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परिवार नियोजन महिलाओं के भरोसे : अफवाहों के शिकार पुरूष नहीं ले रहे नसबंदी में रूचि…. जागरूकता की कमी बन रही अड़ंगा

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मंडला| गलतफहमी और अपवाहों के शिकार पुरूष परिवार नियोजन की जिम्मेदारी से अपना पल्ला झाड़ रहे है। परिवार नियोजन की जिम्मेदारी महिलाओं के ऊपर बनी हुई है। परिवार नियोजन के लिए लगने वाले शिविरों में हर साल बड़ी संख्या में महिलाएं सामने आती है, लेकिन पुरूष इस नसबंदी शिविर में अपनी रूचि नहीं दिखाते है। परिवार नियोजन में महिलाओं के साथ ही पुरूषों की भागीरदारी बढ़ाने के लिए शासन, प्रशासन द्वारा विशेष पुरूष नसबंदी शिविर का आयोजन किया जा रहा है। लेकिन महिलाओं की अपेक्षा पुरूषों की संख्या नाम मात्र की है।

 

जिसके कारण लगने वाले पुरूष नसबंदी शिविर में एक दो ही पुरूष पहुंच रहे है। जानकारी अनुसार आदिवासी बाहुल्य जिला मंडला में पुरूषों को नसबंदी रास नहीं आ रही है। जबकि पुरुष नसबंदी महिलाओं की अपेक्षा सरल व सहज है। स्वास्थ्य अमले की तमाम कोशिशें और कवायद करने के बावजूद पुरूष नसबंदी कराने रूचि नहीं दिखा रहे है। वहीं इस नसबंदी के लिए पुरूषों को प्रोत्साहन भी महिलों से ज्यादा दी जाती है। इसके बाद भी पुुरुष नसबंदी परिवार नियोजन कराने से अपना पल्ला छाड़ रहे है। वहीं महिलाओं की संख्या पुुरुषों की तुलना में कहीं अधिक है।

 

बताया गया कि बढ़ती जनसंख्या और महंगाई के इस दौर में अपने परिवार की जिम्मेदारी को लेकर चलने वाले पुरुषों में नसबंदी को लेकर रुचि नहीं दिख रही है। जिले में महिलाओं के मुकाबले पुरुष नसबंदी के लिए जागरूक नहीं है और ना ही वे शासकीय अस्पतालों तक नसबंदी कराने पहुंच रहे हैं। नसबंदी शिविर में महिलाओं को पुरूषो से ज्यादा परेशानी होती है, जिसकी जानकारी पुरुषों को भी है बावजूद इसके वे आगे नहीं आ रहे हैं। जिले के पुरूष परिवार नियोजन में खास रुचि नहीं दिख रही हैं। इसकी बानगी बुधवार को जिले के विकासखंड नारायणगंज में लगे पुरुष नसबंदी शिविर में देखने को मिली। जहां नसबंदी पखवाड़ा कार्यक्रम के तहत लगे शिविर में नारायणगंज में महज दो पुरुषों ने अपनी नसबंदी कराई। इसके साथ ही स्वास्थ्य विभाग जागरूकता कार्यक्रम चलाकर पुरूषों को नसबंदी कराने जागरूक कर रहा है। दिसंबर माह में अलग अलग तिथियों में शिविर आयोजित किये जाएंगे। जिसमें पुरूष अपनी कितनी भागीदारी निभाएंगे पता चलेगा।

पुरूषों की भागीदारी आवश्यक 

बताया गया कि पुरुष नसबंदी ऑपरेशन पखवाडे का मुख्य उद्देश्य है कि महिलाओं के साथ पुरुष की भागीदारी आवश्यक है, जिसका मुख्य थीम है, पुरूषो ने परिवार नियोजन अपनाया, सुखी परिवार का आधार बनाया। पुरुष नसबंदी एक सरल पद्धिती से की जाती है जिसे बिना चीरा, बिना टाँका पुरूष नसंबदी ऑपरेशन कहते हैं। आपरेशन कराने वाले पुरुषों को सरकार के द्वारा क्षति पूर्ति प्रोत्साहन के रूप में तीन हजार रूपये एवं प्रेरक को 300 रूपये दिये जाते हैं। जिले में पुरुष नसंबदी शिविर का आयोजन संस्थावार शुरू किया गया है।

ब्लाक स्तर पर शुरू हुआ शिविर 

सभी सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों में निश्चित सेवा दिवस में शिविर आयोजित करने के निर्देश जारी किए गए है। शिविर में चयनित महिलाओं को नि:शुल्क सेवा प्रदान की जा रही है। 7, 13, 21 दिसंबर को नारायणगंज, 12, 17, 23, 28 दिसंबर को बिछिया, 4, 11, 18, 24 दिसंबर को जिला चिकित्सालय मंडला, 4, 11, 18, 27 दिसंबर नैनपुर, 5, 10, 19, 30 दिसंबर को मवई, 6, 16 दिसंबर बहनी, 9, 14, 20, 26 दिसंबर घुघरी, 9, 14, 20, 26 दिसंबर मोहगांव में फिक्स डे अंतर्गत महिला नसबंदी शिविर आयोजित होंगे। महिला नसबंदी शिविर में एलटीटी सर्जन डॉ केआर शाक्य, डॉ गौरव जेटली और महिला चिकित्सा अधिकारी अपनी सेवाएं देंगी। वहीं पुरूष नसबंदी शिविर के लिए एलटीटी सर्जन डॉ. सज्जन सिंह द्वारा अपनी सेवाएं दी जाएगी।

हितग्राही और प्रेरकों की बढ़ी प्रोत्साहन राशि 

जिले में परिवार कल्याण की समस्त सेवाओं को सघन रूप से चलाना, मिशन परिवार विकास के माध्यम से गर्भ निरोधक और परिवार कल्याण की सेवाओं की पहुंच को अधिक से अधिक बढ़ाना, जिसका सकारात्मक प्रभाव जिले के विकास पर पड़ेगा, जिससे जिले में मातृ मत्यु दर एवं शिशु मृत्यु दर में कमी आयेगी। स्थायीय और अस्थायी विधि अपनाने पर हितग्राही व प्रेरक को प्रोत्साहन राशि दी जाती है। इन्हें मिलने वाली प्रोत्साहन राशि में भी बढ़ोत्तरी की गई है। जिसमें पुरुष नसबंदी हितग्राही को तीन हजार रूपए एवं प्रेरक को 300 रूपए दिए जाते है। वहीं महिला नसबंदी हितग्राही को दो हजार रूपए व प्रेरक को 200 दिए जाते है।

पुरुषों को बदलनी होगी अपनी सोच 

नारायणगंज सीएससी में पदस्थत बीईई विजय मरावी का कहना है कि गांवों में पुरुषों के बीच आम धारणा बन गई है कि इस नसबंदी ऑपरेशन कराने से पुरूष कमजोर पड़ जाएंगे। उन्हें लगता है कि मर्द अगर ऑपरेशन कराएंगे तो खेती-बाड़ी और घर का काम कौन संभालेगा। छोटा परिवार हो इस पर बड़े-बुजुर्गों को भी आपत्ति होती है। इस कार्यक्रम के प्रति पुरुषों की खासी दिलचस्पी नहीं होने से विभाग को मिलने वाले लक्ष्य भी उसी हिसाब से दिया जाता है। पुरुषों की सोच इस अपवाहों और गलतफहमी को लेकर अभी नहीं बदली।

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