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Manish Sisodia : मनीष सिसोदिया को सुप्रीम कोर्ट से जमानत, 17 महीने से जेल में थे

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सुप्रीम कोर्ट ने शराब नीति मामले मनीष सिसोदिया को जमानत दे दी है. कोर्ट ने शर्त लगाते हुए उन्हें अपना पासपोर्ट सरेंडर करने और गवाहों को प्रभावित न करने का निर्देश दिया. अब सिसोदिया जेल से 16 महीनों बाद बाहर आ सकते हैं.सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि निचली अदालत और हाईकोर्ट अक्सर इस बात को नहीं समझते कि बेल को रूल और जेल को अपवाद माना जाता है. इस वजह से सुप्रीम कोर्ट में जमानत याचिकाओं की बड़ी संख्या आती है. न्यायिक प्रक्रिया को ही दंड नहीं बनाया जाना चाहिए. आरोपी का समाज मे गहरा आधार है. उसके फरार होने का अंदेशा नहीं है. निचली अदालत जमानत की शर्तें तय कर सकती है. सबूत मिटाने की आशंका पर भी शर्ते तय की जाएं. सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि ईडी के वकील ने 3 जुलाई तक जांच पूरी करने की बात कही. यह अक्टूबर 2023 में सुप्रीम कोर्ट को बताई गई 6-8 महीने की सीमा के परे है. इस देरी के चलते निचली अदालत में मुकदमा शुरू हो पाने का सवाल ही नहीं था. व्यक्तिगत स्वतंत्रता एक मौलिक अधिकार है. इसका बिना उचित वजह के हनन नहीं हो सकता.

मुकदमे में देरी के लिए आरोपी जिम्मेदार नहीं- सुप्रीम कोर्ट

मनीष सिसोदिया के मुकदमे में हुई देरी का जिक्र करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमसे पीएमएलए सेक्शन 45 में दी गई जमानत की कड़ी शर्तों से रियायत की मांग की गई है. ईडी ने कहा कि आरोपी खुद मुकदमे में देरी के लिए जिम्मेदार है. आरोपी गैरजरूरी दस्तावेज मांग रहा है. सैकड़ों आवेदन दाखिल किए.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि रिकॉर्ड ऐसा नहीं दिखाते. ED और CBI दोनों मामलों में बहुत अधिक आवेदन दाखिल नहीं हुए, इसलिए मुकदमे में देरी के लिए आरोपी को जिम्मेदार मानने के निचली अदालत और हाई कोर्ट के निष्कर्ष से हम सहमत नहीं हैं. आरोपी को दस्तावेज देखने का अधिकार है.

क्या ट्रायल में देरी पर हुआ विचार- सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट में मनीष सिसोदिया के मामले में ट्रायल पूरा होने में हुई देरी का जिक्र हुआ. जस्टिस बीआर गवई ने कहा कि सवाल यह है कि क्या ट्रायल कोर्ट और हाईकोर्ट ने ट्रायल में देरी पर विचार किया है? हमारी राय में, इस अदालत के आदेश की अनदेखी थी..

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