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मानसिक रूप से कमजोर महिला को क्या मां बनने का हक नहीं:बॉम्बे हाई कोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणी

 

मुंबई , । बॉम्बे हाई कोर्ट ने बुधवार को मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी (एमटीपी) से जुड़े मामले में महत्वपूर्ण टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा है कि क्या मानसिक रूप से कमजोर महिला मां बनने की हकदार नहीं है? कोर्ट में 27 वर्षीय महिला के माता-पिता के माता-पिता की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई चल रही है। याचिका में पैरंट्स ने दावा किया है कि उनकी बेटी मानसिक रूप से अस्वस्थ है और अविवाहित है। इसीलिए उन्हें 21 सप्ताह के भ्रूण के गर्भपात की अनुमति दी जाए। कोर्ट ने पिछले हफ्ते जेजे अस्पताल के मेडिकल बोर्ड को महिला की सेहत की जांच का निर्देश दिया था। बुधवार को जस्टिस रविंद्र घूघे और जस्टिस राजेश पाटील की बेंच के सामने मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट पेश की गई। रिपोर्ट के अनुसार, महिला मानसिक रूप से अस्वस्थ या बीमार नहीं है। उनका सिर्फ आईक्यू लेवल औसत से कम है। वह इंटेलेक्चुअल डिसेबिलिटी से ग्रस्त हैं। बेंच ने सुनवाई के दौरान पाया कि पैरेंट्स ने बेटी को कभी काउंसिलिंग के लिए नहीं भेजा है। 2011 से इलाज के नाम पर उन्हें केवल दवाएं दी गई हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि भ्रूण में कोई विसंगति नहीं है। हालांकि, रिपोर्ट में महिला को भ्रूण के गर्भपात के लिए भी फिट बताया गया है।

च्हर इंसान की बुद्धि का स्तर अलग-अलगज्
रिपोर्ट पर गौर करने के बाद बेंच ने कहा कि हर कोई सुपर इंटेलिजेंट नहीं होता है। प्रत्येक इंसान की बुद्धि का स्तर अलग-अलग होता है। मामले से जुड़ी महिला की बुद्धि औसत है, सिर्फ इसलिए उसे क्या मां बनने का हक नहीं है? यदि हम कहते हैं कि औसत से कम बुद्धि वाली महिला को मां बनने का हक नहीं है, तो यह कानून के खिलाफ होगा।

रिपोर्ट में महिला को मानसिक रूप से बीमार नहीं बताया गया है। बेंच ने याचिकाकर्ता (माता-पिता) को कहा कि वे उस व्यक्ति से शादी के बारे में बात करें, जिसके चलते उनकी बेटी गर्भवती हुई है। महिला और उनके साथी वयस्क हैं, इसलिए युवक से बात की जाए। गौरतलब है कि याचिकाकर्ता ने महिला को तब गोद लिया था। जब वह पांच माह की थी। बेंच ने 13 जनवरी को याचिका पर अगली सुनवाई रखी है।

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