मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की सरकार को कड़ी फटकार, मंत्री विजय शाह के खिलाफ नए सिरे से FIR दर्ज करने का सख्त आदेश
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जबलपुर: मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को मंत्री विजय शाह से जुड़े एक मामले में कड़ी फटकार लगाई है। अदालत ने पुलिस द्वारा दर्ज की गई पिछली FIR को महज “खानापूर्ति” करार देते हुए, सरकार को मंत्री के खिलाफ नए सिरे से विस्तृत FIR दर्ज करने का सख्त आदेश दिया है। यह घटनाक्रम सोफिया कुरैशी पर मंत्री विजय शाह की कथित आपत्तिजनक टिप्पणी से संबंधित है।
गौरतलब है कि मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की जस्टिस अतुल श्रीधर और जस्टिस अनुराधा शुक्ला की डबल बेंच ने पूर्व में एक आदेश जारी किया था। इस आदेश में सोफिया कुरैशी को लेकर मंत्री विजय शाह द्वारा की गई कथित आपत्तिजनक टिप्पणी को गंभीरता से लेते हुए, उनके खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 152, 196 (1B), और 197 (1C) के तहत मुकदमा दर्ज करने का स्पष्ट निर्देश दिया गया था। कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया था कि इस पूरी प्रक्रिया को महज 4 घंटे के भीतर पूरा किया जाए।
पुलिस की कार्रवाई और कोर्ट की नाराजगी:
हाई कोर्ट के आदेश के अनुपालन में, राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता प्रशांत सिंह ने गुरुवार को अदालत को सूचित किया कि बुधवार शाम 7:55 बजे इंदौर के मानपुर थाने में मंत्री विजय शाह के खिलाफ FIR दर्ज कर दी गई है। हालांकि, हाई कोर्ट की डबल बेंच सरकार की इस कार्रवाई से बिल्कुल भी संतुष्ट नजर नहीं आई।
जस्टिस अतुल श्रीधरन ने कड़ी आपत्ति जताते हुए कहा कि जो FIR दर्ज की गई है, वह केवल एक रस्म अदायगी है और इससे मंत्री कानूनी कार्रवाई से आसानी से बच सकते हैं। उन्होंने इस बात पर विशेष नाराजगी व्यक्त की कि पुलिस की FIR में उन विशिष्ट धाराओं का उल्लेख नहीं किया गया है, जिनका जिक्र कोर्ट ने अपने पूर्व के आदेश में स्पष्ट रूप से किया था।
हाई कोर्ट का नया और सख्त आदेश:
इसके बाद, जस्टिस अतुल श्रीधरन ने एक नया और सख्त आदेश जारी करते हुए सरकार को निर्देशित किया कि मंत्री विजय शाह के खिलाफ नए सिरे से FIR दर्ज की जाए। इस नई FIR में यह स्पष्ट रूप से दर्ज होना चाहिए कि विजय शाह ने क्या आपत्तिजनक कृत्य किया है और उनके खिलाफ किन विशिष्ट धाराओं के तहत मामला चलाया जाएगा। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि पिछली FIR में इन महत्वपूर्ण विवरणों का अभाव था, जिससे कानूनी प्रक्रिया कमजोर हो सकती थी।
जांच की आवश्यकता पर कोर्ट का रुख:
महाधिवक्ता प्रशांत सिंह ने अदालत को यह भी बताया कि इस मामले में पुलिस द्वारा जांच की जा रही है। इस पर भी हाई कोर्ट ने कड़ी आपत्ति दर्ज की। जस्टिस अतुल श्रीधरन ने स्पष्ट रूप से कहा कि यह कोई हत्या का मामला नहीं है जिसकी विस्तृत जांच की आवश्यकता हो, बल्कि यह एक आपत्तिजनक भाषण से संबंधित मामला है जिसमें अत्यधिक लंबी जांच की कोई आवश्यकता नहीं है। कोर्ट का यह रुख दर्शाता है कि वह इस मामले में त्वरित और प्रभावी कानूनी कार्रवाई चाहता है।
भारतीय न्याय संहिता की प्रासंगिक धाराएं और सजा का प्रावधान:
हाई कोर्ट ने अपने पूर्व के आदेश में मंत्री विजय शाह के खिलाफ निम्नलिखित धाराओं के तहत मामला दर्ज करने का निर्देश दिया था, जिनमें सजा के प्रावधान इस प्रकार हैं:
- भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 152: यह धारा उन कृत्यों से संबंधित है जो अलगाव, सशस्त्र विद्रोह और विध्वंसक गतिविधियों को भड़काते हैं। इस धारा के तहत दोषी पाए जाने पर आजीवन कारावास या फिर 7 साल तक की जेल और जुर्माने का प्रावधान है।
- भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 196 (1B): यह धारा किसी धर्म, जाति, जन्मस्थान, निवास, भाषा आदि के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने और सद्भाव बिगाड़ने से संबंधित है। इसके तहत दोषी पाए जाने पर 5 वर्ष तक की सजा और जुर्माने का प्रावधान है।
- भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 197(1)(C): यह धारा राष्ट्रीय एकता को नुकसान पहुंचाने वाली गतिविधियों से संबंधित है। इसके तहत दोषी पाए जाने पर 3 वर्ष तक की सजा और जुर्माने का प्रावधान है।
आगे क्या होगा:
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट के इस कड़े रुख के बाद, राज्य सरकार पर अब मंत्री विजय शाह के खिलाफ नए सिरे से विस्तृत FIR दर्ज करने का दबाव बढ़ गया है। यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि सरकार इस आदेश का पालन किस प्रकार करती है और इस मामले में आगे कानूनी प्रक्रिया किस दिशा में बढ़ती है। हाई कोर्ट का यह हस्तक्षेप दर्शाता है कि न्यायपालिका ऐसे मामलों में त्वरित और प्रभावी कार्रवाई के लिए प्रतिबद्ध है, खासकर जब किसी मंत्री जैसे उच्च पद पर बैठे व्यक्ति पर आपत्तिजनक टिप्पणी करने के आरोप लगते हैं।