कटनीमध्य प्रदेश

सालों से कलकत्ता से कटनी आकर प्रतिमाएं बना रहे सृजनकर्ता, शक्ति आराधना के महापर्व नवरात्रि की तैयारियां शुरू

कटनी, यशभारत। आदिशक्ति जगत जननी मां दुर्गा की शक्ति आराधना के महापर्व नवरात्रि की तैयारियां शहर में शुरू हो गई हैं। मंदिरों में जहां साफ-सफाई एवं रंग रोंगन का काम चल रहा है तो वहीं दुर्गोत्सव समितियों द्वारा पंडाल निर्माण के साथ ही अन्य तैयारियां की जा रही हैं। उधर शहर और बाहर से आए मूर्तिकारों द्वारा मां दुर्गा की भव्य और मनोहारी प्रतिमाओं के निर्माण को अंंतिम रूप दिया जा रहा है। शहर के एक दर्जन से अधिक स्थानों पर मूर्तिकार इस काम में जुटे हुए हैं। नवरात्रि पर्व को अब कुछ ही दिन शेष रह गए हैं। पिछले 25 से 30 वर्षों से कलकत्ता के प्रसिद्ध मूर्तिकारों का दल गणेश व दुर्गा प्रतिमाएं कटनी में बनाते आ रहे हैं। ये कलाकार रात दिन लगातार अथक मेहनत कर दुर्गा प्रतिमाओं को अंतिम रूप दे रहे है। कलाकारों की तीन माह से जारी मेहनत से भव्य प्रतिमाओं का निर्माण अब अंतिम चरण पर पहुंच गया है। हर साल की तरह इस साल भी श्रद्धालु इन प्रतिमाओं के दर्शनाथ सडक़ों पर रतजगा करेंगे। इन प्रतिमाओं के निर्माण में अहम योगदान देने वाले कलाकार अक्सर गुमनाम रह जाते हैं। यह वही कलाकार हैं, जो अपनी सृजनात्मकता, मेहनत और तकनीक के माध्यम से बेजान मिट्टी को सजीव बना देते हैं और उनके इस योगदान से ही शहर की यह पुरानी परंपरा जीवित है। कटनी में मूर्तियों के स्वरूप को दशहरे के रूप में परिवर्तित करने की परंपरा की शुरुआत 1960 के दशक में स्व. रामदास अग्र्रवाल लल्लू भैया ने की थी, तब से इस परंपरा का साल दर साल निर्वहन किया जा रहा है। हर साल नई-नई मूर्तियों का निर्माण कर झांकियों के माध्यम से कलाकार अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं। कटनी में कलकत्ता के अलावा स्थानीय कलाकार पिछले कई सालों से कटनी में प्रतिमाएं बनाते आ रहे हंै। लगभग 25 वर्षों से कलकत्ता के प्रसिद्ध मूर्तिकार कार्तिक पाल प्रेमनारायण भवन में एक से बढक़र एक दिव्य गणेश व दुर्गा प्रतिमाओं का निर्माण करते आ रहे हैं। कार्तिक ने बताया कि वो जून माह से कलकत्ता के 10 साथी कलाकारों के साथ मूर्ति बनाने में जुटे हुए हैं। इस बार उन्होंने 50 करीब गणेश प्रतिमाओं और एक सैकड़ा दुर्गा प्रतिमाओं का निर्माण किया है। मूर्तिकारों के मुताबिक तब और अब के इस दौर में काफी बदलाव आ गया है। पहले के समय में मूर्तियों व झांकियों के निर्माण के लिए मजदूर स्थानीय स्तर पर मिल जाते थे लेकिन अब ऐसा नहीं। आज के दौर में तकनीक के साथ ही सामग्री और मूर्ति बनाने के तरीकों में भी बदलाव आ चुका है, जिससे मूर्ति अब अधिक सजीव और प्रभावी दिखाई देती हैं। आदर्श कॉलोनी रोड पर स्थित ईदगाह में मूर्तियों को अंतिम रूप दे रहे कलाकारों ने यशभारत से खास बातचीत में कहा कि महंगाई भी बढ़ गई है। पहले जहां 10 रुपये प्रति घनफीट लकड़ी मिलती थी तो आज उसकी कीमत 800 रुपये तक पहुंच गई है। वहीं बांस जो पहले 10 रुपये में मिल जाता था, अब वह बांस 60 से 80 रुपये में मिलता हैं। इसके अलावा मूर्तियों के श्रृृंगार से संबंधित अन्य सामग्री के दाम भी बढ़ गए हैं। इसके अलावा किराए से बड़ा भवन लेना पड़ता हैं, जिसका कियाया लाखों रुपये होता है। तिलक राष्ट्रीय स्कूल के पीछे मूर्ति बना रहे मूर्तिकारों ने बताया कि अब के दौर में मूर्ति के निर्माण की लागत भी काफी बढ़ गई है। मूर्तियों में लगाए जाने वाले जेवर व मूर्तियां के रंग भी काफी महंगे हो गए। पहले कागज के मुकुट बगैरा ज्यादा चलते थे, अब इनमें बदलाव हो गया है। अब मुकुट में नक्काशी का दौर आ गया है। कलकत्ता व स्थानीय कलाकारों द्वारा शहर के विभिन्न स्थलों में लगभग साढ़े तीन सौ से ज्यादा मूर्तियों का निर्माण अब अंतिम चरण में है।

