जबलपुर, यशभारत। 70 साल के करण सिंह यादव और उनकी 65 साल की पत्नी कमलारानी पिछले पांच साल से तमाम खतरों के बीच अकेले जंगली इलाके में डटे हैं। दोनों की एक ही जिद है, जब तक न्याय नहीं मिलेगा, झोपड़ी नहीं छोड़ेंगे, भले जानवर खा जाएं। दरअसल ये दंपती अपने परिवार के साथ सर्रां वन परिक्षेत्र के कुममी लगारा रैयतवारी गांव में रहते थे। जब इस क्षेत्र को नौरादेही अभयारण्य में शामिल किया तो यहां रह रहे लोगों के विस्थापन को योजना बनाई गई। अफसरों ने मुआवजे की सूची में इनका नाम नहीं जोड़ा। नतीजा गांव के सभी 30 परिवार मुआवजा लेकर विस्थापित हो गए। लेकिन इन्हें बगैर मुआवजे के जाने के आदेश दिए गए। यहां तक कि इनका झोपड़ा तोड़ने टीम पहुंच गई। इसके विरोध में कमलारानी खड़ी हो गई तो टीम को वापस जाना पड़ा। अब दोनों इस दौरान गांव में पांच साल से रह रहे है। दंपती ने मुआवजे के लिए हाईकोर्ट में केस लगाया था, जो जीत भी गए। लेकिन अफसरों ने पालन नहीं किया तो अवमानना का केस लगाना पड़ा। नियमानुसार इनका 15 लाख रुपए का मुआवजा बनता है।
इन परिस्थितियों में रह रहे जंगल में
दंपत्ति जहां रहते हैं, उसके आसपास 8 किमी तक जंगल है। यहां केवल एक कुआं है, जिसमें उतरकर पानी भरना पड़ता है। गर्मी में कुआं सूखने पर जंगल में झिरिया के पास जाना पड़ता है। झिरिया के पास जानवर होने पर पानी भी नहीं भर पाते। पास के गांव सर्रां में रहने वाला उनका बेटा मानसिंह खाने के लिए राशन जंगल में पहुंचा देता है। कभी बारिश की वजह से खाना नहीं आ पाता तो महुआ और जंगलो कंदमूल खाकर दिन गुजार लेते हैं। अभयारण्य में बाघ, तेंदुआ, भालू और कुत्ते रहते हैं। बारिश और गर्मी में झोपड़ी के आसपास जंगली जानवर आ जाते हैं।