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सनातन धर्म में गणेश पूजा का खासा महत्व माना गया है। बप्पा के भक्तों में मान्यता है कि गणेश चतुर्थी की बहुत मान्यता है। भगवान गणेश के जन्मोत्सव को गणेश चतुर्थी के रूप में मनाया जाता है। मान्यता है कि भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि पर भगवान गणेश का जन्म हुआ था। इसी उपलक्ष्य में गणेश चतुर्थी के पर्व को पूरी श्रद्धा और आस्था के साथ मनाते हैं। इसी दिन से 11 दिवसीय गणेशोत्सव की शुरूआत भी होती है जिसके पहले दिन यानी गणेश चतुर्थी पर बप्पा को घर में बैठाया जाता है। अर्थात उनकी मूर्ति की स्थापना की जाती है।
गणेश चतुर्थी कब है?
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पंचांग के अनुसार, भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी की तिथि का आरंभ 6 सितंबर को दोपहर 03:31 मिनट से होगा। इसका समापन 7 सितंबर को शाम 05:37 मिनट पर होगा। सनातन धर्म में व्रत को उदया तिथि से रखा जाता है। इस वजह से गणेश चतुर्थी 2024 का व्रत 7 सितंबर को रखा जाएगा।
गणेश चतुर्थी कैसे मनाई जाती है?
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बप्पा के भक्त इस दिन बहुत धूमधाम से उनको घर में लेकर आते हैं और उनकी पूजा होती है। पूरा माहौल ढोल नगाड़ों की आवाज और गणपति बप्पा मोरया के जयकारे से गूंजता है। बप्पा को घर में एक से दस दिन तक बैठाया जाता है। इस दौरान उनकी मूर्ति का स्थान बार बार नहीं बदलना चाहिए। गणेश के पसंदीदा पकवानों से उनको भोग लगाकर उनसे सुख समृद्धि की कामना की जाती है।
गणेश चतुर्थी की पूजा विधि
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गणेश चतुर्थी के दिन सुबह स्नान के बाद सबसे गणेश की प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए।
उसके बाद साफ कलश में पानी भरकर मूर्ति के सामने रखें।
फिर भगवान गणेश को सिंदूर और दूर्वा चढ़ाएं। इसके साथ ही 21 लड्डु का भोग लगाएं।
इसके बाद शाम के समय में गणेश जी की आरती करें।
गणेश जी की पूजा करने से होगा विघ्नों का नाश
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सनातन धर्म में गणेश चतुर्थी के पर्व का विशेष महत्व होता है। भाद्रपद की गणेश चतुर्थी के दिन भगवान गणेश का जन्म हुआ था। इस दिन भगवान गणेश की पूजा करने से साधक को शुभ फल की प्राप्ति होती है। गणेश चतुर्थी का व्रत रखने से और गणेश जी की 10 दिन पूजा करने से सारे विघ्नों का नाश होता है। इसके साथ ही साधक की सारी मनोकामना पूरी होती है।
गणेश चतुर्थी व्रत का महत्व
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धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, गणेश चतुर्थी के दिन महिलाएं यदि व्रत रखती हैं, तो उनके पति की आयु में वृद्धि होती है। संतान की सलामती के लिए भी महिलाएं गणेश चतुर्थी का व्रत रखती हैं। इसके अलावा गणेश चतुर्थी के दिन गणपति बप्पा की उपासना और व्रत करने से घर-परिवार में सकारात्मकता का वास होता है। साथ ही साधक की सभी परेशानियां गणेश जी हर लेते हैं, जिससे साधक को जीवन में सफलता मिलने की संभावना बढ़ जाती है।
संकष्टी चतुर्थी के दिन चन्द्र देव की आराधना करना बेहद शुभ माना जाता है। इससे साधक को देवताओं का विशेष आशीर्वाद प्राप्त होता है।
मूर्ति स्थापना की विधि
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गणेश जी की मूर्ति को किसी लकड़ी के पटरे या गेहूं, मूंग, ज्वार के ऊपर लाल वस्त्र बिछाकर स्थापित करें। गणेश भगवान की प्रतिमा की पूर्व दिशा में कलश रखें। गणपति की प्रतिमा के दाएं-बाएं रिद्धि-सिद्धि को भी स्थापित करें और साथ में एक-एक सुपारी रखें।
गणेश जी को प्रसन्न करने के उपाय
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गणेश चतुर्थी के दिन गणेश जी को सिंदूर अर्पित करने से घर-परिवार में खुशियों का वास होता है।
गणेश जी को 11 दूर्वा पत्तियां अर्पित करने से साधक को मनोवांछित फल मिलता है।
श्री गणेश को गणेश चतुर्थी के दिन मोदक, लड्डू, गुड़हल का फूल और फल अर्पित करना शुभ होता है।
गणेश चतुर्थी की कथा
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गणेश चतुर्थी की कथा के अनुसार,एक बार माता पार्वती ने स्न्नान के लिए जाने से पूर्व अपने शरीर के मैल से एक सुंदर बालक को उत्पन्न किया और उसे गणेश नाम दिया। पार्वतीजी ने उस बालक को आदेश दिया कि वह किसी को भी अंदर न आने दे, ऐसा कहकर पार्वती जी अंदर नहाने चली गई। जब भगवान शिव वहां आए ,तो बालक ने उन्हें अंदर आने से रोका और बोले अन्दर मेरी माँ नहा रही है, आप अन्दर नहीं जा सकते। शिवजी ने गणेशजी को बहुत समझाया, कि पार्वती मेरी पत्नी है। पर गणेशजी नहीं माने तब शिवजी को बहुत गुस्सा आया और उन्होंने गणेशजी की गर्दन अपने त्रिशूल से काट दी और अन्दर चले गये, जब पार्वतीजी ने शिवजी को अन्दर देखा तो बोली कि आप अन्दर कैसे आ गये। मैं तो बाहर गणेश को बिठाकर आई थी। तब शिवजी ने कहा कि मैंने उसको मार दिया। तब पार्वती जी रौद्र रूप धारण क्र लिया और कहा कि जब आप मेरे पुत्र को वापिस जीवित करेंगे तब ही मैं यहाँ से चलूंगी अन्यथा नहीं।
शिवजी ने पार्वती जी को मनाने की बहुत कोशिश की पर पार्वती जी नहीं मानी। सारे देवता एकत्रित हो गए सभी ने पार्वतीजी को मनाया पर वे नहीं मानी। तब शिवजी ने विष्णु भगवान से कहा कि किसी ऐसे बच्चे का सिर लेकर आये जिसकी माँ अपने बच्चे की तरफ पीठ करके सो रही हो। विष्णुजी ने तुरंत गरूड़ जी को आदेश दिया कि ऐसे बच्चे की खोज करके तुरंत उसकी गर्दन लाई जाये। गरूड़ जी के बहुत खोजने पर एक हथिनी ही ऐसी मिली जो कि अपने बच्चे की तरफ पीठ करके सो रही थी। गरूड़ जी ने तुरंत उस बच्चे का सिर लिया और शिवजी के पास आ गये। शिवजी ने वह सिर गणेश जी के लगाया और गणेश जी को जीवन दान दिया,साथ ही यह वरदान भी दिया कि आज से कही भी कोई भी पूजा होगी उसमें गणेशजी की पूजा सर्वप्रथम होगी। इसलिए हम कोई भी कार्य करते है तो उसमें हमें सबसे पहले गणेशजी की पूजा करनी चाहिए, अन्यथा पूजा सफल नहीं होती।