जबलपुरमध्य प्रदेशराज्य

डोरीलाल की चिन्ता:- मन न रंगाये रंगाये जोगी कपड़ा

कलयुग के इस कालखंड में एक नया प्रोफेशन फल फूल रहा है। आने वाले समय में इसके लिए अच्छी संभावनाएं हैं क्योंकि पूरा देश ही नहीं पूरे संसार में इसके लिए मार्केट है। इस प्रोफेशन में आने की लागत नहीं के बराबर है और कोई परीक्षा पास नहीं करना है। बस आप यदि बेरोजगार हैं और किसी काम के नहीं हैं तो आप सबसे योग्य व्यक्ति हैं जो इस प्रोफेशन को अपना सकते हैं। सबसे बड़ी बात ये है कि इसे सिद्ध करने के बाद इस काम में पैसा, सम्पत्ति और सम्मान सभी कुछ सीधे आपके निकट आता है।

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प्राचीन काल में घर के कामचोर घर की जिम्मेदारी से भाग जाते थे। उनका इस असार संसार में मन नहीं लगता था। बहुतेरे तो बीवी बच्चों को छोड़ कर भाग जाते थे। हर गांव शहर में कुछ परिवार मिल जाते थे जिनके यहां घर का मुखिया भाग खड़ा हुआ। पत्नी बच्चे कहते थे कि वो तो बाबा बन गए हैं। फिर कभी खबर मिलती थी कि बीस साल बाद तीस साल बाद वो बाबा जी घर आए। वो किसी मठ में किसी बाबा जी के साथ चिपक लेते थे जहां खाना पीना हो जाए और भांग गांजा आदि मिलता रहे। नहीं तो भीख मांग कर खाना भारत में वैसे भी बहुत इज्जत का काम माना जाता है। लोगों ने पैतीस चालीस साल भीख मांगी है ऐसे उवाच उनके मुंह से सुनाई पड़ते हैं।

इसे जितनी छोटी उम्र में शुरू किया जाए उतना ही फलदायी होता है। यह प्रोफेशन अनुभवजन्य है और किसी वरिष्ठ के सहचर्य से आता है। यह प्राय: संयोग से आता है फिर आपकी प्रतिभा पर है कि आप कितना आगे बढ़ते हैं। प्रतिभा से यहां मतलब संवाद अदायगी, गायकी और अभिनय के साथ मेकअप इस कला में बहुत निष्णात बना सकता है। पहले इसमें ब्रह्मचर्य का पालन करना होता था पर अब गृहस्थ संत होकर वो काम किया जा सकता है। इसलिए खुली छूट है।

जैसे कि महापुरूषों ने कहा है कि भक्त होने के लिए मूर्ख होना बहुत जरूरी है। पर मूर्ख होकर आप केवल भक्त बन सकते हैं। मूर्खों का आचार्य बनने के लिए आपको होशियार होना जरूरी है। सनातन सत्य है कि शीर्ष पर वही पंहुचा जिसे आप मूर्ख समझते रहे लेकिन वो नेतृत्व करने, षडयंत्र करने, मूूर्ख बनाने, अभिनय करने, बोलने की कला में निष्णात होता है।
डोरीलाल अपने मित्र के गांव में गया। वहां मित्र के साथ नदी में नहाया। वहीं नदी में कुछ बच्चे नहा रहे थे। खेल रहे थे। मौज कर रहे थे। मित्र ने उनसे पूछा कि क्यों रे किसके लड़का हो ? उनने अपने पिता का नाम बताया। पंडतज्जी के लड़का हतेे। कहां पढ़ते हो ? पूछने पर उन बच्चों ने बताया कि वो लोग बनारस में पंडिताई की शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। प्रायमरी मिडिल तक की पढाई की है। वहां उन्हें मंत्रोच्चार, पूजा पद्धति, विभिन्न अवसरों पर किए जाने वाले अनुष्ठान सीखना हैं। उसको सीखने में कुछ वर्ष लगेंगे। फिर वो पंडतज्जी हो जाएंगे। धीरे धीरे वो भागवत भी कहना सीख जाएंगे। जैसा कि हर प्रोफेशन में होता है यह जातक की प्रतिभा पर निर्भर करता है कि वो कितना ऊंचा उठे। उसके सामने पढ़े लिखे मूर्खों का पूरा संसार पड़ा है। लाखों करोड़ों रूपये खर्च करके तरह तरह की विज्ञान, कम्प्यूटर साइंस, मेडिकल साइंस पढ़े लोग सत्यनारायण की कथा सुनकर धन्य हो जाते हैं। तो ऐसी दशा में इस क्षेत्र में विकास की व्यापक संभावनाएं हैं। सरकार ने वैदिक साइंस और ज्योतिष की पढ़ाई शुरू कर दी है। आने वाले समय में आई आई टी में भी इसकी पढ़ाई शुरू हो जाएगी ऐसी संभावना साफ दिखाई पड रही है। मूर्खता पाखंड ढोंग और विज्ञान के बीच का फर्क बहुत तेजी से घट रहा है। कम्प्यूटर की पूजा हो रही है और पूजा में कम्प्यूटर का उपयोग हो रहा है। कम्प्यूटर पर कुंडली बन रही है और गुण मिल रहे हैं। मंगल का दोष अभी भी परेशान कर रहा है। यदि पंडित जी को ज्योतिष का थोड़ा बहुत ज्ञान हो तब तो उनके व्यापार और कीर्ति की कोई सीमा नहीं होती। वो दोष भी बता देते हैं और दोष का उपचार भी। यदि आपको कोई आदमी गाय के पीछे खड़ा होकर ताजा गोबर बटोरता और सीधे निकलता हुआ गाय का ताजा मूत्र पीता दिखे तो यह किसी दोष के उपचार की चरम अवस्था है।
भारतीय आदमी विनम्र होता है। वो किसी बाबा जी को देखता है तो तुरंत उसके चरणस्पर्श करता है। कभी किसी बाबा की डिग्री नहीं पूछी जाती। यह मान लिया गया है कि यदि किसी ने जोगी का कपड़ा धारण किया है तो उसका मन राम के रंग में रंग गया है। वो आदरणीय है और पूजनीय है। अर्थात वो वोट दिला सकता है। तो अब जोगी, बाबा साध्वी साधू संत महात्मा राजनीति में पार्टनर हो गये हैं। जोगी का बैरागी होना जरूरी नहीं है। वो सारे धतकरम करके भी संत बने रह सकते हैं। अब संतों की यूनियन भी है। उसकी संसद अलग बैठती है। अब तो बाबा लोग बाकायदे पार्टी का नाम लेकर धर्म की रक्षा करते हैं और पार्टी का एजेंडा चलाते हैं। कोई शर्म नहीं।
कई बाबा जो कल तक राजनीतिज्ञों के साथ मन रमाये हुए थे वो आज उन्हीं की कृपा से जेल में हैं। कोई धंधे का विवाद आ गया होगा। इसी तरह से बाबा लोग आगे भी निपटाये जाते रहेंगे। ये दुनिया एक रंगमंच है जिसमें बहुत सारे लोग तरह तरह के रंग के वस्त्र पहनकर धर्माचार्य होने का अभिनय कर रहे हैं। ये सिर्फ अभिनय है। बाकी आप समझदार हैं।
-डोरीलाल बाबाप्रेमी

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