संभल में जामा मस्जिद सर्वे पर भड़का बवाल, उपद्रवियों की पत्थरबाजी पर पुलिस टीम ने दागे आंसू गैस के गोले

संभल, एजेंसी। उत्तर प्रदेश के संभल में जामा मस्जिद के सर्वे को लेकर हंगामा मच गया। रविवार की सुबह सर्वे टीम के खिलाफ इक_ा हुए बड़ी संख्या में लोगों ने पथराव शुरू कर दिया। हालात यह हो गया कि पुलिस फोर्स को मजबूरन आंसू गैस के गोले छोडऩे के साथ लाठीचार्ज भी करना पड़ा। पुलिस और प्रशासन के बड़े अधिकारी मौके पर हैं। संभल की शाही जामा मस्जिद को लेकर विवाद हो गया है। यहां पर हिंदू पक्ष दावा कर रहा है कि यह जामा मस्जिद नहीं, बल्कि हरिहर मंदिर है। इसको लेकर कोर्ट में याचिका लगी, जिसपर सुनवाई का आदेश दिया गया। आज रविवार की सुबह साढ़े 7 बजे से यहां सर्वे किया जाना था। एडवोकेट कमिश्नर सर्वे के लिए पहुंचे थे लेकिन इसी बीच वहां बड़ी संख्या में उपद्रवी इक_ा हो गए और हंगामे के बाद पत्थरबाजी शुरू हो गई।
शाही जामा मस्जिद के सर्वे के दौरान इक_ा हुई भीड़ ने पुलिस की टीम पर पथराव कर दिया। इसके बाद पुलिसकर्मियों ने आंसू गैस के गोले छोड़े और उपद्रवियों को भगाना शुरू किया। मामले की संवेदनशीलता को देखते हुए मौके पर डीएम, एसपी सहित कई थानों की पुलिस फोर्स तैनात है। घटना के वीडियो भी वायरल हो रहे हैं। पूरे इलाके में तनाव की स्थिति कायम है। इस दौरान पुलिस ने भीड़ को नियंत्रित करने के लिए आंसू गैस के गोले दागे। फिलहाल हालात तनावपूर्ण है।
कोर्ट ने सर्वे कराकर एक हफ्ते में रिपोर्ट देने को कहा था
जामा मस्जिद का 5 दिन में दूसरी बार सर्वे करने के लिए प्रशासन की टीम रविवार को पहुंची थी। टीम में हिंदू पक्ष के वकील, सरकारी वकील के साथ डीएम-एसपी, एसडीएम मस्जिद के अंदर गए। सुरक्षा को देखते हुए पहले से ही पीएसी-आरआरएफ की टीम को तैनात किया गया था। टीम के साथ हिंदू पक्ष के अधिवक्ता विष्णु शंकर जैन, सरकारी वकील प्रिंस शर्मा, डीएम डॉ. राजेंद्र पैंसिया, एसपी कृष्ण बिश्नोई भी अंदर गए थे। दरअसल, 19 नवंबर को हिंदू पक्ष ने संभल की शाही जामा मस्जिद के श्री हरिहर मंदिर होने की याचिका पर कोर्ट में सुनवाई हुई। कोर्ट ने मस्जिद का सर्वे करवाकर एक हफ्ते के अंदर रिपोर्ट पेश करने के आदेश दिए। प्रशासन को 26 नवंबर को रिपोर्ट पेश करनी है। 29 नवंबर को इस पर सुनवाई होगी।
19 तारीख को कोर्ट के आदेश के चार घंटे में बाद प्रशासन ने सर्वे किया था। इसके बाद रविवार को फिर टीम पहुंची थी। हिंदू पक्ष का कहना था कि बाबर के शासनकाल में 1529 में इसे मस्जिद का रूप दिया गया।