ग्वालियरजबलपुरदेशबिज़नेसभोपालमध्य प्रदेश

आदि शंकराचार्य जयंती: एकता की आवश्यकता और

आतंकवाद पर मुखर हुए शंकराचार्य सदानंद सरस्वती

आज आदि गुरु शंकराचार्य भगवान का अवतरण दिवस है। इस अवसर पर दिए गए एक संबोधन में, शंकराचार्य सदानंद सरस्वती जी ने आदि शंकराचार्य के जीवन, दर्शन और वर्तमान समय में उनकी प्रासंगिकता पर विस्तार से प्रकाश डाला।
संबोधन में बताया गया कि शंकराचार्य का अवतरण शुक्ल पंचमी को केरल के कालाडी ग्राम में हुआ था। उन्होंने अद्वैत वेदांत सिद्धांत का प्रतिपादन करते हुए शास्त्रोक्त मार्ग पर चलने का उपदेश दिया। शंकराचार्य सदानंद सरस्वती जी ने कहा कि जिस समय उनका अवतार हुआ, उस समय देश पर ‘विधर्मियों’ और बौद्धों का कथित आक्रमण था। अनेक मतों का खंडन कर आदि शंकराचार्य ने सनातन धर्म और हिंदू धर्म की पुनर्स्थापना की। उन्होंने आध्यात्म को अभेद बुद्धि (भेद न देखना) और चैतन्य को पहचानने से जोड़ा, जिसे आध्यात्मिक उत्थान का मार्ग बताया। यह भी बताया गया कि उनकी परंपरा में सदगुरुदेव भगवान ने आध्यात्मिक उत्थान महल की स्थापना की थी, जो आज भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
एकता और आतंकवाद पर जोर:
संबोधन का मुख्य केंद्र शंकराचार्य के एकता के संदेश और वर्तमान में राष्ट्र के समक्ष चुनौतियों पर रहा। शंकराचार्य सदानंद सरस्वती जी ने कहा कि शंकराचार्य, सनातन धर्मलंबियों और हिंदुओं के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व के लिए आदर्श हैं। उनके एकता के सूत्र और ‘एक आत्मवाद’ के आदर्श को यदि पूरा विश्व स्वीकार कर ले, तो कहीं भी विवाद या युद्ध की स्थिति उत्पन्न न हो।
वर्तमान में भारत देश में निर्मित हुई परिस्थितियों, विशेषकर कश्मीर में हाल ही में आतंकवादियों द्वारा उत्पन्न की गई स्थिति का उल्लेख करते हुए, इसमें एकता की बहुत आवश्यकता बताई गई। देश पर पहले भी हुए आक्रमणों और ‘विधर्मियों’ तथा अंग्रेजों के शासन का स्मरण करते हुए कहा गया कि यदि हम सब में एकता नहीं होगी, तो राष्ट्र और सनातन धर्म में छिद्र करने का प्रयास किया जा सकता है।
राजनीति और आतंकवाद पर कठोर कार्रवाई की मांग:
संबोधन में लोकतांत्रिक व्यवस्था में प्रजा द्वारा राजा (शासक) के निर्माण की बात कहते हुए, चुने गए शासकों से संविधान का पालन करते हुए शासन करने की अपेक्षा जताई गई। शंकराचार्य जी ने कहा कि प्रजा देश के हित में आतंकवाद को नष्ट करना चाहती है और आतंकवादियों के प्रति कठोर से कठोर दंड देना चाहती है। उन्होंने शासन से प्रजा की इस इच्छा को पूरा करने का आग्रह किया।
दलगत राजनीति को एकता में बाधक बताते हुए, सभी राजनीतिक दलों से संवेद होकर और स्वार्थगत राजनीति से ऊपर उठकर देश के हित में आतंकवादियों को ‘शिक्षा’ (कठोर दंड) देने की आवश्यकता पर जोर दिया गया। यह कहा गया कि ऐसा कठोर दंड दिया जाए कि पूरे विश्व में आतंकवाद को जन्म देने और बढ़ावा देने वाले भी परिणाम से भयभीत हों। भारत ऐसा करने में समर्थ है, लेकिन अनेकता इसमें बाधक बनती है।
कश्मीर, समुदाय और भारतीयता:
कश्मीर में आतंकवादियों द्वारा पहचान कर हिंदुओं को ही निशाना बनाए जाने को ‘बहुत शर्मनाक’ बताया गया। शंकराचार्य सदानंद सरस्वती जी ने कहा कि कश्मीर भारत का अंग है और भारत सरकार उसके विकास के लिए काम कर रही है। कश्मीर की वर्तमान परिस्थिति का एक कारण वहां ‘एक विशेष समाज की बहुमत’ और उनके द्वारा ‘समर्थन दिया जाना’ भी बताया गया। कश्मीर में कश्मीरी पंडितों की पुनर्वापसी और हिंदुओं की संख्या बढ़ने की आवश्यकता बताते हुए, सभी समुदायों के रहने की बात कही गई, लेकिन आतंकवाद की अनुमति किसी को न होने पर बल दिया गया।
संबोधन में एक महत्वपूर्ण बिंदु यह भी रहा कि जो मुसलमान भारत देश में निवास करते हैं और भारत भूमि व संसाधनों का उपयोग करते हैं, उनमें भी भारतीयता होनी चाहिए और इस समय उन्हें इसे सिद्ध भी करना चाहिए, जिससे आतंकवादियों की रीढ़ टूटेगी। पूर्व में प्रधानमंत्री निवास पर हमला और लोकसभा पर हमले जैसी घटनाओं का भी उल्लेख किया गया।
संबोधन का समापन आदि शंकराचार्य के एकता के संदेश को देश का आदर्श बताते हुए, भारत सरकार और राजनीतिज्ञों से इस मसले पर एक होकर आतंकवाद को मुंहतोड़ जवाब देने की अपेक्षा के साथ हुआ। भगवत प्राप्ति और धर्म, राष्ट्र तथा देशभक्ति की स्थापना करते हुए उन्नति के मार्ग पर चलने की बात कही गई। अंत में शंकराचार्य जी के चरणों में निवेदन, प्रणाम और वंदन किया गया।

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button
WhatsApp Icon Join Yashbharat App
Notifications Powered By Aplu