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.मकर संक्रांति से जबलपुर के तिलवारा घाट का विशेष नाता: यहां 11वीं सदी से मेला लगता है

 

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जबलपुर, यशभारत। माता नर्मदा के आंचल में समाया हुआ बेहद सुंदर शहर है, जो कि आपका मनमोह लेगा. वहीं, जबलपुर में मकर संक्रांति का मेला मुख्यत: नर्मदा के तटों पर ही लगता है. नर्मदा के तिलवारा घाट पर लगने वाला मेला खास बेहद खास है, क्योंकि इसका इतिहास काफी पुराना है. कहा जाता है कि यहां 11वीं सदी से मेला लगता है.
कहा जाता है कि कल्चुरी राजवंश के युवराज देव प्रथम का विवाह चालुक्य वंश की राजकुमारी नोहला देवी से हुआ था. कहावत यह भी है कि नोहला देवी भगवान शिव की उपासक थीं और नर्मदा शिव की पुत्री हैं. मान्यता है कि नोहला देवी तिलवारा घाट पर मकर संक्रांति पर तिल अर्पण करने आती थीं, तभी से यहां मेला लगता रहा है.
ैं. यहां नर्मदा नदी के तट पर शिव मंदिर है, जिसके बारे में कहा जाता है कि यह सदियों से है. इस मंदिर में मकर संक्रांति पर भगवान शिव को तिल चढ़ाया जाता है. इसलिए इन महादेव का नाम तिल भांडेश्वर महादेव है. बता दें कि जबलपुर में मूर्तियों का इतिहास दूसरी शताब्दी के बाद से मिलता है.

हजार साल पुराने मंदिर – जब यहां पर कलचुरी राजाओं का शासन था, तब से जबलपुर के आसपास के इलाके में अलग-अलग भगवान की मूर्तियां मिलती हैं. यहां के मंदिरों का इतिहास भी हजार साल से पुराना है. इसमें त्रिपुर सुंदरी का मंदिर लगभग डेढ़ हजार साल पुराना है. कई मंदिर ऐसे हैं जिनका इतिहास 1000 साल से पहले का है. इसके पहले लंबे समय तक जबलपुर के बड़े भूभाग में ये राज करते थे. उन्हीं की समृद्ध संस्कृति के दौरान जबलपुर के आसपास के इलाकों में बहुत सारे मंदिर बनाए गए. तिलवाड़ा का यह मंदिर भी इसी काल में बनाया गया.

कई जिले से आते हैं लोग : इस मंदिर को बहुत विस्तार नहीं दिया गया लेकिन मंदिर और इस घाट की बहुत मान्यता है. इसीलिए मकर संक्रांति के दिन यहां बड़ा मेला लगता है. जिसमें जबलपुर, सिवनी और कटनी जिलों के लोग आते हैं और मां नर्मदा में स्नान करते हैं. इस घाट पर पूजा पाठ करने वाले गंगा चरण दुबे ने बताया कि उनकी कई पीढ़ियां नर्मदा के घाट पर ही भक्तों को तिल का तर्पण करवाती रही हैं. इसका विशेष महत्व है और कई लोग अपने पूर्वजों की याद में तिल से तर्पण करते हैं.

मकर के कष्ट निवारण के लिए करते हैं पूजन

14 जनवरी को सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण होते हैं। जिसमें सूर्य मकर राशि में आते हैं। मगर को संस्कृत में मकर कहा जाता है। मकर मां नर्मदा का वाहन है और मकर राशि का स्वामी शनि है। जब सूर्य मकर राशि में आते हैं तो मकर को कष्ट होता है जिसके निवारण के लिए शनि ने सूर्य भगवान को तिल अर्पण किया था। धर्म ग्रंथों में उल्लेख है कि सूर्य को तिल अर्पण करने से शनि प्रसन्न् होते हैं। इसलिए नर्मदा के तिलवारा घाट में विशेष रूप से तिल का दान किया जाता है।

कलचुरिकाल से मेला का स्वरूप

कलचुरि राजा युवराज देव प्रथम (वर्ष 915-945) बड़ा प्रतापी राजा था। तब से यहां मेला शुरू हुआ। इसके पहले यहां मकर संक्रांति को मड़ई भरती थी। दरअसल राजा युवराज देव का विवाह दक्षिण के चालुक्य वंश के राजा अवनि वर्मा की बेटी नोहला देवी से हुआ। जो शिव उपासक थीं और नर्मदा शिव पुत्री हैं। जनश्रुति है कि नर्मदा तट पर सूर्य को तिल अर्पण करने से मां नर्मदा के वाहन मकर के कष्टों का निवारण होता है और मां नर्मदा प्रसन्न होकर भक्तों को सुख-समृद्धि देती हैं। इसी मान्यता के कारण मकर संक्रांति पर तिलवारा घाट में लाखों की संख्या में लोग पहुंचते हैं।

भेड़ाघाट में हर साल मकर संक्रांति पर तीन दिन का मेला लगता है. हालांकि बीते वर्षों में मेले की रौनक को कोरोना ने फीका कर दिया था, लेकिन इस बार अभी तक ऐसी कोई बात नहीं दिखाई दे रही है तो लोगों में उत्साह भी है और यहां भी तैयारियां पूरी हो गई हैं. यहां का मेला बेहद ही खूबसूरत होता है.
गौरी घाट- जब नर्मदा तटों की बात आएगी और माता नर्मदा का बेहद ही खूबसूरत तट गौरी घाट का नाम जरूर आएगा. यकीनन अगर जबलपुर में नर्मदा स्नान की बात आती है तो सबसे पहले गौरी घाट का नाम दिमाग में आता है. ऐसे में मकर संक्रांति पर भी लोगों को नर्मदा स्नान को लेकर काफी उत्साह है. कोरोना के कारण बीते दो वर्षों से स्नान करने का अवसर ही प्राप्त नहीं हो पा रहा था, लेकिन अबकी बार उत्साह खूब देखा जा रहा है.

पं.लोकेश व्यास बताते हैं कि मकर संक्रांति के दिन किसी भी पवित्र नदी में स्नान करने का बड़ा ही महत्व है. मान्यता है कि इसके बाद गरीब और जरूरतमंद को काला तिल दान करने से शनि दोष दूर हो जाता है. उन्होंने बताया कि 14 जनवरी को स्नान के लिए सूर्योदय से ….तक समय बेहद ही शुभ रहेगा

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