जबलपुरमध्य प्रदेश

दीपावली पर मिठाई दुकानों पर जांच तेज, लेकिन दूध माफिया पर प्रशासन की चुप्पी क्यों?

प्रशासन का मौन आम जनता की परेशानी

जबलपुर यशभारत। जैसे-जैसे दीपावली का पर्व नजदीक आ रहा है, वैसे-वैसे खाद्य सुरक्षा विभाग द्वारा शहरभर में मिठाइयों की दुकानों पर कार्यवाही तेज कर दी गई है। रोजाना विभागीय टीमें अलग-अलग क्षेत्रों में जाकर मिठाई दुकानों की जांच कर रही हैं, सैंपलिंग की जा रही है, स्वच्छता और गुणवत्ता को परखा जा रहा है — जो कि एक सराहनीय कदम है। लेकिन इस सख्ती के बीच एक महत्वपूर्ण सवाल उठ खड़ा हुआ है: क्या दूध माफियाओं को जानबूझकर छोड़ दिया गया है?

जबलपुर में दूध 75 रु./लीटर, प्रदेश में सबसे महंगा

वर्तमान समय में जबलपुर में दूध के दाम 75 रुपए प्रति लीटर तक पहुंच गए हैं, जो न केवल सामान्य उपभोक्ता के बजट पर भार डाल रहे हैं, बल्कि पूरे प्रदेश में सबसे अधिक बताए जा रहे हैं। वहीं प्रदेश के कई अन्य जिलों में दूध अभी भी 55 से 65 रुपए के बीच उपलब्ध है। दूध की गुणवत्ता पर उठते रहे हैं सवाल केवल कीमत ही नहीं, दूध की गुणवत्ता भी लंबे समय से सवालों के घेरे में है। कई बार शिकायतें सामने आई हैं कि खुले दूध में पानी मिलाना, सिंथेटिक दूध की मिलावट, और खराब पशु आहार जैसी समस्याएं आम हैं। बावजूद इसके, दूध विक्रेताओं पर न तो कोई छापेमारी होती है और न ही नमूनों की सैंपलिंग की जा रही है।

खाद्य विभाग का रवैया पक्षपाती क्यों?

जहां मिठाइयों के नाम पर दुकानदारों पर कड़ाई बरती जा रही है, वहीं दूध विक्रेताओं पर सन्नाटा पसरा हुआ है। इससे यह संदेह गहराने लगा है कि कहीं विभागीय अधिकारियों की दूध माफियाओं से मिलीभगत या मौन सहमति तो नहीं? आमजन यह भी पूछ रहे हैं कि क्या त्योहारी सीजन में केवल मिठाई ही स्वास्थ्य के लिए खतरा है? क्या दूषित या महंगे दूध की कोई जवाबदेही नहीं है?

खुलेआम नियमों की अनदेखी

कई दूध विक्रेता खुले में, बिना लाइसेंस या गुणवत्ता प्रमाण पत्र के दूध बेचते हैं। न कोई माप-तौल की जांच, न ही स्वच्छता का पालन — फिर भी प्रशासन इन पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं कर रहा। स्थानीय नागरिकों का कहना है कि विभाग की यह चुप्पी संदेहास्पद और पक्षपातपूर्ण प्रतीत होती है।

प्रशासन का मौन आम जनता की परेशानी

दूध एक दैनिक आवश्यकता है, जो हर घर में बच्चों, बुजुर्गों और बीमारों तक के पोषण से जुड़ा है। ऐसे में दूध की गुणवत्ता और कीमत पर नियंत्रण सरकार की पहली जिम्मेदारी होनी चाहिए। लेकिन जब जांच केवल मिठाइयों तक सीमित हो जाए और दूध जैसी मूलभूत वस्तु की अनदेखी की जाए, तो सवाल उठना लाजमी है।

जनता की मांग:
* दूध की कीमतों को नियंत्रित किया जाए
* गुणवत्ता जांच के लिए नियमित सैंपलिंग हो
* बिना लाइसेंस या प्रमाणन बेचने वालों पर कार्रवाई हो।

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