स्थानीय कलाकार भी बना रहे भव्य प्रतिमाएं

कलकत्ता के कलाकारों के अलावा अब स्थानीय मूर्तिकार भी एक से बढक़र मूर्ति बना रहे है। कुठला में शंम्भू पेंटर भी पिछले कुछ सालों से दुर्गा और गणेश प्रतिमाओं का निर्माण कर रहे हैं हालांकि स्थानीय मूर्तिकारों को कई परेशानियों से गुजरना पड़ता हैं। स्थानीय मूर्तिकार चेहरे की मिट्टी की वजह से दौड़ में पीछे रह जाते हैं फिर मूर्ति की साज -सज्जा रंग रोगन का सामान भी कटनी में नहीं मिल पाता है, जिसके लिए इन्हें दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता हैं, बाबजूद इसके स्थानीय कलाकार भी दिव्यता से पूर्ण मूर्तियों के निर्माण में तल्लीन हैं।

कलकत्ता से लाते हैं चेहरा बनाने वाली मिट्टी

मूर्तिकारों ने बताया कि मूर्ति बनाने का साजो सामान कलकत्ता से ट्रांसपोर्ट के जरिए बुलाते है। खासतौर पर मूर्ति के चेहरे का निर्माण गंगा मिट्टी से किया जाता है, इसलिए ये विशेष मिट्टी कलाकार खुद कलकत्ता से लाते है और बाकी मूर्ति का निर्माण स्थानीय मिट्टी से करते हैं। स्थानीय मिट्टी भी विशेष तरह की उपयोग की जाती हैं।

यशभारत से बातचीत में क्या कहा मूर्तिकारों ने

अब ऑर्डर पर ही होता है निर्माण : कार्तिक पाल

कार्तिक पाल ने कहा कि मूर्तिकार पहले के दौर में छोटी बड़ी मिलाकर लगभग 250 से ज्यादा मूर्तियों का निर्माण करते थे, तो अब ऑर्डर पर मूर्ति निर्माण होता है। इस बार हमने 50 गणेश प्रतिमा तो 100 के लगभग दुर्गा प्रतिमाएं बनाई है। बचपन से देवी देवताओं की मूर्तियां बना रहे है। कटनी में हमारे लगभग सभी पुराने ही कस्ट्मर हैं, जो हमसे ही मूर्ति बनवाते हैं। हमारे द्वारा बनाई गई मूर्ति कटनी के अलावा बाहर भी जाती हैं।

पिता से सीखी कला : बप्पा घोष

बप्पा घोष ने कहा कि तिलक राष्ट्रीय स्कूल के पीछे कलकत्ता के बप्पा घोष बताते हैं कि वो दूसरी बार कटनी में मूर्ति निर्माण कर रहे हैं। पिछली बार उनकी बनाई मूर्तियों को काफी सराहा गया था। हमारे साथ 18 कलकत्ता के कलाकारों का दल हैं, इसके अलावा स्थानीय स्तर पर भी कारीगर रखे हैं, जो मिट्टी बनाने के अलावा लकड़ी का काम करते हैं। हमारी बनाई मूर्तियों की डिमांड कटनी के अलावा कैमोर, बरही, विजयराघवगढ़, बहोरीबंद, सिहोरा के अलावा आसपास के गांवों कस्बों में भी है। पिछली बार हमने 150 से ज्यादा छोटी बड़ी मूर्ति बनाई थी इस बार महंगाई के चलते डिमांड कम है।

अब इंटरनेट का जमाना हैं : गोपीनाथ पाल

गोपीनाथ पाल अने कहा कि लगभग 20 वर्षों से कटनी में मूर्तियों का निर्माण करते आ रहे है। हमारी बनाई मूर्ति चित्रकूट, सतना, दमोह, मैहर, रीवा तक जाती हैं। अपने पिता संतोष पाल से मूर्तियों के निर्माण की कला सीखी। उस दौर में और आज के दौर में बड़ा फर्क आ गया है। पहले हम खुद मूर्तियों में मुद्रा, चेहरा, मोहरा तय करते थे, पर अब लोग इंटरनेट से फोटो निकालकर उसी आधार पर मूर्ति बनवाते हैं। हमारे साथ 10 साथी कलाकारों का दल हैं, जो मूर्तियों में अपनी कारीगिरी भव्यता ओर निखार लाते है।

अब नक्काशी का दौर : तारक नागपाल

तारक नागपाल ने कहा कि पहले कागज से बने मुकुट ज्यादा चलते थे, अब मूर्तियों के सिर पर नक्काशी के मुकुट का चलन बढ़ गया है। इस वजह से मूर्तियों को गढऩे में समय ज्यादा लगता हैं। हम लोग ज्यादातर मूर्तियों के चेहरे कलकत्ता में ही पहले से बनना शुरू कर देते है, बल्कि हमारे यहां 12 महीने मूर्तियों का निर्माण चलता रहता हैं। आधुनिकता के दौर में हमें भी अर्लट रहना पड़ता हैं, इसलिए हर प्रकार की भाव भंगिमा की मूर्तियां बनाने पर ज्यादा जोर रहता हैं। कटनी पिछले 10 वर्षों से आ रहा हूं। मेरे साथ साथी कलाकार भी हैं। हम सब मिलकर भव्य से भव्यतम मूर्ति बनाने का प्रयास करते है ।Screenshot 20240926 131816 WhatsApp2 Screenshot 20240926 131755 WhatsApp2 Screenshot 20240926 131741 WhatsApp2 Screenshot 20240926 131750 WhatsApp2 Screenshot 20240926 131745 WhatsApp2

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