कड़कड़ाती ठंड में बंजारों की वो बेबसी की रात………….

शहर में पिछले दो दिनों से ठंड कहर बरपा रही है। लोग जहां घरों में दुपके के हैं वहीं आज भी शहर में कुछ लोग ऐसे हैं जो खुले आसमान के नीचे ठंड के बीच जीवन जीने मजबूर हैं। हम बात कर रहे हैं शहर के उन क्षेत्रों की जहां बंजारे दूसरे राज्यों से दो जून की रोटी कमाने हमारे शहर में गंजीपुरा,बस स्टैंड, बड़ा फुहारा जैसी जगहों पर सजावट का
समान बेचते नजर आ जाते हैं।यूं तो देखने पर यह सहज मालूम पड़ता है पर जीवन का ये कठिन सफर इन बंजारों के अलावा कोई नहीं समझ सकता।
100 रुपए देकर निजी होटलों को बनाया बसेरा
लार्डगंज थाने के सामने यश भारत द्वारा जब बंजारे दंपत्ति से बात की गई तो कई मार्मिक सच सामने आए। बंजारे दंपत्ति ने बताया कि वे राजस्थान से व्यापार करने आए हैं और दो जून की रोटी के लिए संघर्षरत हैं। यहां पर निजी होटल में कभी 100 रुपए देकर जीवन यापन करते हैं अर्थात कुछ भी हो इन बंजारों को निवास करना है तो दिन के 100 रुपए तो कमाने ही पड़ेंगे जो इनके रहने के लिए अनिवार्य है । इसके बाद खाना और व्यापार का माल एवं परिवहन के भी खर्चे आवश्यक हो जाते हैं।
रेनबसेरा को लेकर बंजारों को जानकारी ही नहीं है।यू तो शहर में कागजों पर 11 रैन बसेरा संचालित हैं।पर इनका उपयोग कैसे किया जा सकता है इसकी जानकारी से ये बंजारे अंजान हैं।वे कहते हैं कि रैन बसेरा क्या है।इसका पता कहां है।
कौन है ये बंजारेः
जीवन भर घूमने के चलते बंजारा समुदाय सफर का पर्याय बन चुका है। बंजारों का न कोई ठौर-ठिकाना होता है ना ही घर-द्वार।ये बंजारे लोग ऐसे ही जीवन भर घूमते घूमते अपना जीवन गुजार देते हैं।बंजारे समाज के पुरूष सिर पर पगड़ी बांधते हैं और धोती पहनते हैं।वही स्त्रियां घाघरा और लहंगा पहनती हैं।लुगडी ओढनी ओढ़ती हैं।बदलते परिवेश में अब बंजारों के जीवन जीने के लिए व्यापार का सहारा लेने लगे हैं। जिन्हें कई शहरों में देखा जा सकता है।