जबलपुरमध्य प्रदेश

सिगरेट पीने में मध्य प्रदेश की बेटियां अव्वल : स्वस्थ्य विभाग का चौंकाने वाला आंकड़ा, बढ़ी चिंता

जबलपुर, यशभारत। मध्यप्रदेश में यूं तो नशे के खिलाफ तमाम अभियान चलाकर लोगों को जागरुक करने का वायदा किया जाता है। लेकिन आंकड़ों के आईनों से झांकती स्याह पक्ष की तस्वीर झगझोर देने वाली है। स्वास्थ्य विभाग के द्वारा जारी किए गए आंकड़ों की मानें तो पिछले सात साल में सिगरेट पीने वाली लड़कियाँ का आंकड़ा लगातार बढ़ा है। जिससे स्वास्थ्य विभाग की चिंता बढ़ती जा रही है। यदि यही हाल रहा तो स्थिति भयावह हो सकती है।

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सिगरेट पीने में लाड़लियों का आंकड़ा 9.3 के पार.
एनएचएम की डायरेक्टर प्रियंका दास ने उमंग हेल्थ एंव वेलनेस कार्यक्रम के प्रजेंटेशन में आंकड़े बताते हुए जानकारी दी कि पिछले सात सालों में लाड़लियों की नशे की ओर प्रवृत्ति 9.3 के पार पहुंच चुकी है। बेटियां कॉलेज, ट्यूशन जाते वक्त सिगरेट के कस मार रहीं है। चिंता की बात तो यह है कि यह आंकड़ा लगातार बढ़ता ही जा रहा है।

बीड़ी पीने वाली लड़कियों का आंकड़ा 13.1 प्रतिशत
इतना ही नहीं नशे की गिरफ्त में आने के बाद सुगमता और सस्ता नशे के रुप में लाड़लियां बीड़ी के कस मार रहीं है। जिसका आंकड़ा फिलहाल 13.1 प्रतिशत है। जो चिंता का विषय है।

स्वास्थ्य विभाग की बढ़ी मुश्किलें
नशे की लगातार गिरफ्त में आने के बाद बेटियों के शरीर में इसके दुष्प्रभाव साफ देखे जा सकते है। जिसके चलते स्वास्थ्य विभाग की चिंताएं बढ़ गयीं है। क्योंकि प्रजनन शक्ति केवल बेटियों में है और ऐसे में शादी के बाद संतानोत्पत्ति के दौरान, नशा करने वाली लाड़लियों को अनेक मुसीबतों का सामान करना पड़ेगा। जिसको लेकर स्वास्थ्य विभाग भी अपनी रणनीति बना रहा है। ताकि समय रहते नशे के खिलाफ बेटियों को जागरुक किया जा सके।

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बेबस और लाचार हो रहा युवा वर्ग
नशे की गिरफ्त में फंसा युवावर्ग, जमीनी यथार्थ में आज बेबस और लाचार होने के साथ ही पथ से निरंतर भटकता ही चला जा रहा है। यह कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा कि अधिकांशत: युवा पीढ़ी नशे की गिरफ्त में आकर पतन की ओर जा रही है। सिगरेट, नशीली दवाओं एवं नशीले मादक पदार्थों की पहुंच बड़े-बड़े महानगरों से होते हुए छोटे शहरों, कस्बों के गलियारों से होते हुए गांवों तक पहुंच चुकी है।

व्यापक प्रसार है प्रमुख कारण
नशे का प्रसार इतना व्यापक हो चुका है कि बच्चे किशोरावस्था से ही इसकी चपेट में आने लग जाते हैं। यह स्तर अनुमानत: नौवीं कक्षा से लगभग शुरु हो जाता है, बच्चे घर से ट्यूशन / कोचिंग के लिए जाते हैं तथा पान की गुमटियों से सिगरेट की फूं क मारनी प्रारंभ कर देते हैं। एक समय वह भी था जब हमारे समाज में नैतिकता उच्च शिखर पर होती थी, किन्तु समय के साथ इसमें लगातार
गिरावट आती गई। लगभग दस वर्ष पीछे के समय में जाएं और आंकलन करें तो हम पाते हैं कि दुकानदार छोटे एवं स्कूली बच्चों को गुटखा, सिगरेट इत्यादि किसी भी कीमत पर नहीं देते थे, बल्कि उल्टे डांट-डपट कर हिदायत दे देते थे। लेकिन जब आधुनिकता की भेड़ चाल चलने की लत लगी तो स्थितियां ठीक उलट हो गईं, आजकल तो चाय-पान ठेले वाले स्कूली बच्चों को ही अपना स्थायी ग्राहक बनाकर उनके लिए सरलता से नशा करने का अड्डा उपलब्ध करवाते हैं। हालात यह हैं कि नौंवी से लेकर बारहवीं कक्षा तक के बच्चे सामान्यत: सिगरेट एवं गुटखा का सेवन चोरी-छिपे शुरू कर देते हैं, जो आगे चलकर उम्र के के अनुसार अन्य नशों की चपेट में आने लग जाते हैं।

 

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