जबलपुर शहर के चौराहों-चौराहों पर भीख माँगते छोटे बच्चों का ख़तरनाक कार्य

शहर के सभी चौराहों पर बहुत संख्या में 10 वर्ष से कम उम्र के बालक बालिकाएँ भारी संख्या में भीख माँगने के कार्य में उनके संरक्षकों के द्वारा लगाये गए हैं। यह संख्या पिछले दो सालों में दुगुनी से ज़्यादा हो चुकी है। यह एक बहुत गम्भीर मुद्दा है जिस पर ध्यान दिया जाना बहुत आवश्यक है।
इस तरफ़ ज़िला प्रशासन, नगर निगम ज़िम्मेदारों, पुलिस ज़िम्मेदारों को सख़्त कदम उठाकर इसका समाधान स्मार्ट सिटी हित में आवश्यक है। इस बात को भी नकारा नहीं जा सकता कि इस तरह के कार्यों में लिप्त बच्चे और इनके संरक्षक कहाँ रह रहे हैं? रात्रिकालीन समयावधि में किस तरह के कार्यों में लिप्त हैं।
आज सजग दैनिक समाचार पत्र के माध्यम से यह सुझाव देने का अच्छा विचार आया और यह कार्य पढ़के लोगों में ज़िम्मेदारों में जनचेतना भाव जागे तो अपने सुझाव एक लेखक एक कर्तव्यनिष्ठ नागरिक की हैसियत से यहाँ लिख रहा हूँ।
वाहनों की चौराहों से जल्दी निकलने की आपाधापि में ये छोटे बच्चे भीख के चक्कर में गाड़ियों के सामने आ जाते हैं। भीख माँगने की ज़िद बदमाशी में वाहनों के साथ साथ सिग्नल में ग्रीन लाइट होते ही कुछ दूर तक दौड़ने का ख़तरनाक कार्य करते हैं। यह एक सामाजिक सरोकारिता के तहत अति सम्वेदनशील विषय है जिसको देखते जानते बूझते दरकिनार करना अपने कर्तव्यों से मुँह मोड़ने जैसा है जो की सामाजिक हित में और इन भीख माँगते या मजबूरी में बंधक बनाकर इस भीख के कार्य में लिप्त करवाने जैसे मुद्दे पर चुप नहीं बैठा जा सकता है।
वाकई संस्कारधानी के लिए यह वर्तमान परिदृश्य की ज्वलंत समस्याओं में से एक है जिसका निराकरण प्रशासन एवं जागरूक जनता के बीच परस्पर सामंजस्य और सहयोग से किया जाना चाहिए।
उन बच्चों के अच्छे स्वास्थ्य, शिक्षा, भोजन और स्थायी/अस्थायी निवास के संबंध में भी उचित कदम उठाने चाहिए।
✍🏻आशीष इन्दुरख्या (आशू)
(लेखक और प्रकाशक)
नर्मदा पुस्तक प्रकाशन
जबलपुर (मध्यप्रदेश)







