लाखों कुंटल धान पानी में तरबतर: किसानों की मेहनत बह रही बरसात में, अदूरदर्शिता के चलते हुए नुकसान
रात को लिया गया गोदाम खोलने का फैसला, सुबह से झमाझम मौसम को लेकर जनप्रतिनिधियों ने पहले ही चेताया था

जबलपुर, यश भारत। शनिवार की सुबह से ही जबलपुर सहित प्रदेश के कई जिलों में झमाझम बारिश हो रही है। जिसका सबसे ज्यादा नुकसान उन किसानों को हो रहा है जिनकी उपज खरीदी केंद्रों में खुले में पड़ी हुई है। जानकारी के मुताबिक लाखों क्विंटल धान खुले आसमान के नीचे पड़ी हुई है और पानी में भीग रही है। जिले में 101 उपार्जन केंद्रों में धान की खरीदी चल रही है जिसमें से 16 परिसर स्तरीय केंद्र है जहां पर उपार्जित की गई धान की पूरी मात्रा खुले में रखी हुई है जानकारी के मुताबिक शुक्रवार शाम तक जिले में लगभग 19 लाख 68 हजार क्विंटल धान की खरीद हो चुकी थी।
दिनभर घूमते रहे अधिकारी
पानी के पूर्वानुमान को देखते हुए कलेक्टर दीपक सक्सेना द्वारा सभी उपार्जन केंद्रों में व्यवस्थाएं दुरुस्त करने को लेकर आदेश दिए गए थे। जिसकी निगरानी के लिए कलेक्टर सहित सभी प्रशासनिक अधिकारी शुक्रवार देर रात तक उपार्जन केंद्रों का दौरा करते रहे और धान को सुरक्षित करने को लेकर आवश्यक निर्देश जारी किए गए। लेकिन इतनी बड़ी मात्रा में धान डंप होने के चलते उसे पानी से बचा पाना लगभग असंभव कार्य है। जिसको लेकर समितियां द्वारा भी त्रिपाल की व्यवस्था की गई जो कि ना काफी साबित हो रही है। प्रशासन द्वारा जो परिसर स्तरीय केंद्र खोले गए थे उसमें खरीदी गई धान को भी गोदाम में रखने को लेकर निर्देश जारी कर दिए गए हैं।
नई नीति के चलते आई समस्या
इस बार प्रदेश सरकार द्वारा उपार्जन को जो लेकर जो नीति तैयार की गई थी उसमें परिसर स्तरीय उपार्जन केंद्र खोलने की व्यवस्था की गई थी। याने धान गोदाम में न रखकर उसे मैदान में ही खरीदा जाएगा और फिर सीधे राइस मिलों को दे दिया जाएगा। जबकि सभी को पहले से पता था कि प्रदेश में दिसंबर महीने के आखिरी में शीतकालीन वर्षा होती है और हर वर्ष लाखों क्विंटल धान इसके चलते खराब भी होती है । इस बार भी परिसर स्तरीय केंद्रों में लगभग दो से ढाई लाख क्विंटल धान खुले में पड़ी हुई है। लेकिन कुछ भोपाल में बैठे प्रशासनिक अधिकारियों की हट धर्मिता के चलते यह समस्या बड़ा रूप धारण कर रही है।
नॉन से नहीं हुए हैं अनुबंध
धान उपार्जन को लेकर सबसे बड़ी हद तो यह है कि प्रदेश सरकार द्वारा जिस एजेंसी को धान खरीदी की जिम्मेदारी दी गई है समितियों साथ कोई भी अनुबंध किया ही नहीं गया है, याने जिले में जो 101 धान उपार्जन केंद्र चल रहे हैं उनका नागरिक आपूर्ति निगम के साथ कोई भी अनुबंध नहीं है। यदि कोई भी बड़ी गफलत होती है कोई आने वाले समय मे समिति स्तर पर धान का नुकसान होता है तो कानूनी रूप से समितियां इस नुकसान की भरपाई से इनकार कर सकती है। क्योंकि अभी तक उनका धान खरीदने को लेकर कोई भी अनुबंध हुआ ही नहीं है। हालांकि प्रशासनिक स्तर पर कढ़ाई के चलते समितायां अपने दायित्व से भाग नहीं सकती, लेकिन नागरिक आपूर्ति निगम की हीला हवाली के चलते यदि मामले कोर्ट में चले जाएं तो फिर किसानों के साथ-साथ प्रशासन को भी नुकसान उठाना पड़ सकता है।