जबलपुरमध्य प्रदेश

डोरीलाल की चिन्ता : दूसरे ग्रह की कथा

 

ये एक दूसरे ग्रह की कथा है। यह पृथ्वी नामक ग्रह की कथा नहीं है। पृथ्वी एक शांत और सुंदर ग्रह है। यहां सब कुछ सुंदर है। यहां पूरी पृथ्वी में अलग अलग देशों में सभी धर्मों के लोग एक दूसरे से हिलमिलकर रहते हैं। यहां घृणा के लिए कोई जगह नहीं है। यहां के लोगों को मालूम ही नहीं कि युद्ध क्या होता है हथियार क्या होते हैं उनकी खरीदी क्या होती है। कौन बनाता है कौन बेचता है कैसे कैसे बेचता है।
दूसरे ग्रह में बहुत सारे देश हैं। इनमें हर देश में राजा है। ये सारे देश एक दूसरे से सम्हल कर रहते हैं। ये एक दूसरे को गाली देते हैं। और हथियार खरीदते हैं। इस दूसरे ग्रह में बहुत सारे देश केवल हथियार खरीदते हैं। ये कमाते ही इसलिए हैं कि हथियार खरीद सकें। हथियार खरीदते खरीदते जब पैसा खत्म हो जाता है तो ये उधार लेते हैं और हथियार खरीदते हैं। इन लोगों में बड़ा प्रेम है। जो हथियार बेचता है वही कर्ज देता है। इनमें एक समझौता है। ये कर्ज को सहायता कहते हैं। इस सहायता के लिए भारी ब्याज देना होता है। कर्ज राजा लेता है। चुकाती जनता है। जनता कहती है राजा साहब हमारी एक आंख फूट जाए कोई बात नहीं मगर पड़ोसी देश की दोनों आखें फूटना चाहिए। पडा़ेसी देश का राजा भी यही करता है।

इस ग्रह में कुछ देश ऐसे हैं जो केवल हथियार बनाते हैं और बेचते हैं। हथियार तभी बिकते हैं जब सभी देश आपस में लड़ें। इसलिए ये देश विभिन्न देशों को लड़वाते रहते हैं। कई देश तो लड़ते लड़ते भूल गए हैं कि वो लड़ क्यों रहे हैं मगर ल?े जा रहे है। कई देश बहुत उकसाने के बाद भी आपस में नहीं लड़ते तब इन देशों के लोगों को आपस में ल?ाया जाता है। उसमें भी ठीक ठाक धंधा हो जाता है। इस ग्रह के कुछ देशों में तो बाहर के दुश्मन की जरूरत ही नहीं है वो आपस में ही लड़ते हैं और हथियार खरीदते हैं। कभी कभी दो देश लड़ते लड़ते थक जाते हैं और उनके हथियार खत्म होने लगते हैं तो वो पूरी दुनिया को आव्हान करते हैं कि अब हम कैसे लड़ेंगे। हमारी मदद करो। तो हथियार बनाने वाले देश आगे बढ़कर सहायता स्वीकृत करते हैं। इतने लड़ाकू विमान, इतने टेंक, इतनी बख्तरबंद गाडिय़ां स्वीकृत। लड़ाई फिर तेज हो जाती है।

