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दुबली-दुबडी सप्तमी को मुक्त भरण संतान सप्तमी भी कहा जाता हैं।
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दुबली-दुबडी सप्तमी यानी संतान सप्तमी पर संतान की कुशलता और उन्नति के लिए व्रत किया जाता है। इस व्रत का काफी महत्व है। इसे मुक्त भरण संतान सप्तमी भी कहते है। यह व्रत संतान के समस्त दुःख, परेशानी के निवारण के उद्देशय से किया जाता है।
संतान सप्तमी का महत्व
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संतान की कुशलता और उन्नति के लिए इस व्रत का काफी महत्व होता है। इसे मुक्त भरण संतान सप्तमी भी कहते है। यह व्रत संतान के समस्त दुःख, परेशानी के निवारण के उद्देशय से किया जाता है। संतान की सुरक्षा का भाव लिए स्त्रियां इस व्रत को पूरी विधि के साथ करती है। यह व्रत पुरुष अर्थार्थ माता पिता दोनों मिलकर संतान के सुख के लिए रखते है।
संतान सप्तमी कब और क्यों मनाई जाती है?
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संतान सप्तमी व्रत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष कि सप्तमी तिथि के दिन किया जाता है। यह व्रत मुख्य रूप से विवाहित स्त्रियों द्वारा ही किया जाता हैं। दुबडी साते/संतान सप्तमी व्रत करने से संतान प्राप्ति, संतान सुख तथा संतान की रक्षा के लिए किया जाता हैं। इस व्रत के दौरान शिव तथा गौरी की पूजा आराधना की जाती हैं। संतान सप्तमी को दुबडी साते के नाम से भी जाना जाता हैं। इसे भाद्रपद माह की शुक्ल सप्तमी को मनाया जाता हैं।
संतान सप्तमी की मान्यता
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कहा जाता है कि संतान सप्तमी के दिन व्रत रखने से जिन महिलाओं को संतान नहीं है, उन्हें भगवान शंकर और माता पार्वती के आशीर्वाद से गणेश जैसी तेजस्वी संतान की प्राप्ति होती है।
संतान सप्तमी की विधि
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पूजा में लकड़ी की चौकोर चौकी पर कुछ बच्चों की मूर्तियां, मटके और औरत का चित्र मिटटी से बना लेवें।
जल, दूध, चावल, रोली, अट्टा, घी, चीनी मिला कर, लोई बना कर उनको पूजें तथा भीगा हुआ बाजरा चढ़ा कर, दक्षिण चढ़ावें।
मीठे बाजरे का बायना निकल कर, सासु जी के चरण स्पर्श कर के, दे दें।
ब्राह्मणों को मिष्ठान और दान-दक्षिणा से संतुष्ट करें।
इस दिन से एक दिन पूर्व सायें काल की बेला में बनाया भोजन, भोग लगा कर, वहीँ, ग्रहण करें।
यदि इसी वर्ष किसी बालक का विवाह संस्कार संपन्न हुआ हो, तो वह इस सप्तमी को उद्यापन करे।
उद्यापन में मीठे बाजरे की १३ कुड़ी एक थाली में ले कर तथा १ रुपया और १ साडी रख कर, हाथ फेर कर, सासु जी को, या सासुजी की अनुपस्थिति में ब्राह्मणों के पांव लग कर उन्हें दे दें तथा दुबारा सप्तमी की कथा (कहानी) सुने।
पूजा प्रातः काल ही करें।
दुबड़ी सप्तमी/संतान सप्तमी की कथा
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एक साहू कार था। उसके सात बेटे थे। बेटों के विवाह के फेरों के पूरा होने से पहले ही बेटे मर जाते थे। इस प्रकार 6 बेटे मर गए। डरते-डरते सातवे बेटे का विवाह मांडा । सब बहिन बेटियों को बुलाया। सबसे बड़ी बुआ पीहर आते समय मार्ग में एक कुम्हार के यहाँ रुकी। उसका मन बुझा हुआ था कोई ख़ुशी नहीं थी। कुम्हार ढाकणी घड़ रहा था। बुआ ने पूछा तू क्या कर रहा है? वह बोला कि गांव के साहूकार के बेटे का विवाह है