राष्ट्र से जुड़े मामले पर हाईकोर्ट का स्वतः संज्ञान: जानें जस्टिस श्रीधरन और जस्टिस अनुराधा शुक्ला के बारे में
कर्नल सोफिया कुरैशी पर विवादित बयान देने पर मंत्री विजय शाह को फटकार और FIR के निर्देश

कर्नल सोफिया कुरैशी पर विवादित बयान देने पर मंत्री विजय शाह को फटकार और FIR के निर्देश
मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के जस्टिस अतुल श्रीधरन और जस्टिस अनुराधा शुक्ला की खंडपीठ ने कर्नल सोफिया कुरैशी पर विवादित बयान देने के मामले में स्वतः संज्ञान लेते हुए मंत्री विजय शाह को कड़ी फटकार लगाई और डीजीपी को उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करने का निर्देश दिया। इस फैसले के बाद जस्टिस अतुल श्रीधरन की काफी चर्चा हो रही है, जिन्होंने सुनवाई के दौरान कहा था कि “कल मैं रहूं या न रहूं लेकिन शाम तक एफआईआर दर्ज हो।” हाईकोर्ट की फटकार के कुछ ही घंटों के भीतर महू के मानपुर में विजय शाह के खिलाफ मामला दर्ज हो गया। आइए जानते हैं कि मध्यप्रदेश के वरिष्ठ मंत्री के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने वाले ये दोनों जस्टिस कौन हैं और उनके कुछ महत्वपूर्ण फैसले क्या रहे हैं।
जस्टिस अतुल श्रीधरन:
- 7 अप्रैल 2016 को मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में कार्यभार ग्रहण किया।
- 17 मार्च 2018 को स्थायी जस्टिस नियुक्त हुए।
- उनकी बेटी मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में वकालत कर रही थीं, जिसके कारण उन्होंने नैतिक आधार पर अपना तबादला जम्मू-कश्मीर करवा लिया था।
- 10 मई 2023 से 20 मार्च 2025 तक जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट में जज के रूप में पदस्थ रहे।
- उन्होंने सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम से मध्य प्रदेश से बाहर स्थानांतरण का अनुरोध किया था, जिसे कॉलेजियम ने स्वीकार कर लिया था।
- वर्तमान में जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट में पदस्थ हैं।
- महत्वपूर्ण फैसला: 4 मई को जस्टिस श्रीधरन की डिवीजन बेंच ने 10 साल से पत्नी की हत्या के आरोप में जेल में सजा काट रहे पति को परिस्थितिजन्य साक्ष्यों के अभाव और महत्वपूर्ण गवाहों के मुकरने के कारण बरी कर दिया था। न्यायालय ने पाया कि जब्त की गई कुल्हाड़ी पर खून नहीं पाया गया था, जिससे अभियोजन का मामला कमजोर हो गया था।
जस्टिस अनुराधा शुक्ला:
- रीवा में जिला जज के रूप में कार्य कर चुकी हैं।
- उन्होंने भ्रष्टाचार से संबंधित कई महत्वपूर्ण मुकदमों की सुनवाई की है।
- एडीजे और डीजे के रूप में उनके फैसले विस्तृत और बारीकी से अंग्रेजी में लिखे होते थे।
- उनकी कोर्ट में बहस के दौरान यह देखा गया है कि वह केस को पूरी तरह पढ़कर आती हैं और दोनों पक्षों को ध्यान से सुनती हैं।
- महत्वपूर्ण घटना: हाल ही में एक सुनवाई के दौरान नंबर नहीं आने पर नाराज हुए एक अधिवक्ता की टिप्पणी को उन्होंने कोर्ट की अवमानना माना और कार्यवाही के लिए उसकी प्रमाणित प्रति हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश को भेज दी। उन्होंने टिप्पणी को “अत्यंत अनुचित” और “अदालत की प्रतिष्ठा के विरुद्ध” बताया था।
अधिवक्ताओं की राय:
अधिवक्ता पंकज दुबे ने दोनों जस्टिस को “विलक्षण स्वभाव” का बताया। उन्होंने जस्टिस श्रीधरन के बारे में कहा कि वे वकालत के दिनों से ही बड़े मुकदमे लड़ते थे और जज बनने के बाद भी फाइल की एक-एक लाइन पढ़कर फैसला सुनाते थे, ताकि कोई भी तथ्य छूट न जाए। जस्टिस शुक्ला के बारे में उन्होंने कहा कि वे केस को पूरी तरह पढ़कर आती हैं और दोनों पक्षों को अच्छे से सुनती हैं, उनकी नजरों से कोई भी चीज बच नहीं पाती है।
अधिवक्ता विशाल बघेल ने मंत्री विजय शाह के मामले में दोनों जजों द्वारा स्वतः संज्ञान लेने को कई सालों बाद हुई एक महत्वपूर्ण घटना बताया। उन्होंने कहा कि यह स्वागत योग्य कदम है और इससे स्पष्ट होता है कि किसी को भी राष्ट्र की सुरक्षा से जुड़े मामलों में किसी की भावनाओं को आहत करने का अधिकार नहीं है।