जबलपुरमध्य प्रदेश

डोरीलाल की चिन्ता, यूरोप ने भारतीय ज्ञान विज्ञान चुरा लिया वरना विश्वगुरू होते

आजकल कोई भी किसी भी विषय पर ज्ञान दे सकता है। वो उसका विद्वान हो सकता है। इसरो के चेयरमेन सोमनाथ उज्जैन गये। पाणिनि के बारे में बात करने। वहीं उन्होंने ये बताया कि भारत में हजारों साल पहले सारी खोजें कर लीं र्गइंं है। ये खोजें चुरा कर अरब देशों में पंहुचा दी गईं। वहां से यूरोप पंहुच गईं। उस ज्ञान को प्राप्त कर यूरोप के वैज्ञानिकों ने उन्हें अपनी खोजें बता दिया है। अब सवाल उठता है कि ये ज्ञान जो चोरी हुआ वो भारत में क्यों नहीं रहा। वो कोई सामान तो था नहीं कि चोरी हो गया तो चोर के पास चला गया। तो चेयरमैन साहब ने बताया कि ये सारा ज्ञान संस्कृत भाषा में था। और उसे लिखा नहीं जाता था। इसलिए अरब के चोर उसे चुरा ले गये और हमें भोले लोग देखते रह गये। ज्ञान की सिल्लियां, बिस्कुट सब चोरी हो गए। हमारे पास कुछ न बचा। उन्होंने ये जरूर कहा कि वेदों में सारा ज्ञान भरा पड़ा है। कहीं जाने की जरूरत नहीं। एयरोनॉटिक्स, मैटलर्जी, अंतरिक्ष विज्ञान, मेडिकल ज्ञान, प्लास्टिक सर्जरी क्या नहीं है वेदों में। ये तय है कि आजकल इसरो इसी ज्ञान के भरोसे चल रहा है। कई साल पहले ये खबर प्रकाशित हुई थी कि इसरो के वैज्ञानिक नौकरी छोड़ के भाग रहे हैं। 131 लोग जा चुके हैं।

आज भी ये चोरी जारी है। यहां लोग पढ़ते हैं। डाक्टर, इंजीनियर बनते हैं। वैज्ञानिक बनते हैं फिर यूरोप अमेरिका चले जाते हैं। ये सब कुछ न बनने पर भी यूरोप अमेरिका चले जाते हैं। क्यों चले जाते हैं ? वहां ज्यादा पैसा मिलता है और विषय पर रिसर्च आदि करने के लिए आधुनिक सुविधायें मिलती हैं। इसके कारण वहां तकनीकी और मेडिकल ज्ञान में बढ़त होती है और वो उसके उत्पादों को दुनिया भर में मंहगे दामों में बेचते हैं और मुनाफा कमाते हैं। विदेशों में अधिकांश वैज्ञानिक घर में धोती कुरता पहनकर सत्यनारायण की कथा सुनते हैं और जीवन को धन्य बनाते हैं। ये लोग अबकी बार ट्रम्प सरकार और हाउडी मोडी में काम आते हैं। अब अमेरिका इग्लैंड ऑस्ट्रेलिया में भारतीय वोटर का वोट नहीं चाहिए। उन्हें हिन्डू वोट चाहिए। आजादी के पचहत्तर साल पूरे होते होते हम विदेशों में भारतीय से हिन्डू में बदल दिए गये हैं। ये बात अलग है कि मुस्लिम देशों में सवा करोड़ भारतीय अपनी भारतीय पहचान के साथ सिर झुका के नौकरी करते हैं। वहां शेखों को हिन्डू वोटों की जरूरत नहीं है। और भारतीयों को पैसा चाहिए चाहे वो मुसलमान दे चाहे ईसाई दे। वहां पूरे धर्मनिरपेक्ष हैं।

डोरीलाल को ये बात गलत लगती है कि विज्ञान विज्ञान है और उसे विज्ञान ही रहने दिया जाए। उसे राजनीति में न लाया जाए। ये कहना गलत है कि राजनीति में विज्ञान का कोई उपयोग नहीं है। है भाई। नेता जी को मालूम भले ही न हो मगर विज्ञान के सिद्धांतों का उपयोग करते रहते हैं। याद करिये। गुजरात दंगों के समय क्या कहा गया था ? क्रिया की प्रतिक्रिया होती है। न्यूटन को क्या मालूम कि उसके सिद्धांतों का उपयोग दंगो को सही ठहराने के लिए किया जा सकता है। यही नहीं बता दिया गया कि हजारों साल पहले भारत में प्लास्टिक सर्जरी होती थी। उनने गणेश जी के धड़ पर हाथी का सिर लगाए जाने की कथा बयान की और ये बात किसी चौराहे की सभा में नहीं की गई। ये बात विज्ञान कांग्रेस में पंतप्रधान ने कही थी। वैज्ञानिक प्रसन्न हुए। हालांकि काफी वैज्ञानिकों ने एकत्रित होकर इस बात का विरोध किया था कि विज्ञान कांग्रेस का इस तरह से मजाक नहीं बनाना चाहिए।

हमारे देश में पिछले दिनों वैज्ञानिकों से विज्ञान का काम लेना बंद कर दिया गया है। जैसे अर्थशास्त्रियों से अर्थशास्त्र का काम लेना बंद कर दिया गया है और कानून के जानकारों को कानून के मामलों से दूर रखा जाता है। डाक्टरों को मेडिकल मामलों से दूर रखा जाता है। यहां तक कि पंडितों को पूजा पाठ की जगह नेपथ्य में खड़ाकर फोटो खिचाने तक सीमित कर दिया गया है। पूजा पाठ साहब करते हैं। पंडित मंत्रोच्चार करते हैं। भगवान और भक्त के बीच कोई नहीं रहना चाहिए कैमरे के अलावा।

छोटे मोटे वैज्ञानिक प्रयोगों की जानकारी तो हमें जब तब मिलती रहती है। जैसें एक चाय वाले की कथा है जो गैस सिलंेडर से गैस नहीं लेता था। उसने पास की नाली में एक पाइप डाल रखी थी बस नाली की गैस पाइप के सहारे सीधे चूल्हें तक आती थी। स्वाष्दिट चाय बन जाती थी। नेता जी ने बताया था कि कैसे विज्ञान घर घर मंे व्याप्त हो गया है उनकी प्रेरणा से। उन्होंने सेना को भी बताया था कि बादलों में राडार काम तो करेगा नहीं बादलों में छुपकर चले जाओ और दुश्मन को नेस्तनाबूद कर दो। मालूम नहीं उसके बाद क्या हुआ ? राडार के बारे में इस ज्ञान का उपयोग किया गया या नहीं ? वो तो विदेशों में 2एबी एक्सट्रा का फायदा ए स्क्वेयर प्लस बी स्कवेयर से समझा आए थे। आजतक कई लोगों को होश नहीं आया है। एक शिक्षा मंत्री ने डार्विन का किया धरा मिट्टी में मिला दिया। उन्होंने कहा कि वानर से आदमी बनते तो उनने देखा नहीं तो फिर डार्विन की बात क्यों माने ? वाजिब बात। एनसीईआरटी ने डार्विन का पाठ कोर्स से हटा दिया।

Yash Bharat

Editor With मीडिया के क्षेत्र में करीब 5 साल का अनुभव प्राप्त है। Yash Bharat न्यूज पेपर से करियर की शुरुआत की, जहां 1 साल कंटेंट राइटिंग और पेज डिजाइनिंग पर काम किया। यहां बिजनेस, ऑटो, नेशनल और इंटरटेनमेंट की खबरों पर काम कर रहे हैं।

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