यशभारत पॉजिटिव स्टोरी : 57 फीसद हिस्सेदारी के साथ महिला श्रमिकों का सहारा बनी मनरेगा, तेजी से बदल रही जिंदगी
कटनी, यशभारत ( संजय खरे )। मनरेगा भारत सरकार की अति महत्वपूर्ण योजना हैं, जिले में मनरेगा महिलाओं का सहारा बनी हुई है अभी तक इस वित्तीय वर्ष में लगभग 23 लाख मानव दिवस सृजित किये गये है जिनमें से 13 लाख मानव दिवस महिलाओ द्वारा एवं 12 लाख मानव दिवस पुरुषो के द्वारा सृजित किये गये है। इस प्रकार अभी तक अर्जित किये गये मानव दिवसों में 57 प्रतिशत हिस्सेदारी महिला श्रमिकों की है।
वर्तमान में योजना के तहत अभी 6 हजार 928 कार्य प्रगति में है जिसमें 40 प्रकार के अलग अलग काम चल रहे है। जिनमे 10 हजार से ज्यादा श्रमिक प्रतिदिन कार्य कर रहे है इनकी संख्या नित प्रति बढ़ कर 20 से 25 हजार तक जाती है। आकंड़े बताते है अभी त्यौहार के कारण श्रमिकों की संख्या में कमी आई लेकिन संख्या लगातार बढ़ रही है। कटनी जिले में इस वित्तीय वर्ष 2024-25 में 45 करोड़ मजदूरी पर एवं 22 करोड़ मटेरियल पर खर्च किए गए है।
जिले में दिव्यांक को मिला काम-
इस योजना के तहत ज़िले में लगभग 437 दिव्यांग जॉबकार्ड धारी परिवारों के द्वारा 11328 मानव दिवस का काम दिया गया। दिव्यांक जनो को योजना में छोटे मोटे काम जैसे मजदूरो को पानी पिलाना महिला श्रमिकों के बच्चे खिलाना, या जो काम वो कर सके दिए गए है।
आदिवासी क्षेत्र में अभी मनरेगा योजना का और भरोसा बनाने के साथ ज्यादा काम खोलने की जरूरत है। इसके अलावा वर्ष 2024-25 का जो वार्षिक लेबर बजट का लक्ष्य तय किया गया है उसके विरुद्ध अभी तक 50 फीसदी ही उपलब्धि है, अर्थात 50 फीसदी अभी शेष हैं। जल्द ही जिले में इस लक्ष्य को पार कर लिया जावेगा परियोजना अधिकारी ऋषि राज चढ़ार का कहना है अभी हमारे पास साढ़े चार माह से ज्यादा का समय है।
कटनी जिले की 407 ग्राम पंचायतों में मौजूद लगभग 950 आबाद गांवों में 1 लाख 42 हजार 250 जॉबकार्ड धारी परिवार है। जिनमें मजदूरों की संख्या 2 लाख 42 हजार 404 है। जिसमें अनुसूचित जाति वर्ग के श्रमिकों की संख्या 15.38% तथा अनुसूचित जनजाति वर्ग के श्रमिकों की संख्या 28.88% है।
जिले में मजदूरों का पलायन
दूसरी ओर जिले में पलायन की स्थितियों को अगर गौर करें तो सबसे ज्यादा पलायन बड़वारा समेत के आदिवासी बाहुल्य गांवों से होता है। इस पलायन के पीछे की मुख्य वजह रोजगार की तलाश होती है। ऐसे में अगर मनरेगा के काम इन क्षेत्रों में अगर ज्यादा खोले जाते हैं तो न केवल इन क्षेत्रों से पलायन रुकेगा बल्कि अनुसूचित जनजाति (आदिवासी) वर्ग के लोगों को ज्यादा काम मिल सकेगा, मनरेगा योजना के तहत प्रत्येक वित्तीय वर्ष में प्रत्येक जॉबकार्ड धारी परिवार को 100 दिन के रोजगार उपलब्ध कराया जाता है जिनकों राशि 243/ रुपये प्रतिदिन की मजदूरी मिलती है. ऐसे में पलायान होना स्वाभाविक है।
विकासखण्ड के आधार पर ढीमरखेड़ाऔर बड़वारा के आंकड़े बताते हैं कि इन क्षेत्रों में एसटी वर्ग को एससी वर्ग की तुलना में काम काफी ज्यादा मिल रहा है।
मसलन बड़वारा जनपद में 46784 एससी श्रमिकों, मानव दिवस की तुलना में 137284 एसटी श्रमिकों के, सृजित किया गया है। इसी तरह से ढीमरखेड़ा में 75777 एससी श्रमिकों द्वारा मानव दिवस की तुलना में 238180 एसटी श्रमिकों के द्वारा मानव सृजित किया गया है। बड़वारा में अभी एसटी वर्ग के लिए काम की और गुंजाइश है। विशेषकर पठार क्षेत्र में न केवल काफी काम किए जाने की संभावना है बल्कि श्रमिकों को भी रोजगार की आवश्यकता इस क्षेत्र में ज्यादा है।
जिले में पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग की मनरेगा योजना महिलाओं के लिए लाभदायी साबित हो रही है। ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं को इस योजना से काम मिल रहा है।
मनरेगा में महिलाओं की हिस्सेदारी ज्यादा
जिले की बात करें तो यहां
कुल मनरेगा श्रमिकों में महिला श्रमिकों की संख्या ज्यादा है आधी आबादी के लिहाज से इस आंकड़े में अभी और बढ़ोत्तरी की गुंजाइश है। वहीं जिले के सक्रिय श्रमिकों की संख्या को देखें तो मनरेगा में काम करने वाले श्रमिकों में अनुसूचित जाति वर्ग के श्रमिकों की तुलना में अनुसूचित जनजाति वर्ग के श्रमिकों की ज्यादा है।
महिलाओं को सबसे ज्यादा काम ढीमरखेड़ा में
जिले के 242404 सक्रिय श्रमिक हैं। जिले में मनरेगा के लेबर बजट का वार्षिक लक्ष्य 44.41 लाख मानव दिवस है। इसके विरुद्ध अभी तक 23 लाख मानव दिवस की उपलब्धि हासिल की जा चुकी है। जो लगभग 51.70 प्रतिशत है।
इनका कहना हैं
जिले में मनरेगा के तहत 44 लाख मानव दिवस श्रजित करने का लक्ष्य रखा गया हैं अभी जिले में 23 लाख मानव दिवस अर्जित किए जा चुके है। इसमे अभी निश्चित तौर पर और बेहतर करने की गुंजाइश है। और लगातार हम कर भी रहे है आरसेटी के जरिए हम मनरेगा की मजदूरी को नए विकल्प दे रहे हैं। परंपरागत काम के स्थान पर कुछ नए काम ला रहे हैं। जिले में आगे और अच्छे परिणाम दिखने लगेंगे। महिलाओं के लिए ज्यादा विकल्प खुलेंगे। योजना के तहत काम करने वाले श्रमिकों के समय-सीमा में मजदूरी का भुगतान किया जा रहा है।
शिशिर गेमावत, जिपं सीईओ
अभी मनरेगा योजना रोजगार का विकल्प तो बनी है, इसमें दो राय नहीं है। लेकिन ऑफ सीजन जैसे गर्मियों के मौसम में लोगों के पास ज्यादा काम नहीं होते हैं। लिहाजा मजदूरों का पलायन ज्यादा होता है। कटनी जिले में कई मामले सामने आ चुके हैं जिसमें मजदूर अन्य राज्यों में जाकर फंस गए फिर उन्हें रेस्क्यू कराया गया।
अशोक विश्वकर्मा
उपाध्यक्ष जि.प.
आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों में ज्यादा काम खोलने विशेष तौर पर ऐसे काम जो वन्य क्षेत्र में किए जा सकें उनकी जरूरत है। क्योंकि आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र ज्यादातर वन्य क्षेत्र है। इसके अलावा कुछ नए काम ऐसे मनरेगा में लेने चाहिए।
सुनीता मेहरा
अध्यक्ष जि.प.