जबलपुरमध्य प्रदेशराज्य

डोरीलाल की चिन्ता – इतिहास को लिखना और बदलना

 

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डोरीलाल जी हमने स्कूल की इतिहास की किताबों में इतिहास बदल दिया है। अब कर लो जो कुछ करना हो। इतिहास को फिरसे लिखना होगा। इतिहासकार सब वामपंथी हैं। उन्होंने गलत सलत इतिहास लिख मारा है। अब समय आ गया है कि इतिहास नये सिरे से लिखा जाएगा। डोरीलाल ने कहा मुझे कुछ नहीं करना है। जो कुछ करना होगा वो इतिहास तुम्हारे साथ करेगा। तुम इतिहास का क्या कर लोगे। स्कूल की किताबों में इतिहास बदलने से इतिहास नहीं बदलता। स्कूल की किताबों से कुछ अध्याय हटाना, कुछ जोडऩा इतिहास बदलना नहीं होता। ये बच्चों की पढ़ाई के साथ खिलवाड़ करना होता है। ये बच्चे भी जब समझदार हो जाएंगे तो तुम्हारी इस हरकत पर गालियां देंगे। इतिहास इस तरह नहीं बदला करते। बल्कि इतिहास बदलता ही नहीं। जो हो चुका है वो कैसे बदला जा सकता है। नई खोजों और जमीन के अंदर दबे प्रमाण जब किसी खोजकर्ता को मिलते हैं तो अब तक की जानकारियों में नए आयाम जुड़ते हैं। ये भी इतिहास बदलना नहीं है।
एक मुहावरा है बंदर के हाथ उस्तरा लगना। इस समय तो हाथ में सत्ता आ गई है। तो संविधान बदल रहे हैं। जिनका संविधान बनाने में कोई योगदान नहीं है। इतिहास बदल रहे हैं। जिनने इतिहास बनाने में कोई योगदान नहीं दिया। उनको शिकायत है कि उनका नाम इतिहास में नहीं है। कैसे होगा। जिस स्कूल में पढ़े नहीं उसके रजिस्टर में नाम कैसे होगा ? और यदि पढ़े लिखे ही नहीं तो किसी भी स्कूल के रजिस्टर में नाम कैसे होगा ? अब इसमें स्कूल के बच्चों का क्या दोष ?
दुनिया में कहीं भी किसी को इतिहास लिखने पर रोक नहीं है। भारत में भी नहीं। जो चाहे वो लिखे। जो कह रहे हैं कि इतिहास फिर से लिखा जाए उन्हें भी लिखने की छूट है। मगर लिखते नहीं। क्योंकि इतिहास लिखने के लिए बहुत शोध की जरूरत होती है। इतिहासकार वामपंथी या दक्षिणपंथी नहीं होता। इतिहास उपलब्ध साक्ष्य और सत्य पर आधारित होता है। तभी वह मान्य होता है। इसीलिए कोई भी कैसा भी इतिहास लिखे उसे मान्यता नहीं मिलती। इतिहास मान्यताओं और विश्वास पर नहीं लिखा जाता। किसी की इच्छा से इतिहास में हुई लड़ाई का परिणाम नहीं बदला जा सकता। हल्दीघाटी में महाराणा प्रताप और राजा मानसिंह की सेनाओं के बीच युद्ध हुआ था। राजा मानसिंह अकबर की ओर से लड़ रहे थे। अकबर युद्ध में नहीं था। दोनों की सेनाओं में हिन्दू मुसलमान दोनों थे। अब इस सच को कहने से हिन्दु मुसलमान का खेल खेलने वालों को परेशानी होती है इसलिए मांग होती है कि इतिहास फिर से लिखा जाए, हल्दीघाटी में युद्ध का परिणाम बदल दिया जाए। बल्कि बदल ही दिया गया है शायद। मगर ये भोलापन है। इस तरह इतिहास नहीं बदल सकता।
प्राचीन भारत का इतिहास लिखना बहुत कठिन काम है। बहुत सीमित सामग्री उपलब्ध है। मध्यकाल में सबकुछ उपलब्ध है। आधुनिक काल का इतिहास तो अभी अभी का है। तो प्राचीन भारत का इतिहास लिखने के लिए शिलालेख, ताम्रपत्र, सिक्के, कुछ पांडुलिपियां आदि हैं जिनके भरोसे जिनके भरोसे इतिहास की कडिय़ां जोड़ी गई हैं। जब जब जो नई सामग्री मिलती है तब तब इतिहास में वो जानकारियां जुड़ जाती हैं। इतिहासकार का एक एक शब्द बहुत सोच समझ कर लिखा जाता है। एक ही साम्रगी के बारे में दो इतिहासकारों के निष्कर्ष अलग अलग हो सकते हैं। जैसे विज्ञान में प्रयोग के बाद निष्कर्ष निकाला जाता है उसी प्रकार इतिहासकार भी प्रमाण और साक्ष्य जुटाने के बाद ही निष्कर्ष निकालते हैं।
इतिहासकार का काम केवल राजा रानी का किस्सा सुनाना नहीं होता। इतिहास में सामान्य जन भी होता है। प्रजा भी होती है। उसके हालात बयान करना और उस राजा के समय की आर्थिक सामाजिक स्थिति का वर्णन भी इतिहासकार को करना होता है। इतिहासकारों की कई पीढिय़ां खप गईं तब आज जो हम इतिहास पढ़ रहे हैं वो लिखा गया है। इतिहासकारों ने गांवों खेतों में जाकर साक्ष्य तलाशे पांडुलिपियां खोजीं, पुरानी लिपियों को पढ़ा तब इतिहास लिखा गया। इतिहास का सबसे बड़ा स्त्रोत उस समय का साहित्य, संगीत, चित्रकला, होता है। सोचिये आज से 100 साल बाद आज के समाज को हम कैसे देख पायेंगे, आज के समय के साहित्य और कलाओं और फिल्मों से आज के समय की पहचान होगी। इसीलिए आज जो लिखा जा रहा है जो रचा जा रहा है वो बहुत महत्वपूर्ण है। जिन कलाकारों और साहित्यकारों का बुद्धिजीवी कहकर मजाक उड़ाया जा रहा है उनकी रचना ही उस समय के लोगों को आज के हालात बताएगी। जैसे प्रेमचंद और परसाई जी का लेखन अपने समय का आइना है।
इतिहास में नायक भी होते हैं और खलनायक भी। ये इतिहास ही तय करेगा कि कौन नायक है और खलनायक। सत्ताधीश हमेशा सत्ता में रहना चाहता है। स्वाभाविक है। पर अमर होना चाहता है। ये अस्वाभाविक है। अमर होने के लिए किसी ने कुतुब मीनार बनाई किसी ने ताजमहल किसी ने कालपात्र तो किसी ने स्टेडियम। मगर गांधी ने कुछ नहीं बनवाया। पर वो अमर हो गया, क्यों?
डोरीलाल इतिहास प्रेमी

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