करोड़ों की लागत से बना “आजाद पार्क” बदहालियों का अड्डा बना! ना चौकीदार, ना रखरखाव — अमृत परियोजना की ‘अमृत’ कहानी बनी प्रशासनिक लापरवाही का प्रतीक

जबलपुर। नगर निगम और स्मार्ट सिटी लिमिटेड की अमृत परियोजना के तहत करोड़ों रुपए खर्च कर शहर के हर कोने में विकसित किए गए उद्यानों की हालत इन दिनों जनता के धैर्य और प्रशासन की उदासीनता दोनों की परीक्षा ले रही है। विशेष रूप से विजय नगर क्षेत्र स्थित चंद्रशेखर आजाद पार्क — जो कभी “मॉडल गार्डन” कहलाता था — आज अपनी बदहाली की तस्वीर खुद बयां कर रहा है।
कभी बना था ‘मॉडल पार्क’, अब उपेक्षा की मिसाल
पिछले कार्यकाल में तत्कालीन महापौर और क्षेत्रीय विधायक द्वारा भव्य उद्घाटन के साथ करोड़ों की राशि से विकसित इस पार्क का उद्देश्य था नागरिकों को स्वच्छ, सुरक्षित और मनोरंजक वातावरण प्रदान करना।
यहां बच्चों के लिए झूले, फिटनेस ज़ोन, वॉकिंग ट्रैक, हरियाली से भरे पौधे और आकर्षक फव्वारा लगाए गए थे।
परंतु कुछ वर्षों में ही पूरा ढांचा बदहाल हो गया — झूले टूट चुके हैं, पौधे सूख गए हैं, और रास्ते कचरे से अटे पड़े हैं।
शहर का सबसे बड़ा फव्वारा — जो कभी चला ही नहीं
इस पार्क की सबसे बड़ी पहचान उसका विशाल फव्वारा था, जिसे शहर का सबसे बड़ा फव्वारा कहा गया। करोड़ों रुपये की लागत से इसे सजाया गया, लेकिन अफसोस — यह कभी शुरू ही नहीं हुआ।
स्थानीय निवासियों का कहना है कि फव्वारा चालू न होने के बावजूद उसकी देखरेख पर हर साल रखरखाव बजट जारी होता है, जो अब जांच का विषय है।
अब यह फव्वारा जंग खाकर कबूतरों का बसेरा बन गया है, और उसके आसपास गंदगी का अंबार लगा है।
शराबियों का ठिकाना बना ‘आजाद पार्क’
जहां पहले बच्चे खेलते थे और बुज़ुर्ग सैर करते थे, वहीं अब शाम ढलते ही यह जगह मदिरापान करने वालों का अड्डा बन जाती है। गेट पर अब ताला नहीं लगता, सुरक्षा कर्मी महीनों से गायब हैं। शाम के समय खुलेआम शराबखोरी और अभद्र हरकतों से स्थानीय परिवारों ने पार्क आना बंद कर दिया है।
रोज़ाना आसपास के लोग शिकायतें करते हैं, लेकिन न तो निगम के अधिकारी आते हैं, न ही स्मार्ट सिटी के कर्मचारी कोई कार्रवाई करते हैं।
रखरखाव के नाम पर सिर्फ कागज़ी खानापूर्ति
आजाद पार्क के गेट पर लगा बोर्ड “स्मार्ट सिटी जबलपुर” अब जंग से भरा पड़ा है।
न लाइटें काम कर रही हैं, न वाटर पाइपलाइन, न चौकीदार की ड्यूटी।
निगम के गार्ड हफ्तों से नदारद हैं और सफाई कर्मियों की गाड़ियाँ महीनों से इस इलाके में नहीं आईं।
पार्क के आसपास जमा कचरा, दीवारों पर गंदे पोस्टर और शराब की खाली बोतलें प्रशासन की नाकामी की गवाही दे रही हैं।
स्थानीय नागरिकों का आक्रोश
स्थानीय निवासी बताया — “यह पार्क कभी हमारे मोहल्ले की पहचान था। बच्चे यहां खेलते थे, महिलाएँ टहलने आती थीं, लेकिन अब यह जगह डरावनी लगती है। हर शाम शराबी झुंड में आते हैं, गाली गलौच करते हैं, और कोई रोकने वाला नहीं।”
वहीं एक महिला निवासी ने कहा — > “नगर निगम के अधिकारी सालों से सिर्फ फोटो खिंचवाने आते हैं। ना कोई गार्ड, ना लाइटें — अब यह पार्क सिर्फ नाम का रह गया है।”
जनप्रतिनिधियों और अफसरों की चुप्पी
आश्चर्यजनक बात यह है कि न तो स्थानीय पार्षद, न ही क्षेत्रीय विधायक इस स्थिति पर कोई ठोस बयान दे रहे हैं।
जबकि परियोजना के समय दोनों ने इस पार्क को विजयनगर का गौरव बताया था।
आज स्थिति यह है कि यहां की एक भी बेंच, झूला या फव्वारा चालू हालत में नहीं है।
नगर निगम और स्मार्ट सिटी के बीच जिम्मेदारी का ठीकरा एक-दूसरे पर फोड़ा जा रहा है।
जनता की मांग — जिम्मेदारी तय हो
स्थानीय नागरिकों ने जिला प्रशासन, नगर निगम आयुक्त और स्मार्ट सिटी सीईओ से लिखित शिकायत करते हुए कहा है कि:
> “करोड़ों की अमृत परियोजना आखिर किसके रखरखाव में है?
अगर कोई उद्यान जनता के टैक्स से बना है, तो उसका रखरखाव भी प्रशासन की जवाबदेही होनी चाहिए।”
उन्होंने यह भी कहा कि यदि 15 दिनों के भीतर सफाई, सुरक्षा और प्रकाश व्यवस्था बहाल नहीं की गई, तो क्षेत्रवासी विरोध प्रदर्शन करेंगे।
> “अमृत परियोजना के तहत बनाए गए कई पार्क और सार्वजनिक स्थल अब जंग खा रहे हैं। करोड़ों की लागत वाले ये प्रोजेक्ट अगर दो साल में ही उजड़ जाएं, तो इसका मतलब है कि रखरखाव व्यवस्था सिर्फ कागज़ों पर है। प्रशासन को यह तय करना होगा कि जनता का पैसा आखिर जा कहां रहा है।”







