राजा कर्ण को हर रोज सवा मन सोना भेंट करती थीं बिलहरी की मां चंडी, नक्कासी व कलाकृतियां खुद बयां कर रहीं सुंदरता का इतिहास

कटनी, यशभारत। आदिशक्ति जगत जननी मां दुर्गा की शक्ति आराधना के महापर्व नवरात्र की चहल-पहल अब शहर में नजर आने लगी है। जगह-जगह मां जगदम्बा की प्रतिमाएं स्थापित की जा रही है। मंदिरों में भी विविध आयोजन हो रहे हैं। यशभारत द्वारा रोज शहर और ग्रामीण क्षेत्रों में स्थित देवी-देवालयों के इतिहास से पाठकों का परिचित कराया जा रहा है। इसी कड़ी में आज बिलहरी में विराजी मां चंडी की स्थापना के इतिहास से अवगत करा रहे हैं।
कटनी जिला मुख्यालय से 16 किलोमीटर दूर बिलहरी नाम से प्रख्यात नगरी, जो कभी राजा कर्ण की राजधानी हुआ करती थी। यहां पर विराजी हैं मां चंडी, जो प्रतिदिन राजा कर्ण को सवा मन सोना दिया करती थीं, जिसे राजा उसे जरूरतमंदों को दान कर देते थे। ऐसी कृपा बरसाने वाली मां के दरबार में दर्शन, पूजन के लिए हर दिन बड़ी संख्या में भीड़ उमड़ रही है। कटनी शहर से महज 16 किलोमीटर दूर बिलहरी नगर, जिसे लोग वर्तमान में पुष्पावती नगरी के नाम से भी जानते हैं। यहां के हरेक पत्थर पर नक्कासी व कलाकृतियां खुद-ब-खुद अपने समय की सुंदरता का इतिहास उजागर करती हैं। इन्ही सब कलाकृतियों के बीच स्थित है मां चंडी का भव्य मंदिर। यहां के पंडा रोहित प्रसाद माली ने बताया कि यहां राजा कर्ण राज्य करते थे और प्रतिदिन प्रजा को सोना दान करते थे। राजा कर्ण सूर्योदय से पूर्व स्नान करके चंडी देवी के मंदिर जाते थे, जहां विशाल कढ़ाव में तेल उबलता था जिसमें राजा कर्ण कूद जाते थे। इसके बाद देवी उन पर अमृत छिडक़कर जीवित करती थीं और ढाई मन सोना प्रदान करती थीं। देवी से प्राप्त सोना वे गरीबों को दान में दिया करते थे। राजा कर्ण रोज गरीबों को दान करते थे लेकिन इतना सोना उनके पास आता कहां से था, यह इस राज को जानने की हिमाकत किसी ने नहीं की और फिर इस रहस्य का खुलासा राजा विक्रमादित्य ने किया था। वह एक बालक की खोज में बिलहरी आए थे। विक्रमादित्य के राज्य में कोई बुढिय़ा माई रहती थी, जो चक्की पीसते समय कभी रोती थी तो कभी हंसती थी। वेश बदलकर प्रजा का सुख दुख जानने जब रोज की तरह रात में विक्रमादित्य वहां से गुजरे तो माई से रोने व हंसने कारण पूछा, जिस पर उसने बताया कि उसका जवान बेटा 20 वर्षों से खोया हुआ है, जिसकी याद में वह रो पड़ती हैं। इसी आश में हंस पड़ती हैं। वृद्धा के हाल से दुखी महाराज स्वयं उसके पुत्र को खोजने निकल पड़े और बिलहरी पहुंच गए, जहां सूत्रों से उन्हें ज्ञात हुआ कि वृद्धा का खोया हुआ पुत्र राजा कर्ण की चौकीदारी करता है। राजा विक्रमादित्य ने युवक को मुक्त कराने उसकी मां के पास भेजा और रोज सोना दान करने की रहस्य जानने के लिए जासूसी करने लगे, जिस दौरान सारा भेद खुला। इसके बाद राजा विक्रमादित्य स्वयं राजा के स्थान में कढ़ाहे में कूद गए और वरदान स्वरूप देवी से सोना प्राप्त होने वाला अक्षय पात्र व अमृत कलश साथ ले गए थे। सुरेश त्रिपाठी, विभाष दुबे, सचिन दुबे, तृप्ति दुबे, पुष्पलता दुबे, प्रांजल दुबे, मन्नू दुबे, सुमन दुबे, प्रियंका दुबे, शिखा दुबे, ब्रजेश दुबे, विनायक दुबे ने बताया कि जो भी भक्त सच्चे मन से चंडी माता के दरबार में हाजरी लगाकर मन्नत मांगता है, मातारानी उसकी सभी मनोकामना पूरी करती हैं।
