान ब्रम्हा की तपोभूमि ब्राम्हण घाट में भरने वाले ऐतिहासिक  बरमान मेले की दूर-दूर तक फैली है कीर्ति 

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नरसिंहपुर यशभारत। भगवान ब्रम्हा की तपोभूमि ब्राम्हण घाट में मकर संक्राति के अवसर पर भरने वाले ऐतिहासिक बरमान मेला का इन दिनों जिले सहित आसपास के पड़ोसी जिलों से आकर श्रद्धालु माँ नर्मदा में पुण्य की डुबकी लगाकर पूजन अर्चन कर मेले का लुत्फ उठा रहे है। सबसे लंबी अवधि तक चलने वाला नरसिंहपुर में ऐतिहासिक बरमान मेला शुरू हो गया है। यह करीब एक पखवाड़े तक चलेगा। उल्लेखनीय है कि नर्मदा तट के मेलों में बरमान का मेला प्रदेश में अपना खास दर्जा है, धर्म, आस्था और मनोरंजन के साथ प्राचीन भारत के दर्शन भी यहां होते हैं।

प्रदेश में अपनी अमिट पहचान रखने वाले बरमान के इस ऐतिहासिक मेला का आयोजन भगवान ब्रम्हा की तपोभूमि कहे जाने वाले ब्रह्मांड घाट में सैकड़ों सालों से किया जा रहा है। दूरदराज के कई जिलों के लोग इस मेले में पूजन, स्नान के साथ-साथ मनोरंजन और खरीददारी के लिए उमड़ते हैं नर्मदा के इस किनारे पर लगने वाले भटे अपने जायके के लिए सारे प्रदेश में विख्यात हैं। यही वजह है कि यहां का सबसे जायकेदार भोजन भटे के भर्त और बांटी है मकर संक्रांति पर जहां भक्तों ने नर्मदा में आस्था की डुबकी लगाई वहीं मेले के शुभारंभ के साथ यहां भोजन और मनोरंजन का भी भरपूर लुत्फ उठाया।

दूर-दूर तक फैली है मेले की कीर्ति

ऐतिहासिक बरमान मेला की कीर्ति दूर-दूर तक फैली है। यहाँ महाकौशल, विंध्य व बुंदेलखंड के अलावा महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश आदि अन्य राज्यों से आए लोग मौजूदगी दर्ज कराते हैं। नर्मदा किनारे बरमान के मेले तले विभिन्न पृष्ठभूमियों और रीति-रीवाज से जुड़े लोगों का संगम करीब एक महीने तक चलता है। नदियों के किनारे पैदा हुई मेला संस्कृति ने कई परंपराओं व मान्यताओं को हमेशा ही पोषित किया है। नरसिंहपुर जिले का बरमान मेला भी मूल्यों व परंपरा संग सदियों का सफर पूरा कर चुका है।

जानकारी के अनुसार यहाँ आज भी 12 वीं सदी की वराह प्रतिमा और रानी दुर्गावती द्वारा ताजमहल की आकृति का बनाया मंदिर मौजूद है। इसके अलावा, यहाँ स्थित 17 वीं शताब्दी का राम-जानकी मंदिर, 18वीं शताब्दी का हाथी दरवाजा, छोटा खजुराहो के रूप में ख्यात सोमेश्वर मंदिर, गरुड़ स्तंभ, पांडव कुंड, ब्रह्म कुंड, सतधारा, दीपेश्वर मंदिर, शारदा मंदिर व लक्ष्मीनारायण मंदिर इतिहास का जीवंत दस्तावेज हैं। बरमान मेले का महत्व नर्मदा नदी की वजह से भी है। स्कंद पुराण में उल्लेख है कि ब्रह्मा ने नर्मदा तट के सौंदर्य से अभिभूत होकर यहाँ तप किया, इस वजह से ब्रह्मांड घाट कहलाया। कालांतर में ब्रह्मांड घाट का अपभ्रंश बरमान हो गया। यहाँ के पांडव कुंड के बारे में कहा जाता है कि वनवास के समय जब यहाँ पांडव ठहरे तो उन्होंने एक कुंड में नर्मदा का जल लाने का प्रयास किया, वह पांडव कुंड बन गया। पास में ही पांडव गुफाएँ हैं। वहीं सूर्य कुंड व ब्रह्म कुंड के बारे में मान्यता है कि इसमें स्नान करने से कुष्ठ रोग, चर्म रोग व मिर्गी दूर होती है।

बरमान के प्राचीन ऐतिहासिक मंदिर जीर्ण-शीर्ण हालत में हैं। कई तो जीर्णोद्धार की आस में खंडहर में बदलते जा रहे हैं। नदी की श्रृंगार सामग्री रेत व अन्य खनिज संपदा का इतना अधिक दोहन कर दिया गया कि नर्मदा के रेत घाट और सीढ़ी घाट कीचड़ में सन गए हैं। इस स्थल के विकास के लिए कुछ समय से बरमान विकास प्राधिकरण बनाने की माँग भी होती आ रही है। यहाँ के प्रसिद्ध भुट्टे और गन्ने का स्वाद तो लजीज माना ही जाता है, अब इसकी खेती को भी बढ़ावा देने की जरूरत है। नर्मदा के प्रति श्रद्धा प्रकट करने के लिए लोक परंपरा का गीत बंबुलिया सिर्फ नरसिंहपुर जिले में ही गाया जाता है। यह एक ऐसा सामूहिक गान है जो यहाँ के अलावा नर्मदा के उद्गम स्थल अमरकंटक से लेकर भरूच की खाड़ी तक कहीं भी सुनने को नहीं मिलता।

मेले में स्वास्थ्य, कृषि, वन, लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी, महिला एवं बाल विकास, उद्योग, रेशम, मत्स्यपालन समेत कई विभागों की प्रदर्शनी आकर्षण का केंद्र होती है। इस ऐतिहासिक बरमान मेले में प्रमुख तौर पर कृषि यंत्र, लोहेपीतल व ताँबे से बने बर्तन आकर्षण का केंद्र रहे। वहीं सर्कस, झूले, मौत का कुआँ, मीना बाजार आदि ने भी लोगों को अपनी ओर खींचा। इसमें कपड़े, ज्वेलरी, फर्नीचर, बर्तन, किराना, मिठाइयाँ, मनिहारी सामान, इलेक्ट्रॉनिक, इलेक्ट्रिक उत्पाद, चमड़े से बनी वस्तुओं का संकलन हैंl

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