उसीके लिए ढाकणी घड़ रहा हूँ। पर उसका बेटा मर जाएगा। बुआ ने पूछा कि बेटा नहीं मरे इसका कोई उपाय नहीं है? कुम्हार ने बताया की यदि बींद की कोई बुआ दुबड़ी साते का व्रत करे, ठंडा खाए, काँटा फाँसे, बींद के सारे नेग उलटे कर गालियां देती रहे, फेरे के समय कच्चा दूध और तांत का फंदा लेकर बैठ जाए, आधे फेरे होने के बाद एक सांप बींद को डसने आएगा, तब उसके सामने कच्चा दूध का करवा रखदे, जब सांप दूध पीने लगे तो उसे तांत के फंदे में फंसा ले, जब सर्पिणी उसे छुड़ाने के लिए आए, तब बुआ उससे वचन ले कि तू मेरे सब भतीजों को जिन्दा कर उनको बहुएं दे तो ही मैं तेरे पति सांप को छोडूंगी। सारी बात सुनकर बुआ वहां से रवाना होकर पीहर में अपने घर में गालियां देती हुई घुसी। सब उसके इस व्यवहार से अचम्भित रह गए। पर कोई कुछ नहीं बोला आखिर भुआ जो ठहरी। सारे नेग उलटे करती गई, घर की अन्य औरतें कुछ बोलती तो भी ध्यान नहीं देती। जिद करके बारात भी पिछले दरवाजे से निकलवाई। उसी समय सामने का द्वार टूट कर गिर गया। सब उसकी प्रशंसा करने लगे, अब तो जैसा वह कह रही थी वैसे ही सब मान रहे थे। फिर जिद करके बारात में शामिल हो गई। साहूकार फिर भी नाराज ही था। उसने कहा, “ये जायेगी तो मैं नहीं जाऊंगा वैसे भी मैं जाता हूँ तो मेरे बेटे मर जाते हैं।” वो नहीं गया। बरात को रास्ते में बरगद के पेड़ की छाया में से निकालने लगे तो गालियां देते हुए उसने बारात को धूप में से ही निकालने की जिद की। उसकी जिद के चलते जब बारात को धूप में से निकालने लगे तभी एक बहुत बड़ी डाल टूट कर गिर गई। सब फिर से बुआजी की प्रशंसा करने लगे। फिर दूल्हे को बुआ की जिद के कारण दुल्हन के घर के पिछले द्वार से अंदर ले जाने लगे, तभी आगे का दरवाजा टूट कर गिर गया। फिर वह गालियां देती हुई फेरे में भी बैठ गई। जब सांप आया तो उसने उसे फंदे में फंसा लिया। जब सर्पिणी उसे छुड़ाने आई तो बुआ बोली, ” हे सर्पिणी, मैं तेरे पति को तभी छोडूंगी जब तू मेरे सारे भतीजों को जीवित कर देगी उनको बहुएं भी दे देगी। तू मुझे वचन दे। ” सर्पिणी बोली, मैं तुझे वचन देती हूँ ऐसा ही होगा। ” बुआ ने सांप को छोड़ दिया। धूमधाम से विवाह संपन्न हुआ। सब बु आजी से खुश हो गए। जब बरात लौटने लगी तो रास्ते में दुबड़ी साते एक वृद्धा के रूप में मिली। उसने भी दुबड़ी साते की पूजा और व्रत करने के लिए कहा। बुआ ने कहा, ” मैं दुबड़ी सात की पूजा कराना चाहती हूँ व्रत कराऊंगी पर कैसे कराऊं, समझ में नहीं आ रहा है। ” वृद्धा मुस्कुराती हुई वहाँ से चली गई। उसके जाने के बाद पूजा के बारे में सोचती हुई जब बुआ गाड़ी में से उतरी तो देखा कि वहां दुबड़ी सात का पाटिया मंडा हुआ रखा था। पूजन सामग्री भी रखी हुई थी। ताजा दूब उगी हुई थी। पूजा करने की विधि तो उसे पता ही थी। उसने पुरे मनोयोग और श्रद्धा के साथ पूजा की। बायना निकाला, काँटा फंसाया और कथा कही। बारात गाँव में पहुंची। जब साहुकार ने सातों बेटों को जीवित देखा तो उसे बहुत ही आश्चर्य हुआ। सारे बेटे साहूकार के पैर पड़ने लगे तो साहूकार बोला, ” बेटा, आज अगर तुम पुनः जिन्दा हो सके हो तो अपनी बुआ के कारण। ये जीवन तुम्हारी बुआ का दिया है। इसलिए सब इनके पैर पड़ो।” बाद में साहूकार ने सारे गाँव में ढिंढोरी पिटवा दी कि अपने बच्चों की जीवन की रक्षा के लिए हर कोई दुबड़ी सात का पाटिया मांडेगा, व्रत करेगा, पूजा करेगा, बायना निकालेगा, काँटा फँसायेगा और कहानी सुनेगा।