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धार्मिक स्थलों में सभी वर्गों को पुजारी के पद पर नियुक्ति का अवसर क्यों नहीं : हाईकोर्ट

 

 

जबलपुर – मध्य प्रदेश हाईकोर्ट जबलपुर में अजाक्स संघ द्वारा जन हित याचिका दायर करके, मध्य प्रदेश शासन के अध्यात्म विभाग, भोपाल द्वारा दिनांक 04.10.2018 एवं 04.02.2019 तथा मध्य प्रदेश विनिर्धिष्ट मंदिर विधेयक 2019 की संवैधानिकता को हाईकोर्ट मे चुनोती दी गई है | उक्त जनहित याचिका क्रमांक 16613/2025 की प्रारंभिक सुनवाई मुख्य न्यायमूर्ति श्री सुरेश कुमार कैत तथा विवेक जैन की खंडपीठ द्वारा की गईं | याचिका कर्ता की ओर से पक्ष रखते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर एवं पुष्पेंद्र शाह द्वारा कोर्ट को बताया गया की मध्य प्रदेश शासन द्वारा विनिदिष्ट मंदिर विधेयक 2019 की धारा 46 के तहत अनूसूची-एक मे मध्य प्रदेश के प्रसिद्ध मंदिरो तथा आधीनस्थ मंदिरो, भवन तथा अन्य संरचनाओ सहित लगभग 350 से अधिक मंदिरो को अधिसूचित किया गया है, तथा अधिसूचित मंदिरो को मध्य प्रदेश सरकार ने राज्य कंट्रोल्ड़ के अधीन रखा गया है, जिनमे पुजारियों की नियुक्तियों से संवन्धित राज्य सरकार के अध्यात्म विभाग ने दिनांक 04.02॰2019 को पालिसी/कानून बनाया गया है, जिसके तहत केवल एक विशेष जाति (ब्राह्मण) को ही पुजारी के पद पर नियुक्ति दिए जाने की व्यवस्था की गई है तथा नियुक्त पुजारी को राजकोष से निर्धारित वेतन का भुगतान किए जाने का भी प्रावधान किया गया है | अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया की उक्त सभी प्रावधान, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14,15,16 तथा 21 से असंगत है, जो शून्यकरणीय है | अधिवक्ता ने कोर्ट को यह भी बताया की हिन्दू समुदाय मे OBC/SC/ST वर्ग भी शामिल है फिर हिन्दू संप्रदाय की केवल एक जाति को ही पुजारी नियुक्त किया जाना भारतीय संविधान से असंगत है | राज्य शासन की ओर से डिप्टी एडवोकेट जनरल अभीजीत अवस्थी द्वारा उक्त जनहित याचिका की प्रचलनशीलता पर प्रश्न उठाया गया की, याचिकाकर्ता अजाक्स एक कर्मचारियो का संगठन है जिसे उक्त याचिका दाखिल करने का कानूनी अधिकार नही है, तब वरिष्ठ अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर ने ने कोर्ट को बताया की सदियो से मंदिरो मे पूजा पाठ करने का काम एक जाति (ब्राह्मण) ही करता आ रहा है, जिसमे राज्य सरकार का कोई दखल नही रहा है, चूकी 2019 से राज्य सरकार ने धार्मिक मामलो मे दखल देकर सेलरी वेस पुजारी नियुक्त किए जाने का कानून बनाया है, जिसकी जानकारी आम जनता (हिन्दू समुदाय) को नही है, क्यूकी उक्त समुदाय आज भी यही जानता है, की मंदिरो मे पूजा करने तथा पंडित, पुजारी बनने का अधिकार सिर्फ ब्रह्मण वर्ग को ही प्राप्त है, जिसे बी॰पी॰मण्डल आयोग तथा रामजी महाजन आयोग ने हिन्दू धर्म शास्त्रो का अध्ययन करके सरकार के समक्ष प्रस्तुत अपनी रिपोर्टों मे विस्तृत व्याख्या की गई है, | उक्त रिपोर्ट के मुताबिक ओबीसी वर्ग मे नोटिफाइड सभी जातियो को धर्म शास्त्रो मे शूद्र वर्ण से वर्णित किया गया है, उक्त रिपोर्ट मे ओबीसी वर्ग शूद्र (छूने योग्य) वर्ण मे तथा SC,ST को पंचज (न छूने योग्य शूद्र) मे शामिल किया गया है | लेकिन भारत मे 26 जनवरी 1950 के संविधान लागू होने के बाद से देश के सभी नागरिक समान है, अनुछेद 13, 14 तथा 17 के प्रावधानों से छुआछूत तथा वर्ण व्यवस्था का समापन हो चुका है, तथा जहा कही भी विधायिका असमानता पैदा करने बाला कानून बनाती भी है तो उसे किसी भी व्यक्ति/नागरिक/संगठन द्वारा अनुछेद 226 या 32 के तहत चुनोती दी जा सकती है तथा समाज मे समानता तथा विकास की मुख्य धारा मे लाने हेतु पिछड़े वर्ग को आरक्षण से संवन्धित प्रावधान किए गए है एवं जहा कही भी नियोजन हेतु राजकोष से राशि खर्च की जाएगी वहा आरक्षण के अनुरूप नियुक्तीय देना पड़ेगी | उक्त तर्को से सहमत होते हुए हाईकोर्ट ने याचिका बिचारार्थ स्वीकार करते हुए राज्य सरकार के मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव जीएडी, सामाजिक न्याय मंत्रालय, धार्मिक एवं धर्मस्व मंत्रालय एवं लोक निर्माण विभाग को नोटिस जारी कर चार सप्ताह के अंदर जबाब तलब किया गया है | याचिका कर्ता मध्य प्रदेश अनूसूचित जाति-जनजाति अधिकारी एवं कर्मचारी संघ (AJJAKS) की ओर से पैरवी वारिस्थ अधिवक्ता रामेश्वर सिंह ठाकुर, विनायक प्रसाद शाह, पुष्पेंद्र शाह, रमेश प्रजापति, अखलेश प्रजापति ने पैरवी की |

 

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