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MP हाईकोर्ट के 28वें चीफ जस्टिस की ली शपथ, CM-मोहन यादव – विवेक तन्खा ने दी बधाई
जस्टिस सुरेश कुमार कैत को मध्यप्रदेश हाईकोर्ट का नया चीफ जस्टिस बनाया गया है। बुधवार(25 सितंबर) को कैथल (हरियाणा ) के रहने वाले सुरेश 28वें चीफ जस्टिस के तौर पर शपथ ले ली है। भोपाल के राजभवन में राज्यपाल मंगुभाई पटेल सुरेश कुमार को शपथ दिलाई। शपथ ग्रहण समारोह में मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव, पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह सहित कई नेता और अधिकारी मौजूद रहे।
अतिरिक्त जज के तौर पर नियुक्ति के बाद 2013 में प्रमोशन पाकर परमानेंट जज बने।
काकौत में हुआ जन्म, 2013 में बने परमानेंट जज
चीफ जस्टिस सुरेश कुमार का जन्म 24 मई 1963 को कैथल के काकौत गांव में हुआ था। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में पोस्ट ग्रेजुएशन के बाद सुरेश ने दिल्ली विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई की। ग्रेजुएशन के दौरान एनएसएस में यूनिट लीडर के रूप में चुने गए थे। 1989 में वकील के तौर पर पंजीकृत कराया। 2004 में केंद्र सरकार के स्थायी वकील के रूप में नियुक्त किए गए। 2008 में दिल्ली हाईकोर्ट में अतिरिक्त जज के तौर पर नियुक्ति के बाद 2013 में प्रमोशन पाकर परमानेंट जज बने।
चीफ जस्टिस सुरेश कुमार का जन्म 24 मई 1963 को कैथल के काकौत गांव में हुआ था। कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से राजनीति विज्ञान में पोस्ट ग्रेजुएशन के बाद सुरेश ने दिल्ली विश्वविद्यालय से कानून की पढ़ाई की। ग्रेजुएशन के दौरान एनएसएस में यूनिट लीडर के रूप में चुने गए थे। 1989 में वकील के तौर पर पंजीकृत कराया। 2004 में केंद्र सरकार के स्थायी वकील के रूप में नियुक्त किए गए। 2008 में दिल्ली हाईकोर्ट में अतिरिक्त जज के तौर पर नियुक्ति के बाद 2013 में प्रमोशन पाकर परमानेंट जज बने।
यूपीएससी और रेलवे के पैनल वकील भी रह चुके हैं
जस्टिस कैत ने कई महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई की है, जिनमें दिल्ली के जामिया हिंसा और नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के खिलाफ विरोध प्रदर्शन शामिल हैं। उनके निष्पक्ष और संतुलित दृष्टिकोण की न्यायिक क्षेत्र में सराहना की जाती है।
विवेक तन्खा ने जस्टिस सुरेश कुमार कैत को दी बधाई
राज्यसभा सांसद और सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता विवेक तन्खा ने जस्टिस सुरेश कुमार कैत को बधाई दी। तन्खा ने X (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा, “मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में पहली बार एक दलित न्यायाधीश मुख्य न्यायाधीश का पद संभालेंगे। अगर अगली बार एक आदिवासी मुख्य न्यायाधीश बने, तो न्यायिक प्रणाली में विश्वास और बढ़ेगा।