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आस्था के साथ आत्म संयम प्राप्त करने का पर्व है शारदेय नवरात्र

नवरात्रि पर प्राइम टाइम विथ आशीष शुक्ला में पंडित लोकेश व्यास के साथ विशेष चर्चा

जबलपुर, यश भारत। आगामी 3 अक्टूबर से मां दुर्गा की आराधना का महापर्व नवरात्र प्रारंभ हो रहा है। इसको लेकर प्राइम टाइम विथ आशीष शुक्ला में ज्योतिषाचार्य लोकेश व्यास से नवरात्रि के विषय में गहन और महत्वपूर्ण चर्चा की गई । जहां नवरात्रि के महत्व पूजन परंपराओं और आराधना के संबंध पर विस्तार से चर्चा हुई । जहां आम जनों के मन में उठने वाले सवालों को कार्यक्रम संचालक आशीष शुक्ला द्वारा पूछा गया और उनके रहस्य विस्तार से पंडित लोकेश व्यास के द्वारा बताए गए। जिसे आप यश भारत न्यूज़ चैनल के साथ-साथ यश भारत के सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर विस्तार से देख सकते हैं।

कार्यक्रम की शुरुआत में कार्यक्रम संचालक द्वारा शारदेय नवरात्र और चैत्र नवरात्र में अंतर पूछा गया और उसके महत्व को जानने की कोशिश की गई । जिसके जवाब में पंडित लोकेश व्यास द्वारा बताया गया कि 12 महीनो में चार बार ऐसा मौका आता है जब माता रानी की विशेष आराधना की जाती है । जिसमें एक शारदे नवरात्र है, दूसरा चैत्र नवरात्र है और दो गुप्त नवरात्रि होती हैं। जिसमें 10 महाविद्याओं का पूजन अर्चन किया जाता है। चैत्र नवरात्र के पहले दिन याने चैत्र प्रतिपदा के दिन ब्रम्हा जी ने सृष्टि की रचना की थी। वही शारदेय नवरात्र का विशेष महत्व है, जिसमें दुर्गा मां ने 9 दिनों तक महिषासुर के साथ युद्ध किया था और फिर दसवें दिन उसका मर्दन किया था।

 

महिला सशक्तिकरण का है प्रतीक

कार्यक्रम में चर्चा के दौरान पंडित लोकेश व्यास द्वारा बताया गया कि जो महिषासुर नामक राक्षस था , उसका सर दैत्य का था और धड़ भैसे का था। जिसे वरदान प्राप्त था कि उसका वध सिर्फ कोई महिला ही कर सकती है। उसका ऐसा मानना था कि महिलाओं में इतनी शक्ति नहीं है कि वे उस का वध कर सके। इसके बाद मां दुर्गा द्वारा 9 दिन युद्ध करने के उपरांत दसवें दिन महिषासुर का वध किया गया जो यह बताता है कि नारी शक्ति किसी से कोई कम नहीं है। महिलाएं जो चाहे वह कर सकती है ऐसे में यह पर आस्था के साथ-साथ महिला सशक्तिकरण का भी सशक्त संदेश देता है।

 

साधना का है पर्व

कार्यक्रम संचालक आशीष शुक्ला द्वारा नवरात्रि के दौरान लोगों द्वारा अलग-अलग विधि से आराधना और तप करने के सवाल पर पंडित लोकेश व्यास ने बताया कि मानव जीवन में काम लोभ क्रोध मोह और मद पांच आसुरी तत्व है जो व्यक्ति को भ्रमित करते हैं और उन्हें बुरे कर्मों की ओर ले जाते हैं। इन पर विजय पाने के लिए व्यक्ति नवरात्रि के दौरान जप और तप करता है और आदमी अपनी यथाशक्ति क्षमता के अनुसार तप करता है। जिससे इन पांच तत्वों पर उसे विजय प्राप्त होती है जिसके लिए लोग अलग-अलग तरीके अपनाते हैं।

 

डोली पर सवार होकर आ रही है महारानी

प्राइम टाइम में चर्चा के दौरान एक बड़े ही महत्वपूर्ण विषय पर चर्चा की गई जो था माता की सवारी का वैसे तो मां दुर्गा शेरावाली के नाम से भी जानी जाती हैं क्योंकि सेर उनकी सवारी है लेकिन पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब शारदेय नवरात्र में माता का आगमन होता है तो उनके अलग-अलग दिन के अलग-अलग वाहन बताए गए हैं। जैसे वह कभी घोड़े पर सवार होकर आती है कभी गज पर सवार होकर आती है तो कभी नाव पर कभी डोली पर और मुर्गी पर सवार होकर आती हैं।जिस के अलग-अलग महत्व बताए गए हैं इस बार माता रानी डोली में सवार होकर आ रही है जो अच्छा संकेत नहीं माना जाता। इस साल बीमारियां अपने चरम पर होगी और विश्व में संकट की स्थिति निर्मित होगी और जब नवमी के दिन माता रानी अपने धाम को जाएंगे तो वह मुर्गे पर सवार होकर जा रही है वह भी ऐसा मुर्गा जिसके पैर बड़े होते हैं। यह भी दुनिया के लिए एक अच्छा संकेत नही है। जिसमें कई जगह युद्ध की स्थिति बनेगी होगी और विश्व में संकट के बादल छाए रहेंगे। पंडित लोकेश व्यास ने चर्चा के द्वारा बताया कि जब माता रानी गज पर सवार होकर आती है तो उस वर्ष अच्छी वर्षा होती है और किसान खुशहाल रहते हैं । वहीं जब भी घोड़े पर सवार होकर आती हैं तो राज्य में अशांति रहती है और राजा के ऊपर संकट रहता है। जब माता नाव पर सवार होकर आती है तो सभी जगह खुशहाली रहती है। इस बार विश्व भर में अशांति होने की आशंका व्यक्त की जा रही है जिसको लेकर विश्व नेताओं को गंभीरता से निर्णय लेने की आवश्यकता है।

 

असत्य पर विजय का है पर्व

एक ओर जहां नवरात्रि आस्था और आराधना का पर्व है वहीं दूसरी तरफ नवरात्रि के दसवें दिन पढ़ने वाला दशहरा असत्य पर सत्य की विजय का महापर्व है एक ओर जहां भगवान राम ने देवी की आराधना करने के उपरांत ही रावण का वध किया था वही माता दुर्गा के द्वारा भी दसवे दिन महिषासुर का मर्दन किया गया था। चर्चा के दौरान पंडित लोकेश व्यास ने बताया कि जो लोग अस्वस्थ हैं या उनकी उम्र अधिक हो गई है वह अपनी यथाशक्ति के अनुसार ही तप और नियम करें क्योंकि देवी का स्मरण मात्र ही उन्हें प्रसन्न कर देता है और वह सुख शांति प्रदान करती हैं। यह आवश्यक नहीं है कि आप अस्वस्थ हो और शरीर साथ ना दे रहा हो उसके बाद भी आप कठिन तप करें सिर्फ स्मरण मात्र ही सभी सुख प्रदान करता है। क्योंकि साधक और साधना का एक अलग ही रिश्ता होता है। भगवान अपने भक्त को खुद चुनता है ना कि भक्त भगवान को चुनता है । ऐसे में देवी जिस को सेवा के लिए उपयुक्त समझती हैं उसे वह दायित्व सौंप देती हैं।

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