कभी कभी किसी देश में गलत आदमी राजा चुन लिया जाता है। वो कहता है हमें युद्ध नहीं चाहिये। हम नहीं लड़ेंगे। हम इन पैसों से अपने देश में स्कूल, अस्पताल और कारखाने बनायेंगे। खेती करेंगे और लोगों को सुखी बनायेंगे। ऐसा राजा अच्छा नहीं माना जाता । उसके खिलाफ उसी के देश की जनता उठ खड़ी होती है। वो कहती है हमें युद्ध चाहिए। हमें पड़?ोसी देशों से ल?ना है। उसे नेस्तनाबूद कर देना है। इस पर भी यदि राजा गद्दी नहीं छो?ता तो उसे खत्म कर दिया जाता है। वो चुनाव हार जाता है। उसके खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप लग जाते हैं। उसे जेल में डाल दिया जाता है। इन देशों में जनता मूर्ख बनना चाहती है। वो उचक उचक कर और किलकारी मार मार कर मूर्ख बनती है। उसे बताया जाता है कि अपनी मूर्खता पर गर्व करो। वो गर्व करती है। इस भीड़ में यदि कोई तर्क की बात करता है, अक्ल की बात करता है तो उसके पीछे सेना छोड़ दी जाती है जो उसे दौड़ा दौड़ा कर मारती है।
उस ग्रह में राजा लोग अपनी जनता को पूरे समय युद्ध के लिये तैयार करते हैं। वो पूरे समय बरछी भाले लेकर धर्मध्वजा लहराते हुए युद्धघोष करती रहती है। ये सेना अपने ही देशवासियों में ढूंढ ढूंढ कर दुश्मन पैदा करती है और उन्हें मारती है। यदि कोई इन्हें होशियार और सतर्क करना चाहता है तो उसे दुश्मन देश का एजेन्ट घोषित कर दिया जाता है। उसे डरपोक कहा जाता है।

उस ग्रह में हथियार निर्माता कंपनियों में बड़ा कम्पटीशन है। हर कंपनी अपने अपने ग्राहकों को पटाती है। उनके राजा खरीददार देशों की यात्रा करते हैं। अपना माल खरीदने के लिए प्रेरित करते हैं। आपसी लड़ाईयों के लिए देशों को प्रोत्साहित करते हैं। छोटे छोटे देशों के राजाओं को कमीशन का प्रलोभन दिया जाता है जो वो ले लेते हैं क्योंकि उन्हें अपने देशों में चुनाव जीतना है। इन यात्राओं से आम जनता में राजाओं की छबि सुधरती है। हथियार खरीदने वाला देश अलग अलग देशों में जाकर खरीददारी करता है। किसी से हवाई जहाज खरीदता है तो किसी से टैंक तो किसी से जासूसी का सामान। जासूसी का सामान का इस्तेमाल वो पहले अपने देश के लोगों पर करता है। ताकि पता चल जाए कि यंत्र ठीक काम कर रहा है। खरीददार राजा खरीदने में नखरे दिखाता है। अपनी शर्तें रखता है। शर्तों के अनुरूप विक्रेता देश उसका भाषण करवाते हैं। उसमें बार बार खड़े होकर इतनी ताली बजाते हैं कि भाषण देने वाला खुद शर्मा जाए कि उसने ऐसी नायाब बात तो की नहीं थी। उसको तरह तरह के सम्मानों से विभूषित करते हैं। सम्मानों का ढ़ेर लग जाता है। इसके बाद सम्मानित राजा दस का सामान अस्सी में खरीदता है।

हथियारों से लदा फदा राजा जब अपने देश लौटता है तो उसकी चुनी हुई जनता उसकी जैजैकार करती है। उसके झोले को छीन कर सड़कों पर दौड़ लगाती है। कोई राइफल तोड़ कर खाता है तो कोई टैंक को काट कर खाता है। कोई हवाईजहाज को चाट चाट कर खाता है।

राजा संतोष के साथ जेब में हाथ डालकर देखता है। भरी हुई है। सम्मान का मैडल और दुपट्टा कांधे पर लटक रहा है।
– डोरीलाल हथियारप्रेमी

Yash Bharat

Editor With मीडिया के क्षेत्र में करीब 5 साल का अनुभव प्राप्त है। Yash Bharat न्यूज पेपर से करियर की शुरुआत की, जहां 1 साल कंटेंट राइटिंग और पेज डिजाइनिंग पर काम किया। यहां बिजनेस, ऑटो, नेशनल और इंटरटेनमेंट की खबरों पर काम कर रहे हैं।

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