कृषि वैज्ञानिकों की रिसर्च रंग लाई : गांव गांव जाकर 60 साल पुराने बीजों की हुई पहचान, शुद्धता और खूबियां से है भरपूर यह अनाज

जबलपुर यश भारतl कृषि वैज्ञानिकों की मेहनत एक बार फिर रंग लाई है जी हां गांव-गांव जाकर कृषि वैज्ञानिकों ने ऐसे अद्भुत बीजों की पहचान की है जो करीब 60 साल पुराने हैं और इन अनाजों के बीजों से अभी तक किसी प्रकार की छेड़छाड़ नहीं की गई है जो स्वास्थ्य के लिए भी बेहतर है इन बीजों को बचाने के लिए अब कृषि वैज्ञानिकों ने मुहिम छेड दि है ताकि विस्तार के साथ इन बीजों की खेतों में बुवाई हो सके और इससे मानव जीवन में होने वाले बीमारियों के संक्रमण पर अंकुश लगाया जा सकेl
जानकारी अनुसार रिसर्च टीम ने
एक साल के दौरान गांव-गांव जाकर किसानों की ऐसी फसलों की पहचान की है, जो 50 से 60 साल पुरानी हैं और इन फसलों की शुद्धता और खूबियों में आज तक किसी भी सीड उत्पादक, कृषि विश्वविद्यालय और कृषि वैज्ञानिकों ने छेड़छाड़ नहीं की गई।
यह है प्रमुख फैसलें
कृषि वैज्ञानिकों ने जब खोज भी शुरू की तो प्रमुख रूप से डिंडौरी की नागदमन और सिताही कुटकी, बैगा जनजातियों की बैगानी राहर, सिवनी का जीरा शंकर और जबलपुर का चावल और बालाघाट का चनौली चना मैं विशेष औषधीय गुण पाए गए।
यह परांपरागत होने के साथ शुद्धता, उत्पादन, स्वाद और बीमारियों से लड़ने के तत्व मौजूद हैं, लेकिन किसान, इन्हें एक निश्चित मात्रा में ही पैदा करता है और उन्हें इसके अच्छे दाम भी नहीं मिलते। अब जनेकृविवि ने इस ओर खुद पहल करते हुए प्रदेश के कृषि एवं किसान कल्याण विभाग और मंडी बोर्ड के सहयोग से इन फसलों को बचाने की शुरुआत की।
इनके लिए विवि के रिसर्च विभाग ने इन छह फसलों का ज्योग्राफिकल इंडिकेशन यानि जीआई टैग दिलाने के लिए आवेदन कर दिया है।
इन्होंने कहा…
कृषि वैज्ञानिकों की मेहनत रंग लाई है छह प्रकार के बीज अभी तक विशेष रूप से चिन्हित किए गए हैं जिन्हें बड़े रकबे में बुवाई की आवश्यकता है ताकि हम सभी विशेष अनाजों को अपने खाद्यान्न के रूप में प्रयोग कर लाभ उठा सके।
एसबी अग्रवाल, सीनियर साइंटिस्ट जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर







