पनागर की ‘नगर सेठानी’ का 107 साल का इतिहास:
45 पैसे की प्रतिमा आज 45 हजार में विराजमान

पनागर यशभारत। पनागर में स्थित बड़े फव्वारा के पास बड़े स्कूल के बाजू से स्थापित होने वाली माता दुर्गा की प्रतिमा का इतिहास 107 वर्ष पुराना है। यह प्रतिमा आज भी आस्था का केंद्र बनी हुई है और इसे पूरे नगर में ‘पनागर की नगर सेठानी’ के नाम से जाना जाता है।
45 पैसे से 45 हजार तक का सफर
इस उत्सव की सबसे दिलचस्प बात प्रतिमा के निर्माण खर्च में आया भारी अंतर है। स्थानीय लोगों के अनुसार, 107 वर्ष पहले जब पहली बार यह प्रतिमा कारीगर द्वारा बनाई गई थी, तो इसका खर्च मात्र 45 पैसे आया था। वहीं, आज 2025 में, उसी परंपरा के तहत बनने वाली माता की प्रतिमा का निर्माण खर्च 45,000 रुपए तक पहुँच गया है।
ईंटों पर रखी गई थी पहली प्रतिमा, बैलगाड़ी से होता था विसर्जन
पनागर के बुजुर्ग बताते हैं कि 107 साल पहले जब यहां के रहवासियों ने प्रतिमा रखने का निर्णय लिया, तो यह आयोजन बेहद सादगीपूर्ण था। पहली बार जब प्रतिमा रखी गई थी, तो इसके लिए ना कोई मंच बना था और ना ही पंडाल। प्रतिमा को ईंटों के ऊपर रखा गया था और विसर्जन के लिए उसे बैलगाड़ी से ले जाया जाता था। शाम होते ही ग्राम के लोग मिट्टी तेल की डिबिया बनाकर ग्राम को रोशन करते थे । साथ ही त्रिपाल, बलिया लगाकर बुजुर्ग, माता की आरती और प्रतिदिन कन्या भोजन तथा वैदिक मंत्र उच्चारण का आयोजन करते थे । इस आयोजन में ग्राम के सभी लोग एकत्रित होकर माता की भक्ति में लीन हो जाते थे । स्वर्गीय रामप्रसाद पटेल, रामप्रसाद ताम्रकार, झामसिंह लखेरा, हुब्बी लखेरा, सीताराम सोनी, केशलाल पटेल, और भोलेराम ताम्रकार जैसे नगर के प्रतिष्ठित लोगों ने इस परंपरा की शुरुआत की थी।
आज भी जारी है भव्यता, मनमोहक झांकियां बनीं आकर्षण
बुजुर्गों द्वारा शुरू की गई यह परंपरा आज भी पूरी श्रद्धा और भव्यता के साथ निभाई जा रही है। वर्तमान में कोमल सिंह पटेल (अध्यक्ष), लल्लू राम ताम्रकार (उपाध्यक्ष), विजय सोनी (कोषाध्यक्ष) और सुधेश सराफ (सचिव), नितिन गौतम ( मीडिया प्रभारी ), राम गुप्ता वैभव ( सोशल मीडिया प्रभारी ) समेत पूरी समिति इस आयोजन को भव्य रूप देने में जुटी है।
आज प्रतिमा स्थल पर भव्य मंचों का निर्माण किया जाता है और साथ-साथ मनमोहक झांकियां व साज-सज्जा का आविष्कार किया जाता है। इस भव्य आयोजन को देखने के लिए पनागर सहित दूर-दराज के क्षेत्रों से श्रद्धालुओं का ताँता लगा रहता है, जो इस 107 साल पुरानी आस्था के केंद्र के प्रति लोगों के गहरे लगाव को दर्शाता है।








