डोरीलाल की चिन्ता – जाको प्रभु दारूण दुख दैहीं, ताकि मति पहले हर लैहीं

डोरील
संत-साधु-बाबा इन दिनों इन्हीं का बोल बाला है। पहले इनकी अच्छे से ब्रांडिंग की गई। प्रोडक्ट बनाया गया। जब प्रोडक्ट बेचने लायक हो गया तो मार्केटिंग विशेषज्ञों को सौंप दिया गया। उनने बिक्री चालू कर दी। सीधे धर्म के बड़े बड़े मॉल में माल रख दिया गया। बड़े बड़े होर्डिंग लगे। बड़े बड़े पंडाल लगे। खूब शोर होने लगा। माल बिकने लगा। नया प्रोडक्ट था। लोगों ने कहा एक बार तो इस्तेमाल करने की बनती ही है। सो लाखों लोगों ने एक बार तो खरीद ही लिया पर मार्केटिंग रणनीति तो यही है कि एक बार तो ले जाओ।
फिर रणनीति नंबर दो आजमाई गई। विवाद पैदा करो। तो विवाद पैदा कर दिया गया। बाबाओं के चमत्कार पर प्रश्न उठा दिया गया। बाबा ने इसका वीरतापूर्वक सामना किया। वो चमत्कार करते रहे। चमत्कार की विजय हुई। प्रश्न हार गए। कुछ लोगों ने आम जनों की बुद्धि जगाने के लिए प्रश्न उठाये थे उन लोगों को उन्हीं आम जनों ने भला बुरा कहा। बाबा प्रश्नों से ऊपर उठ गये। विजयी बाबा अब कुछ भी बोल सकते हैं और कुछ भी कर सकते हैं। तो वो कर रहे हैं। कुछ भी बोल रहे हैं और अखबारों टी वी चैनलों में हैडलाइन बन रहे हैं।
मार्केट विशेषज्ञ फिर सक्रिय हुए। बाबा का बाजार और बड़ा करना है। कुछ फिल्मी मॉडल्स को एंगेज करना होगा जो प्रोडक्ट को पूरे देश-विदेश में फैलाएं। तो फिल्मी सितारे मैदान में उतर चुके हैं। ये सितारे पैसा लेकर मार्केटिंग के लिये मॉडलिंग करने के आदी हैं। उन्होंने आकर फोटो वीडियो सैशन किए। प्रेस को अंग्रेजी मिली टूटी फूटी हिन्दी में बताया वो बाबा के चमत्कारों से बहुत इंप्रैस हैं। फिर राजनेताओं ने मोर्चा सम्हाला। हवाईजहाजों और हेलिकाप्टरों से बड़े बड़े मंत्री संत्री उतरे। आज वे महान आ रहे हैं। कल वे महान आ रहे हैं। महानों ने ट्रैफिक जाम कर दिया। खूब पब्लिसिटी हुई। दोनों को फायदा हुआ।
इस बीच देश में दौरे चालू हो गए। अपने प्रदेश से बाहर दूसरे प्रदेशों में भी जाने लगे। वहां भी चुनाव होना हैं। जहां जहां चुनाव होना है वो प्रदेश अचानक बाबा के प्रभाव क्षेत्र में आ गए। तमाम राजनीतिज्ञ बाबा बाबा करने लगे। चमत्कारों का वैज्ञानिक विश्लेषण होने लगा। दावे प्रतिदावे होने लगे। मगर तर्क को तर्क से हराओगे तो हार जाओगे। ये बात बाबा को और बाबा के प्रमोटरों को अच्छे से मालूम थी। कुछ भोंडे मजाक किए गए और सारे तर्क धराशायी हो गए। तर्क भारी थे। वो पानी में डूब गये। चमत्कार हलके थे। वो पानी में उतराते रहे। इसलिए वो सबको दिखते रहे। इसलिए बाबा विजयी रहे।
मार्केटिंग रणनीति ये कहती है कि प्रोडक्ट को लगातार लाइम लाइट में रखो। कुछ न कुछ ऐसा होता रहे कि प्रोडक्ट चर्चा में रहे। चर्चा में रखने के लिए मीडिया और अखबार पूरे समय तैयार हैं। मीडिया घंटों अहर्निश बाबा बाबा कर सकता है। वो दस साल से इसका अभ्यासी है। अखबारों का तो कहना ही क्या ? वो भी भक्ति रस में डूब चुके हैं। वो जमाना गया जब अखबार खबरें दिया करते थे। अब अखबार एक प्रोडक्ट है। तो वो भी बाबा की मार्केटिंग में लगे हैं।
आखिर बाबा फाइनली किसके हैं ? ये स्वाल है। इसका जवाब बताओ। बाबा लगातार किसका एजेन्डा चला रहे हैं। तो एक विडियो रिलीज कर दिया गया। पंतप्रधान अपनी कुर्सी में हाथ टिकाए खड़े खड़े टी वी पर बाबा का प्रवचन सुन रहे हैं। वो गंभीर हैं। उनका मन लग गया है कथा में। वो एकटक वीडियो देख रहे हैं। लोकेशन शूटिंग चल रही है। ये राष्ट्र के नाम संदेश है। भक्तों समझ जाओ। काम पर लग जाओ। प्रधानमंत्री का संकेत है। बाबा सर्वश्रेष्ठ है।
अब पार्टी के बाकी बाबाओं संतों साधुओं को निर्देश दिया गया कि आप लोग जाकर नए बाबा का प्रताप स्वीकार करो। अब हमने एक नया युवा मैदान में उतारा है। सब कोई जाकर उससे हार मान जाओ ताकि वो रूस्तमें हिंद कहलाए और अगले विधान सभा और लोकसभा चुनावों में काम आए। सभी वयोवृद्ध गये और इस युवा का प्रतापी होना स्वीकार किया।
ऐसे प्रतापी युवा का खेल जब विरोधियों को समझ आया तो उनने कहा कि इस प्रोडक्ट को हम अपने लिए भी उपयोग करेंगे। तो अब विपक्ष भी युवा प्रतापी बाबा के प्रवचन अपने इलाके में करवा रहा है। बाबा भी कर रहे हैं। उन्हें राजनीति निरपेक्ष जो दिखना है।
जनता भोली भाली वोटर है। चुनाव लड़ने वालों के पास दो विकल्प हैं समझा कर वोट लो या मूर्ख बना के। समझाने में बहुत समय लगता है। भ्रष्टाचार, मंहगाई बेरोजगारी कालाबाजारी भुखमरी समझाओ। उसका कारण और निदान समझाओ। वोटर को समझदार बनाना कठिन काम है। मूर्ख बनाने में बहुत कम समय लगता है। बहुत आसान है। मति हरना होती है। मति हरने के लिए बाबा लोग बहुत सहर्ष प्रस्तुत होते हैं। तो दारूण दुख मिलने के पहले मति हर ली जाती है।
जाको प्रभु दारूण दुख दैहीं, ताकि मति पहले हर लैहीं