
जबलपुर यश भारत। शराब दुकानों के आवंटन के लिए निर्धारित की गई रेनुवल की प्रक्रिया फेल होने के बाद और ठेकेदारों के उदासीन रवैया के चलते अब जिले में संचालित होने वाली शराब दुकानों को चार समूहों में बाँटकर ठेका देने की कवायद आबकारी विभाग द्वारा शुरू कर दी है। इस तरह का प्रस्ताव आबकारी कमिश्नर के द्वारा जिला आबकारी अधिकारी को बनाकर भेजा गया है।अब देखना यह होगा कि आबकारी विभाग इसमें कितना सफल होता है। यह तो आने वाले समय में ही स्पष्ट हो पाएगा। आबकारी सूत्रों से जो जानकारी मिल रही है उसके अनुसार शराब दुकानों के चार समूह बनाए गए हैं जिसमें जबलपुर पूर्व जबलपुर पश्चिम जबलपुर मध्य और जबलपुर दक्षिण शामिल है। जबलपुर पूर्व समूह में कुंडम की चार बरेला की चार पिपरिया की तीन बघराजी की दो सालीवाडा की तीन बिलहरी की तीन बड़ा पत्थर की तीन रांझी बीएफजे की तीन सदर की तीन इंदिरा मार्केट की तीन गोरखपुर की तीन रसल चौक की दो और मडई की एक दुकान को शामिल कर 37 दुकानों का एक समूह बनाया गया है। इसी तरह जबलपुर उत्तर के नाम से बनाए गए समूह में सिहोरा की चार खितौला चार गोसलपुर की चार बुढ़ागर की चार मझगवा की चार मझौली की चार पौड़ी की चार पनागर की चार महाराजपुर की दो कांचघर की तीन कंचनपुर की तीन अधारताल की तीन परियट की एक खिरहनी की एक और सिंगौद की एक दुकान को मिलाकर 46 दुकानों का यह समूह बनाया गया है। इसी तरह जबलपुर पश्चिम के नाम से बनाए गए समूह में कटंगी की तीन बेलखाडू की दो माढोताल की तीन विजयनगर की तीन बलदेव बाग की तीन और मालवीय चौक की दो दुकान कोतवाली की तीन घमापुर की तीन भान तलैया की दो पाटन की चार और मोटर स्टैंड की तीन दुकानों को शामिल कर 31 दुकानों का समूह बनाया गया है। जबलपुर दक्षिण के नाम से बनाए गए समूह में बेलखेड़ा की तीन शाहपुरा की तीन मीरगंज की तीन बरगी की तीन संजीवनी नगर की तीन शारदा चौक की तीन मदन महल की तीन और सुनवारा चरगवा की तीन दुकानों के साथ ही गंगाई बरखेड़ा की दो और रानी लाल की तीन दुकान शामिल कर उनतीस दुकानों का समूह बनाया गया है। और इस तरह जिले में संचालित 143 दुकानों को बांटा गया है।
सिंडिकेट और बड़े ठेकेदार आ सकते हैं आगे
आबकारी विभाग के द्वारा जिस तरह से पूरे जिले की दुकानों को चार समूह में बांटकर ठेके पर देने की कवायद शुरू की गई है उसे एक बात तो साफ हो गई है कि यदि आवकारी विभाग इसमें सफल होता है तो छोटे ठेकेदार जो पूर्व में दो-तीन दुकानों के समूह का ठेका लेते थे वह मैदान से बाहर हो जाएंगे। बड़े ठेकेदार अकेले या सिंडिकेट बनाकर भी दुकान लेने के लिए आगे आ सकते हैं। ऐसे में शराब की की कीमत भी बढ़ाई जा सकती है जिसका खामियाजा सुरा प्रेमियों को उठाना पड़ सकता है।
क्या मंशा के अनुरूप मिल पाएगा राजस्व
वर्ष 2025,26 के लिए जितना राजस्व ठेको के जरिए कबाडने की जुगत आबकारी विभाग और राज्य शासन ने लगाई है क्या वह मंशा पूरी हो पाएगी इसको लेकर भी अभी संसय की स्थिति निर्मित है। क्योंकि जिले में एक्टिव शराब कारोबारी नई आबकारी नीति के आने के बाद से ही 20% अधिक राजस्व देकर दुकान लेने के मूड में नहीं नजर आ रहे हैं। ऐसे में एक संभावना यह भी बन रही है कि ऐसा ना हो कि राज्य और दूसरे राज्य के बड़े शराब कारोबारी मैदान में ना आ जाएं।