शासकीय अधिवक्ताओ की नियुक्तियों में आरक्षण लागू करने के की विशेष अनुमत याचिका (SLP) स्वीकार नोटिस जारी :सुप्रीमकोर्ट

👉मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की डिवीजन बैंच के आदेश के विरूद्ध दायर एसएलपी स्वीकार मध्यप्रदेश शासन को नोटिस जारी किए सुप्रीम कोर्ट ने ।
👉ओबीसी एडवोकेट्स वेलफेयर एसोसिएशन द्वारा दायर एसएलपी चीफ जस्टिस श्री यू यू ललित एवम जस्टिस श्री रविन्द्र भट्ट की बेंच महुई सुनवाई ।
जबलपुर यश भारत। – मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय में दायर रिट अपील क्रमांक 510/2022 में जस्टिस शील लागू एवं अरुण कुमार शर्मा की खंडपीठ द्वारा दिनांक 19/7/2022 को पारित निर्णय के विरूद्ध माननीय सुप्रीम कोर्ट में एस. एल.पी. (C) 16512/2022 की प्रारंभिक सुनवाई देश के प्रधान न्यायाधीश यू.यू. ललित एवम जस्टिस एस.रविन्द्र भाट डिवीजन बैंच द्वारा दिनांक 10/10/2022 को प्रारंभिक सुनवाई की गई सुनवाई के दौरान याचिका कर्ता ओबीसी एडवोकेट्स वेलफेयर एसोसिएशन की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता संतोष पॉल तथा रामेश्वर सिंह ठाकुर, विनायक प्रसाद शाह, जोगेंद्र सिंह चौधरी ने दलील दी की मध्यप्रदेश लोकसेवा आरक्षण अधिनियम 1994 में दी गई परिभाषा के अनुसार शासकीय अधिवक्ता का पद लोक सेवा एवम पद की श्रेणी में आता है तथा महाधिवक्ता कार्यालय तथा जिला न्यायलयों में स्थापित जिला लोक अभियोजक का कार्यालय शासकीय कार्यालय की परिभाषा में आता है इसलिए समस्त शासकीय अधिवक्ताओ सहित महाधिवक्ता कार्यालयों में कई जाने वाली नियुक्तियों में आरक्षण अधिनियम 1994 के प्रावधान लागू होंगे । माननीय सुप्रीमकोर्ट कोर्ट को यह भी बताया गया की हाईकोर्ट के डिवीजन बैंच द्वारा याचिका में विद्यमान विधि के सारभूत प्रश्नों को नजर अंदाज करते हुए आलोच्य आदेश पारित किया गया है तथा हाईकोर्ट ने अपने फैसले में सुप्रीमकोर्ट के जिन निर्णयो को उल्लिखित किया गया है उक्त निर्णय याचिका की विषय बस्तु से भिन्न है । याचिकाकर्ता संघठन के अधिवक्ताओ ने सुप्रीम कोर्ट को यह भी बताया की आजादी के बाद से आज तक मध्यप्रदेश हाईकोर्ट में एक भी अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति का एक भी व्यक्ति हाईकोर्ट जज नियुक्त नही किया गया है जिसका प्रमुख कारण है की 1956 से आज तक शासकीय अधिवक्ताओ की नियुक्तियों में आरक्षण के प्रावधानों का पालन नही किया गया है । विगत 35 वर्षों से 65% हाईकोर्ट जज, महाधिवक्ता कार्यालय में कार्यरत या कार्य कर चुके शासकीय अधिवक्ताओ में से होते है । सुप्रीम कोर्ट में उक्त तर्कों के समर्थन में शासकीय अधिकताओ की नियुक्तियों की अधिसूचनाएं भी प्रस्तुत की गई । उक्त सूचियों का अवलोकन किया गया जिसमें कोर्ट ने पाया की जाति विशेष,वर्ग समुदाय विशेष के ही अधिवक्ताओ को शासकीय अधिवक्ता नियुक्त किया जाता रहा है । न्यायलय ने मध्यप्रदेश शासन को आड़े हाथों लिया की शासकीय अधिवक्ताओ की नियुक्तियों के पूर्व न तो पदों का विज्ञापन किया जाता है और न ही आवेदन आमंत्रित किए जाते है बल्कि महाधिवक्ता कार्यालयों में अपने चहेतों को नियमो को ताक पर रखते हुए नियुकिया दी जाती है । माननीय सुप्रीम कोर्ट को पंजाब राज्य द्वारा हाल ही में लागू किए गए आरक्षण की अधीसूचना सहित विधिवत अपनाई जा रही प्रक्रिया के प्रस्तुत दस्तावेजो से अवगत करवाया गया । माननीय सुप्रीम कोर्ट ने उक्त समस्त तर्कों एवम साक्ष्य को गंभीरता से लेते हुए मध्यप्रदेश शासन को कारण बताओ नोटिस जारी करते हुए 28 अक्टूबर के पूर्व जबाब तलब किया गया है ।
याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता संतोष पॉल, रामेश्वर सिंह ठाकुर, विनायक प्रसाद शाह, जोगेंद्र सिंह चौधरी, समृद्धि जैन, श्रीहर्ष नाहूश बुंदेला ने पैरवी की । प्रकरण की अगली सुनवाई 28/10/2022 को होगी ।