जबलपुरमध्य प्रदेशराज्य

विंडो पीरियड में खून में छिपा रहता है एचआइवी :- अनजान व्यक्ति का तुरंत का डोनेट किया खून चढ़ाना ठीक नहीं

टेस्ट में आती है निगेटिव रिपोर्ट, जागरूकता जरूरी

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जबलपुर, यश भारत। मरीजों को यदि किसी डोनर का तुरंत का निकला ब्लड चढ़ाया जाए तो मरीज के एचआईवी पॉजीटिव होने की संभावना हो सकती है। इसका कारण यह है कि एचआईवी का यह विंडो पीरियड होता है इस पीरियड में वायरस ब्लड में होने के बाद भी वह डिटेक्ट नहीं होता। इसलिए अनजान व्यक्ति के ब्लड ट्रांसफ्यूजन से तुरंत का लिया गया ब्लड नहीं चढ़ाने की डॉक्टर सलाह देते हैं।
नेताजी सुभाषचंद्र बोस मेडिकल अस्पताल परिसर में इस तरह के कई मरीजों का इलाज चल रहा है जिन्हें अनजान व्यक्ति का तुरंत का निकला ब्लड किसी अस्पताल में चढ़ाया गया और वे एचआईवी पॉजीटिव हो गए। इसका कारण यह है कि डोनर के ब्लड में एचआइवी विंडो पीरियड में था,टेस्ट में निगेटिव आया।जिन मरीजों को ब्लड चढ़ाया गया, विंडो पीरियड खत्म होते ही उनमें एचआईवी पॉजीटिव हो गया। एआरटी सेंटर की सीनियर मेडिकल ऑफिसर डॉ नमिता पाराशर का कहना है कि ये मरीज एआरटी सेंटर आए तो जांच की गई।तब उन्होंने हिस्ट्री बताई।उन मरीजों की दवाएं चल रही हैं।
क्या होता है विंडो पीरियड
यदि किसी व्यक्ति के खून में किसी कारण से एचआईवी आता है तो खून में आने के बाद 90 दिन तक डिटेक्ट नहीं होता। इससे रिपोर्ट निगेटिव आती है। तब 90 दिन बाद फिर टेस्ट कराने कहा जाता है। इसलिए यह कहा जाता है कि आवश्कता होने पर ही ब्लड ट्रांसफ्यूजन किया जाए।रीजनल डायरेक्टर हेल्थ डॉ संजय मिश्रा का कहना है कि नेट मशीन से 48 घंटे में एचआइवी को डिटेक्ट किया जा सकता है। इससे वायरस का विंडो पीरियड घट जाएगा। अभी 90 दिन का एचआइवी का विंडो पीरियड होता है।अभी जिस तरह से टेस्ट किए जा रहे हैं उसमें इस पीरियड में ब्लड में वायरस के होने पर 90 दिन तक डिटेक्ट नहीं होता। इसकी रिपोर्ट निगेटिव आती है। इस तरह का ब्लड जब किसी को चढ़ाया जाता है तो मरीज एचआईवी पॉजीटिव हो जाता है लेकिन नेट मशीन से टेस्ट करने पर वायरस के ब्लड में आने के 48 घंटे बाद ही डिटेक्ट हो जाता है।इससे उन एचआईवी मरीजों की संख्या कम हो जायेगी जोकि ब्लड ट्रांसफ्यूजन के कारण एचआईवी पॉजीटिव हो जाते हैं। यह मशीन अभी भोपाल और इन्दौर के सरकारी अस्पताल में लगाई गई है जल्द ही जबलपुर में भी लगेगी।
डॉक्टर पाराशर ने बताया कि 70 फीसदी एचआईवी संक्रमित मरीजों को टीबी होने का खतरा संभावित होता है, इसलिए शासन ने एड्स के साथ-साथ टीबी उन्मूलन का दायित्व भी एआरटी सेंटर को दे रखा है। यही बात टीबी के मरीजों पर भी लागू होती है। टीबी और एचआईवी संक्रमण दोनों ही बीमारी एकदूसरे को बढ़ावा देती हैं। उन्होंने बताया कि टीबी के मरीजों को एचआईवी और एचआईवी के मरीजों को टीबी बुरी तरह से इंफेक्टेड करता है। एआरटी सेंटर की सीनियर मेडिकल ऑफिसर डॉ नमिता पाराशर ने बताया कि बीते एक दशक में अब लोग एचआईवी संक्रमण को उतना नहीं छिपाते जितना पहले छिपाते थे। उन्होंने ऐसे मरीजों के लिए संदेश दिया कि एचआइवी भी अन्य बीमारियों की तरह ही है, जिसमें नियमित रूप से दवा लेते रहने से मरीज सामान्य लोगों की तरह जीवन व्यतीत कर सकते हैं।

 

 

Yash Bharat

Editor With मीडिया के क्षेत्र में करीब 5 साल का अनुभव प्राप्त है। Yash Bharat न्यूज पेपर से करियर की शुरुआत की, जहां 1 साल कंटेंट राइटिंग और पेज डिजाइनिंग पर काम किया। यहां बिजनेस, ऑटो, नेशनल और इंटरटेनमेंट की खबरों पर काम कर रहे हैं।

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